दैनिक रेवांचल टाईम्स – वर्ष 2024 जनवरी का महीना भारत राष्ट्र के लिए पूर्व से राष्ट्रीय गर्व का विषय रहा है। वर्ष 1950 की 26 जनवरी को भारत का संविधान लागू हुआ और इसी दिन भारत राष्ट्र अपने संविधान से संचालित होने लगा, अब जनवरी 2024 नव संदर्भ लेकर भारतीय जन मानस की स्मृति पटल पर अंकित होगा। 22 जनवरी 2024 को तीर्थधाम अयोध्या में भारतीय जनमानस के अराध्य, मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्रीराम के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का ऐतिहासिक अवसर बन गया है। आजाद भारत में 15 अगस्त और 26 जनवरी का राष्ट्रीय महत्व है। यह दोनों तारीख महज तारीख भर नहीं भारत की अंग्रेज हुकूमत से आजादी और भारत वर्ष पर भारत की संविधान सभा द्वारा निर्मित सविधान को 26 नवंबर 1949 को अधिनियमित, अंगीकृत एवं आत्मार्पित करने के पश्चात 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। यह दोनों तिथि राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में भारत में आजादी के बाद से परंपरागत उत्साह, उमंग और गौरव की अनुभूति कराने वाली है। आजादी के बाद प्रतिवर्ष 15 अगस्त और 26 जनवरी पर सम्पूर्ण राष्ट्र आजादी और गणतंत्र का जश्न मनाता आ रहा है। यह अवसर भारतीय जनमानस की राष्ट्रीय खुशी के परिचायक है। अब जनवरी माह की 22 तारीख भी इसी तरह राष्ट्रीय गौरव की तारीख के रूप में याद रखी जाएगी। राष्ट्र जब अपने मर्यादा पुरषोत्तम के मंदिर निर्माण में राम आएंगे की संगीत लहरियों के तराने गा रहा हो, तब ही यह देश है, वीर जवानों का मस्तानों का, तराना देश की जनता के कानों में पड़े और दोनों ही देश को अल्हादित करें, आनंदित करे, उल्लासित करें कितना गौरवशाली अवसर है। राष्ट्र भक्ति और राम भक्ति का यह समन्वयक ही तो देश की जनता का सूत्र वाक्य है। राम की अयोध्या पर भी तो आक्रमणकारी ने हमला कर श्री राम के मंदिर का विध्वंस किया था। इस गुलामी के प्रतीक से भी तो देश अब आजादी प्राप्त कर रहा है। श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा भारतीय जनमानस की खुशी और अल्हाद का सुभावसर ही तो है। उसी तरह ही जैसे 26 जनवरी 1950 को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 21 तोपों की सलामी के साथ ध्वजारोहण कर भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित किया। यह ऐतिहासिक क्षणों में गिना जाने वाला समय था। इसके बाद से हर वर्ष इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। आजादी के बाद गणतंत्र का आना देश के लिए राष्ट्रीय खुशी का अवसर था। अब भी उसी प्रकार की खुशी से देश अल्हादित, प्रसन्नचित नजर आ रहा है। बरसो से गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर सरकारी इमारतों पर रोशनी करतें हुए हम भारतवासी राष्ट्रीय पर्व का आनंद लेते आए है। अब भारत के लोगो की दोहरी खुशी है। जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर को मना रहा है। घर–घर गली चौबारे रोशनी में नहाए हुए है। मंदिरों को सजाया गया है। गांव–गांव प्रभात फेरियां निकाली जा रही है। देश का बहुसंख्यक समाज उत्साह और उमंग से लबरेज नजर आ रहा है। 1950 में गणतंत्र दिवस की घोषणा पर जैसी राष्ट्रीय खुशी थी। अब भी तो वैसी ही खुशी है। 22 जनवरी की तारीख भी राष्ट्रीय खुशियों में शुमार होगी। श्री राम तो भारत के जननायक है। वनवासी राम का वनवास खत्म होने पर सदियों पूर्व देश रोशनी में नहाया था। दीपावली अब भी श्री राम के वनवासी जीवन के बाद अयोध्या लौट आने की खुशी का त्योहार है। अब उसी दीपावली को मनाने का अवसर है। भारतीय जनमानस को यह खुशी का अवसर 500 बरस बाद मिल रहा है। श्री राम भारत की आत्मा है। राम नाम केवल दो शब्द ही नहीं है। इन दो शब्दो में भारतवर्ष की सम्पूर्ण संस्कृति सन्निहित है। राम का नाम हमारे प्रतिदिन के अभिवादन में शामिल है। श्री राम को समझने के लिए हमें उनके जीवन चरित्र को समझना होगा। पुत्र धर्म के पालन में सत्ता के सिंहासन को छोड़कर 14 बरस के सन्यासी जीवन को स्वीकार करना। अपने गुरुओं को सम्मान देना। श्री राम का सम्पूर्ण जीवन जहां त्याग की मूर्ति है, वहीं ऋषि मुनियों और जनसाधारण की रक्षा का संकल्प भी है। राम ने कष्टों और बाधाओं में भी उच्च जीवन मूल्यों को प्रतिस्थापित किया। यहीं जीवन मूल्य भारतीय जीवन शैली में आज भी व्याप्त है। तुलसीदास जी ने श्री राम को एक आदर्श पुरुष के रूप में चित्रित किया है, जिनमें करुणा, दया, क्षमा , सत्य, न्याय, साहस, सदाचार, धैर्य और नेतृत्व जैसे गुण समाहित है। वें एक आदर्श पुत्र, भाई, पति , राजा और मित्र हैं। 26 जनवरी भारतीय संविधान के लागू होने के दिवस है, तो 22 जनवरी महामानव, त्यागमूर्ति भगवान श्री राम के मंदिर निर्माण का शुभावसर। भारतीय संविधान के भाग तीन पर जहां हमारे मौलिक अधिकारों का उल्लेख है। भगवान श्री राम, सीता, एवं लक्ष्मण जी का चित्र है। दरअसल सविधान के निर्माण के दौरान इतिहास के चुनिंदा महात्माओं, गुरुओं, शासकों एवं पौराणिक पात्रों को दर्शाते हुए अलग–अलग सजाया गया है। इस कार्य हेतु उस समय के प्रसिद्ध चित्रकार श्री नन्दलाल बोस शांति निकेतन को अधिकृत किया था। संविधान के भाग तीन में भगवान श्रीराम के चित्रों को सजाया जाना भगवान श्रीराम के आदर्शो का भारतीय जनमानस में प्रभाव का ही परिचायक है।
दरअसल जनवरी 2024 का यह शुभ माह भारतीय जीवन के आदर्श पुरुष भगवान श्री राम के मंदिर निर्माण की प्राण प्रतिष्ठा का ऐतिहासिक अवसर है। यह माह भारतीय संविधान के लागू होने का दिवस भी है। गणतंत्र दिवस अंग्रेजों से आजादी के बाद भारत के संविधान को अंगीकार करने का दिवस है। 22 जनवरी भी भगवान श्री राम मंदिर निर्माण की प्राण प्रतिष्ठा का महान दिवस है। विदेशी आक्रांताओं ने भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को कमजोर करने के जो प्रयास बरसों पूर्व किए थै। उन सांस्कृतिक मूल्यों को पुर्नस्थापित करने का यह अवसर भी भारत राष्ट्र के लिए गौरवशाली उपलब्धि है।
महान चरित्र किसी सीमा में बंधे नहीं होते उनके आदर्श, शिक्षा सीमाओं के बाहर जाकर भी अपनी महत्ता को प्रतिपादित करतें है। इस लिहाज से श्री राम दुनियां के आदर्श चरित्र है। अयोध्या का यह उत्सव भारत ही नहीं दुनियां के लोगो के लिए एक महान अवसर है। त्याग, आदर्श और समानता की जो शिक्षाएं श्री राम के चरित्र से मिलती है। उस पर चलकर दुनियां के देश समानता, बंधुता का महान संदेश जो भारतीय संस्कृति का महान मंत्र है। त्याग, तपस्या, ज्ञान, दया और अनुशासन का पाठ श्रीराम के जीवन का महत्वपूर्ण आदर्श है। वर्तमान दुनियां को श्री राम के जीवन से इन संदेशों को सीखने को आवश्कता है। जब हम रामराज्य की कल्पना करते है, ऐसा राज्य जिसमे सभी सुखी हो, जिस राज्य में खुशहाली हो, जनसामान्य आपस में प्रेम से रहे। राम राज्य की इसी अवधारणा को तुलसीदास जी ने इन पक्तियों में व्यक्त किया है। दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज नहिं काहुही व्यापा।। यहां व्यक्ति स्वयं तो सुखी है ही दूसरो से भी उसके प्रेम संबंध है। सभी मनुष्य परस्पर प्रेम से रहते है। राम राज्य में सुख सम्पदा बड़ी मात्रा है। प्रेम और खुशी का वातावरण है। इसी राम राज्य की कल्पना तो आदर्श राज्य की कल्पना है। दुनियां में आदर्श शासन प्रणाली में राम राज्य भी शामिल है। वर्तमान दुनियां को इसी राम राज्य की आवश्कता है। श्री राम मंदिर का निर्माण इस लिहाज से भारत ही नहीं सम्पूर्ण दुनियां में नवीन आदर्श स्थापना का शुभ अवसर है। दुनियां में रामराज्य स्थापित हो यह कल्पना की जानी चाहिए।
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नरेंद्र तिवारी पत्रकार