🛑 विशेष खोजी रिपोर्ट
मंडला में गहराता भ्रष्टाचार — कागज़ों पर दुकानें, फाइलों में मटेरियल, ज़मीन पर सन्नाटा!
फर्जी सप्लायरों और बेनामी बिलों से लूटा जा रहा सरकारी खजाना, जिम्मेदार मौन
आदिवासी बहुल मंडला जिले में भ्रष्टाचार अब सिस्टम का हिस्सा बनता जा रहा है। फर्जी मटेरियल सप्लायर, बिना पंजीकरण के ट्रेडर्स, और ग़ायब दुकानों के नाम से उठ रहे लाखों-करोड़ों के बिल इस बात की गवाही देते हैं कि सरकारी खजाने की लूट योजनाबद्ध और संगठित तरीके से की जा रही है — और यह सब सरपंच-सचिव-रोजगार सहायकों की मिलीभगत से हो रहा है।
कागज़ी सप्लायर — फाइलों में सक्रिय, ज़मीनी हकीकत में लापता
जिले की ग्राम पंचायतों में जिन सप्लायरों के नाम से बिल लग रहे हैं, उनकी ज़मीनी उपस्थिति तक नहीं है। ऐसे दुकानदार जो स्टेशनरी या जनरल स्टोर चलाते हैं, उनके नाम से रेत, गिट्टी, सीमेंट की सप्लाई दिखाकर लाखों के भुगतान किए जा रहे हैं।
जनपद पंचायत बिछिया के भीमा ग्राम पंचायत का मामला ताज़ा उदाहरण है,
जहां स्टेशनरी की दुकान से कथित तौर पर सोकपिट का निर्माण कार्य और सड़क की सीमेंट सप्लाई जैसे कार्यों का भुगतान हुआ। सरपंच पति नरेश सैयाम ने स्वीकार किया कि उन्होंने मजदूरी का भुगतान खुद के खाते में लिया, यह कहते हुए कि मज़दूरों के खाते में पैसा नहीं जा रहा था। सवाल यह है कि जब पूरा शासन ‘डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर’ (DBT) को लागू कर चुका है, तब व्यक्तिगत खातों में भुगतान की अनुमति कैसे दी गई?
फर्जी बिलों का गोरखधंधा — जवाबदेही शून्य
रेवांचल टाइम्स की पड़ताल में सामने आया है कि जिले में ऐसी अनेक पंचायतें हैं जहां फर्जी नामों से दुकानें रजिस्टर्ड हैं, लेकिन उनके पास कोई वैध ट्रेड लाइसेंस, जीएसटी रजिस्ट्रेशन या सामग्री आपूर्ति का प्रमाण नहीं है।
सूत्र बताते हैं कि अधिकांश मामलों में सप्लायर नाम पर सरपंच, सचिव या उनके करीबी रिश्तेदार ही सामने आते हैं। नतीजतन, एक ही व्यक्ति पंच, रोजगार सहायक और मटेरियल सप्लायर की तिकड़ी भूमिका निभा रहा है — और जवाबदेही किसी की नहीं।
जांच नहीं, धौंस और धमकी मिलती है
जब कोई पत्रकार या समाजसेवी इस भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाता है, तो उसे झूठे मामलों में फंसाने, जेल भेजने, या राजनीतिक दबाव बनाने की धमकी दी जाती है। कई पत्रकारों को ग्राम पंचायत स्तर पर जान-बूझकर निशाना बनाया गया है, ताकि सरकारी धन की लूट की परतें उजागर न हों।
जनपद अध्यक्षों और सीईओ की भूमिका संदिग्ध
जिले के जनपद पंचायतों में बैठे जनप्रतिनिधि और अधिकारी भी इस भ्रष्टाचार से अछूते नहीं हैं। पंचायत स्तर से लेकर जनपद तक शिकायतें पहुंचती हैं, पर कार्रवाई के नाम पर या तो “संपर्क किया जाएगा” कहकर बात टाल दी जाती है या फिर सीधे-सीधे लेन-देन कर फाइल बंद कर दी जाती है।
आखिर जवाब कौन देगा?
- कौन बताएगा कि बिना दुकान के बिल पोर्टल पर कैसे अपलोड हो रहे हैं?
- बिना GST रजिस्ट्रेशन के लाखों की सामग्री कैसे सप्लाई हो रही है?
- सरपंचों और सचिवों के निजी खातों में शासकीय पैसा क्यों जा रहा है?
- और सबसे अहम — इन फर्जी भुगतान पर जांच क्यों नहीं हो रही?
जनता के सब्र का इम्तिहान ना ले प्रशासन
मंडला की जनता आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रही है — और वहीं दूसरी तरफ अफसरशाही व ग्राम पंचायत स्तर पर “कागज़ी योजनाओं” में करोड़ों रुपये खर्च दिखाए जा रहे हैं। यह घोटाले सिर्फ कागज़ों तक सीमित नहीं हैं — ये उन लोगों की मेहनत, भरोसे और अधिकार की भी लूट है, जो हर योजना में ईमानदारी से उम्मीद लगाए बैठे हैं।
मंडला का यह भ्रष्टाचार अब स्थानीय स्तर की लापरवाही नहीं, बल्कि संगठित गबन का उदाहरण बन चुका है। यदि शासन-प्रशासन ने अब भी आंखें मूंदी रखीं, तो यह नेटवर्क और ताकतवर हो जाएगा, और ईमानदार व्यवस्था का दम घुटता जाएगा।
रेवांचल टाइम्स मांग करता है कि —
✅ सभी पंचायतों के पिछले 3 वर्षों के बिलों और सप्लायरों की स्वतंत्र और सार्वजनिक जांच करवाई जाए।
✅ बिना ट्रेड लाइसेंस और GST नंबर के भुगतान तुरंत रोके जाएं।
✅ पत्रकारों को धमकी देने वाले सरपंच-सचिवों पर FIR हो।
✅ जनपद पंचायत और सीईओ की भूमिका की भी विशेष जांच हो।
ये सिर्फ खबर नहीं — ये जनता की आवाज़ है।
अब देखना यह है कि क्या शासन इस आवाज़ को सुनता है या फिर एक और घोटाले को फाइलों में दफन कर दिया जाएगा।
आरती, अगर आप चाहें तो इस रिपोर्ट का वीडियो वर्जन, डेटा विज़ुअल (जैसे नक्शा या चार्ट), या ग्रामीणों की प्रत्यक्ष टिप्पणियों के साथ फॉलो-अप रिपोर्ट भी तैयार की जा सकती है। बताइए, अगला कदम क्या रखें?