मण्डला – जनपद पंचायत घुघरी की ग्राम पंचायतों में सरकारी धन के दुरुपयोग का जो घिनौना चेहरा सामने आया है, वह न सिर्फ शासन-प्रशासन की नाकामी है, बल्कि इसे एक संगठित लूट की संज्ञा देना ज्यादा उचित होगा। वर्षों पहले स्वीकृत निर्माण कार्य अधूरे हैं, धन पहले ही डकार लिया गया है और दस्तावेज ऐसे गायब हैं जैसे ये कभी अस्तित्व में ही नहीं थे। और आश्चर्य यह कि जिम्मेदार अब तक चैन की नींद सो रहे हैं।
जिन पंचायतों में ये निर्माण कार्य स्वीकृत हुए थे, वहां के सचिवों के पास अब किसी भी निर्माण से संबंधित दस्तावेज नहीं हैं। सूचना के अधिकार के तहत जब जानकारी मांगी गई तो ना सिर्फ उसे टाला गया, बल्कि प्रथम अपीलीय अधिकारी और सीईओ के आदेश तक हवा में उड़ा दिए गए। ये केवल लापरवाही नहीं, बल्कि साफ-साफ भ्रष्टाचार की मिलीभगत और सत्ता संरक्षण की बू देता है।
घोटाले की हकीकत कुछ यूं है:
1. सुरेहली – वर्ष 2012-13 में स्वीकृत यात्री प्रतीक्षालय हवा में ही लटका है।
2. दुलादर – आमाटोला पलकी (2008-09) और बीचटोला की आंगनबाड़ी (2009-10) सिर्फ फाइलों में बनीं।
3. इमलीटोला – 2011-12 की स्वीकृति के बाद भी आंगनबाड़ी अधूरी।
4. बरवानी – 2012-13 का रैन बसेरा आज तक लोगों के इंतजार में।
5. लाफन, कुंटीददरगांव, पाण्डकला, डूंडादेही – यहां के आंगनबाड़ी भवन या प्रतीक्षालय शायद भ्रष्टाचार के कागजों पर ही खड़े किए गए थे।
समाजसेवियों ने इसकी शिकायत जनपद पंचायत के सीईओ से की है, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। और तो और, कुछ अधूरे भवनों को महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा डिस्मेंटल करने की सिफारिश की गई है – बिना ये पूछे कि जब भवन बने ही नहीं, तो गिराने की सिफारिश किस आधार पर?
यह सवाल अब जनमानस पूछ रहा है:
क्या प्रशासन इन मामलों में सिर्फ तमाशबीन बना रहेगा?
क्या ग्राम पंचायतों में खुलेआम भ्रष्टाचार पर कार्रवाई सिर्फ कागजों तक सीमित रहेगी?
क्या जनता का पैसा यूं ही जिम्मेदारों की जेबों में जाता रहेगा?
अब देखना ये होगा कि इस खुलासे के बाद भी कार्रवाई होती है या नहीं। या फिर एक बार फिर कोई “जांच जारी है” की चादर डाल दी जाएगी।