झोलाछापों का ‘जनता क्लिनिक’: मौत का धंधा, सिस्टम की चुप्पी और प्रशासन की बेशर्मी
मंडला की गलियों में एक सवाल गूंज रहा है, जो प्रशासन की नींद उड़ाने के लिए काफी है, लेकिन अफसोस! नींद तो तब उड़े, जब शर्म-हया बाकी हो। यहाँ तो जिला प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और सारा सिस्टम मिलकर एक खतरनाक खेल खेल रहा है…झोलाछाप डॉक्टरों की दुकानदारी को पनपाने का खेल। मंडला, जहाँ आदिवासी अपनी जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं, वहाँ गली-गली में फर्जी डॉक्टरों के बोर्ड चमक रहे हैं। ना डिग्री, ना रजिस्ट्रेशन, ना मेडिकल काउंसिल की मान्यता…बस एक बोर्ड, एक स्टेथोस्कोप और जनता की मजबूरी का सौदा। ये है मंडला का ‘जनता क्लिनिक’, जहाँ इलाज नहीं, मौत बिकती है।
कुकरमुत्तों की तरह उग आए हैं झोलाछाप
मंडला, नैनपुर, बम्हनी…हर गली, हर चौराहे पर झोलाछापों ने अपना मकड़जाल बिछा रखा है। इनके पास ना एलोपैथी का ज्ञान है, ना कोई वैध लाइसेंस। फिर भी ये इंजेक्शन ठोक रहे हैं, सर्जरी कर रहे हैं, और मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं। कुछ ने तो ऑपरेशन थिएटर तक खोल रखे हैं, जहाँ मरीज की जान नहीं, नोटों की गड्डियाँ गिनी जाती हैं। और ये सब हो रहा है जिला प्रशासन और स्वास्थ्य अधिकारियों की नाक के नीचे। सवाल ये नहीं कि ये कैसे हो रहा है, सवाल ये है कि ये किसकी शह पर हो रहा है?
प्रशासन की मिलीभगत, सिस्टम की सड़ांध
नैनपुर में तो हालत ये है कि सिविल अस्पताल का बीएमओ खुद अपने भाई के साथ मिलकर अवैध नर्सिंग होम चला रहा है। सरकारी डॉक्टर, जिन्हें जनता की सेवा के लिए मोटा वेतन मिलता है, वो भी अपनी निजी क्लीनिकों में मस्त हैं। और इनके संरक्षण में झोलाछापों का धंधा फल-फूल रहा है। पैसा बोलता है, और सिस्टम सोता है। स्वास्थ्य विभाग को सब पता है, प्रशासन को सब खबर है, लेकिन कोई बोलता क्यों नहीं? क्योंकि बोलने की हिम्मत तो तब हो, जब ईमान बाकी हो।
फर्जी डिग्री, नकली डॉक्टर, असली खतरा
स्थानीय लोगों की मानें तो इन झोलाछापों के पास जो भी कागजात हैं, वो या तो फर्जी हैं या किसी दूसरी पद्धति के। लेकिन इलाज? वो एलोपैथी का। नकली इंजेक्शन, गलत दवाएँ, संक्रमण और कभी-कभी मौत। और मौत का कोई रिकॉर्ड नहीं, क्योंकि यहाँ रिकॉर्ड नहीं, रसीद चलती है। हर साल स्वास्थ्य बजट बढ़ता है, आयुष्मान भारत, जनता क्लिनिक, स्वास्थ्य मिशन जैसी योजनाओं का ढोल पीटा जाता है, लेकिन जमीनी हकीकत? हर गली में मौत का अड्डा।
सवाल सरकार से: आप किसके साथ हैं?
मंडला की इन गलियों में सरकार के नाम पर मौत बांटी जा रही है। अगर सरकार को पता है, तो कार्रवाई क्यों नहीं? और अगर पता नहीं, तो आपका खुफिया तंत्र किस काम का? क्या जिला प्रशासन इन फर्जी डिग्रियों की जांच करेगा? क्या उन जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई होगी, जो इन झोलाछापों को संरक्षण दे रहे हैं? या फिर ये भी एक और ‘बात आई, गई’ वाला मुद्दा बनकर रह जाएगा?
मुख्य चिकित्सा अधिकारी का ‘मुर्गा-बाटल’ राज
मंडला के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. के.सी. सरोते के राज में दलालों और भ्रष्टाचारियों का बोलबाला है। जांच के नाम पर एक बाटल और मुर्गा चढ़ावा चाहिए, बस काम हो गया। अगर अब भी कुछ नहीं किया गया, तो अगली बार सवाल सिर्फ प्रशासन से नहीं, सरकार से भी होगा।
इत्तेफाक पर नहीं, जिम्मेदारी पर चलता है देश
फिलहाल, मंडला और नैनपुर की गलियों में इलाज नहीं, इत्तेफाक से जिंदगी बच रही है। लेकिन देश इत्तेफाक पर नहीं, जिम्मेदारी पर चलता है। और जिम्मेदारी? वो जिला प्रशासन की पहुंच से कोसों दूर है। जनता सवाल पूछ रही है, और जवाब का इंतजार कर रही है। लेकिन सवाल ये है कि क्या जवाब देने की हिम्मत बची है इस सिस्टम में?
मुकेश श्रीवास