रेवांचल टाईम्स – मण्डला, आदिवासी बाहुल्य जिला केवल कहने को तो है, वही दूसरी ओर लगातार बैगा आदिवासी के बच्चों के साथ अन्याय हो रहा है आज भी जिले में अनेक स्कूल संचालित है जहाँ पर केवल अतिथि शिक्षको बल में स्कूल के ताले खुल रहे है नाम के रेगुलर शिक्षक है, और आज भी कुछ स्कूल ऐसे भी जहाँ पर शिक्षकों की नियुक्ति अतिआवश्यक पर जिले के बहुत से शिक्षक जो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए जिले से बाहर जबलपुर, भोपाल, दिल्ली जैसे बड़े बड़े पढ़ा रहे है और उन शिक्षकों की कोशिशें भी यह रहती है कि जहाँ पर बच्चे पढ़ रहे उस जिले के आसपास हम भी अचेट मेंट या संलग्नीकरण या अन्य किसी भी व्यवस्था से चले जाएं और बच्चों की पढ़ाई के साथ साथ रेख देख भी हो सके वही जिन शिक्षको जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में नियुक्त हुई थी या फिर मुख्यालय के आसपास वह अपने निजी स्वर्थो के चलते और पैसों के चलते ऊपरी व्यवस्था से संलग्नीकरण और अटैचमेंट कर जबलपुर जैसी जगह में चले गए है और जिन स्कूलों से गए हुए है उन स्कूलों में पहले से ही शिक्षको की कमी है। बावजूद इसके जहां आदिवासी जन जाति के गरीब लोग निवासरत है, जिनके पास इतना पैसा नही है वे अपने बच्चों प्राइवेट स्कूलों मे अध्ययन कराकर सकें क्योंकि वे मजदूर वर्ग के लोग कहां से इतना पैसा लायेंगे की प्राईवेट स्कूलों की फीस भर सकें, जिससे उन्हें मजबूरन शासकीय स्कूलों मे अपने बच्चों को अध्ययन कराना पड़ रहा है। जहां एक तरफ शासन द्वारा शासकीय स्कूलों मे गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा व्यवस्था के लिए नयी नयी योजना संचालित कर इन स्कूलों मे अध्ययन कर रहे बच्चों को लाभान्वित कर रही है। वहीँ दूसरी ओर जिला मंडला में शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन में अधिकारियों द्वारा खुलकर भ्रष्टाचार किया जा रहा है और नियमों की धज्जियाँ उड़ाई जा रहीं हैं।
अगर हम बात करे शिक्षकों की पदस्थापना की तो जिले मे अधिकांश स्कूल शिक्षक विहीन हैं। इस संबंध मे अगर अधिकारियों से जानकारी ली जाती है तो उनका यही कहना रहता है कि हम क्या कर सकते हैं? जिले मे शिक्षकों की कमी है। चलो यह मान भी लिया जाय की जिले मे शिक्षकों की कमी है तो फिर अधिकारियों द्वारा शिक्षकों की कमी वाले जिले मे से अन्य जिलों मे संलग्न कर क्यों शिक्षकों की कमी को विकराल बनाया जा रहा है ? और तो और जिला प्रशासन मौन धारण किये है।
आरटीआई से हुआ खुलासा –
आरटीआई कार्यकर्ता ने सहायक आयुक्त आदिवासी जनजाति कार्य विभाग मण्डला से जानकारी मांगी गयी
की जिले के कितने शिक्षकों को संभागीय उपायुक्त द्वारा जबलपुर संलग्न किया गया है?जानकारी के आभाव मे सहायक आयुक्त मंडला द्वारा संभागीय उपायुक्त जबलपुर से जानकारी लेकर आरटीआई कार्यकर्ता को जानकारी दी गयी की जिले के 4-5 शिक्षकों को जबलपुर संलग्न किया गया है। जबकि उक्त शिक्षको की पदस्थापना मण्डला जिले मे है और वेतन भी जिले से निकल रहा है साथ शासकीय पोर्टल मे उनकी पदस्थापना मण्डला जिले मे दिख रही है। पर वे अपनी सेवाएं जबलपुर मे दे रहे हैं। जबकि वैसे ही जिले मे शिक्षकों की कमी बनी हुई है। मान लिया जायेगा की उपायुक्त को अधिकार संलग्न करने का है किन्तु इस बात की जानकारी या सहमति जिले के विभागीय अधिकारियों से लेकर व्यवस्था की जानी चाहिए थी। किन्तु यहा ऐसा नही हुआ जिले मे सहायक आयुक्त कार्यालय मे इस संलग्नीकरण के खेल की जानकारी ही नही है। इस के बाद एक अहम बात निकलकर सामने आती है कि जब सहायक आयुक्त को यह संलग्नीकरण की जानकारी नही है तो फिर संलग्न किये गये शिक्षकों को जिले से कार्यमुक्त किस अधिकारी द्वारा बगैर सहायक आयुक्त मंडला की अनुमती के किया गया जो कि जांच का विषय है?
उपायुक्त का जिले के अन्दर भी संलग्नीकरण का चल रहा खेल-
संभागीय उपायुक्त जनजाति कार्य विभाग जबलपुर द्वारा बिना जिला प्रशासन की सहमति के एक स्कूल से दूसरे स्कूल संलग्न कर दिया जाता है जबकि इस बात की जानकारी का जिले मे सहायक आयुक्त को रहनी चाहिए है। क्योंकि जिले मे जब शिक्षा व्यवस्था के लिए सहायक आयुक्त को बैठाया गया तो उन्हें इस बात की जानकारी होनी चाहिए कौन से शिक्षक को उपायुक्त द्वारा संलग्न किया गया ताकि वहां शिक्षा व्यवस्था प्रभावित न हो और वहां शिक्षकों की भर पाई कराई जा सके पर यह सब खेल उपर ही उपर चल रहा है।
परीक्षा परिणाम हो सकता है प्रभावित –
एक ओर जिले मे शिक्षकों की कमी वहीं दूसरी ओर संभागीय उपायुक्त द्वारा अन्य जिलों मे या जिले के अन्दर शिक्षकों की सुविधा युक्त मन पसंद जगह मे अपना नजराना लेकर संलग्न तो किया जा रहा है पर इस बात का ध्यान दिया जाना आवश्यक है इस खेल से जिले के शासकीय स्कूलों का परीक्षण परिणाम भी प्रभावित हो सकते हैं। जिले के जानकारों का कहना है संलग्नीकरण को समाप्त कर बाहर सेवा दे रहे शिक्षकों को वापस किया जाये ताकि इस आदिवासी बाहुल्य जिले का परीक्षा परिणाम में सुधार हो सके और शासन की मंशा अनुरूप हो सहे।