हिंदू धर्म में पूर्णिमा व्रत का बहुत महत्व माना गया है. पूर्णिमा तिथि भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को समर्पित मानी गई है. हालांकि, जब बात आती है पूर्णिमा तिथि की तो वैशाख महीने में आने वाली पूर्णिमा का खास महत्व माना जाता है, क्योंकि इसे भगवान बुद्ध के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है. इसी वजह से वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है. इस बार वैशाख पूर्णिमा 12 मई यानी आज मनाई जा रही है और इसी दिन पूर्णिमा का व्रत भी रखा जाएगा.
धार्मिक मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन दान करने से व्यक्ति को कई गुना ज्यादा शुभ फलों की प्राप्ति होती है और मनोकामना पूरी होती है. साथ ही, घर में सुख-समृद्धि आती है. अगर आप भी वैशाख पूर्णिमा का व्रत कर रहे हैं, तो पूजा के दौरान वैशाख पूर्णिमा व्रत का पाठ जरूर करना चाहिए. ऐसी मान्यता है कि इस कथा के बिना वैशाख पूर्णिमा का व्रत अधूरा माना जाता है. ऐसे में आइए पढ़ते हैं वैशाख पूर्णिमा की व्रत कथा
वैशाखी पूर्णिमा की कथा (32 Purnima vrat katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में धनेश्वर नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था, जिसका नाम सुशीला था. उसके जीवन में धन-धान्य की कमी नहीं थी लेकिन फिर भी वह दुखी रहता था, क्योंकि उसी कोई संतान नहीं थी. एक बार उसके नगर में एक साधु महात्मा आए, जो आसपास के घरों से भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन किया करते थे. लेकिन, वह साधु धनेश्वर ब्राह्मण के घर से भिक्षा मांगने कभी नहीं जाते थे और इसे देख सुशीला और धनेश्वर बहुत दुखी हुए.
एक दिन उन्होंने उन साधु से पूछा कि आप सभी घरों से भिक्षा लेते हैं, लेकिन हमारे घर क्यों नहीं आते हैं महाराज? क्या हमसे कोई गलती हुई है. यह सुनकर साधु ने जवाब दिया कि तुम निःसंतान हो, इसलिए तुम्हारे घर से भिक्षा लेना पतितो के अन्न के समान होगा और मैं पाप का भागीदार नहीं बनना चाहता हूं. इसी कारण मैं तुम्हारे घर से भिक्षा नहीं लेता हूं. यह सुनकर धनेश्वर बहुत दुखी हुआ लेकिन उसने साधु महाराज से संतान प्राप्ति का उपाय पूछा. तब साधु ने ब्राह्मण दंपत्ति को सोलह दिन तक मां चंडी की पूजा करने की सलाह दी और फिर धनेश्वर और उसकी पत्नी ने विधि विधान से मां चंडी की पूजा की.
दंपति की इस उपासना से प्रसन्न होकर मां काली प्रकट हुईं और उन्होंने सुशीला को गर्भवती होने का वरदान दिया. साथ ही, उस ब्राह्मण दंपति को पूर्णिमा व्रत की विधि भी बताई. मां काली ने पूर्णिमा की विधि बताते हुए कहा कि हर पूर्णिमा के दिन दीपक जलाना, आने वाली सभी पूर्णिमा को दीपक की संख्या बढ़ाना और ऐसा तब तक करना जब तक पूरे 32 दीपक न हो जाएं. मां काली के बतए इस उपाय को करने से ब्राह्मण की पत्नी सुशीला गर्भवती हुई. इसके फलस्वरूप दंपति के घर में एक पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम दंपति ने देवदास रखा.