मिलेट…. कब रोज की हर थाली तक पहुंचेगा ?

28

 

रेवांचल टाईम्स – मंडला, विगत वर्ष हमने इंटरनेशनल मिलेट ईयर मनाया । भारत सरकार ने खूब निरंतर प्रोत्साहित किया आज प्राचीन मोटा अनाज श्रीअन्न के नाम से जाना जाने लगा । मिलेट के प्रति जागरूकता बहुत बढ़ी इसके पौष्टिक तत्व की जानकारी अब लोग इंटरनेट पर खूब खोजते हैं । नई नई रेसिपी से इसका उपयोग भी बढ़ा ।
किसान को आर्थिक लाभ देने उसे प्रोत्साहित कर इसका रकबा बढ़ाए जाने हेतु भरसक प्रयास किए जा रहे जो प्रशंसनीय है।

पर ,मुख्य सवाल अब मेरा ये है किस तरह हमारे रोज के भोजन हमारी थाली में मिलेट पहुंचे। चावल गेहूं के मूल्य पर आए और इसका विकल्प बनकर हर थाली तक रोजाना खाने में मिलेट पहुंचे ।

मानव के शरीर में विकृति रोग दैनिक भोजन दैनिक दिनचर्या का असर डालती है। नियमित दूषित खानपान या नियमित गलत दिनचर्या ही हमारे स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डालती है। इसी तरह अच्छा भोजन सात्विक दिनचर्या भी जब नियमित होगी तभी सकारात्मक असर हमारे शरीर पर डालेगी। कहने का तात्पर्य है मिलेट का रोजाना इस्तेमाल से ही हमारे स्वास्थ्य को लाभ मिलेगा ।

कोई शासकीय आयोजन, दिन विशेष या कोई एक कार्यक्रम के दिन बस मिलेट का उपयोग हमारे शरीर को स्वास्थ्य रखने में मददगार सिद्ध नहीं हो सकता । शासकीय आयोजन या पहल तो जागरूकता और गति देने हेतु सहायक सिद्ध होते हैं । पर, मुख्य वजह क्या है जहां अब भी हमें कार्य करने की बहुत जरूरत है।

मेरा व्यक्तिगत विचार है कोदो कुटकी ज्वार बाजरा जैसे मोटे अनाज जिसे हम श्री अन्न या मिलेट कहते हैं मध्यम वर्गीय परिवार के लिए उसके चावल और गेहूं की दर पर मिले। जरूरी है। शासन की मुफ्त अनाज देने की योजना में मिलेट को भी मुफ्त दिए जाने हेतु शामिल किया जाना चाहिए । शासकीय उचित मूल्य दुकान यानी पी.डी.एस., आंगनवाड़ी, सरकारी अस्पताल, पोषण आहार केंद्र आदि जगहों में इस योजना को अमल करते हुए गति दी जावे। विगत आठ वर्षो से एफ.पी.ओ. में सी.ई.ओ. के रूप में कार्य करते हुए किसानों और शासन दोनो की बातों को समझा और प्रदेश और जिला प्रशासन, कृषि मंत्री, जनप्रतिनिधियों, मीडिया आदि को भी अपने ढेरो सुझाव को साझा करने का अवसर मिला । ऑनलाइन और आफलाइन ट्रेनिंग, प्रोग्राम में भी अब तक पच्चीस हजार से ज्यादा लोगों तक अपनी बात रखी और उम्मीद है शासन इस दिशा में और प्रयास करेगी।
आज ई-कामर्स वेबसाइट में इनकी दर 200 रुपए से 400 रुपए प्रति किलो दर पर उपलब्धता देखी गई। यदि ऑफलाइन मार्केट की बात करें तो भी जो छोटे शहर हैं, जहां इनका उत्पादन भी नियमित होता है वहां भी 150 रुपए प्रति किलो दर से कम कीमत में उपलब्धता नहीं हो पाती । जो चावल के दोगुने रेट से भी ज्यादा कह सकते हैं। आज चावल यानी धान एक एकड़ में अनुमानित 20 से 30 क्विंटल का उत्पादन होता है जिससे अनुमानित 60 प्रतिशत खाने योग्य चावल मिल जाता है । कोदो कुटकी एक एकड़ में तीन से चार क्विंटल का उत्पादन होता है और इससे चावल पचास प्रतिशत मिल पाता है ।मशीन के बाद भी हाथों से सफाई करने की जरूरत पड़ती है ।कारणवश, लागत मूल्य और बढ़ जाता है। धान के चावल, गेहूं के समतुल्य मूल्य लाने हेतु उन्नत बीज और आधुनिक कृषि पद्धति में टेक्नोलोजी का उपयोग जिससे मिलेट की पौष्टिकता कम न हो और आम नागरिक उपभोक्ता तक कोदो कुटकी ज्वार बाजरा जैसे मिलेट्स कम मूल्य पर सहज सुलभ उपलब्ध हो सके। काम किए जाने की जरूरत महसूस होती है।

उपरोक्त जमीनी समस्या के निराकरण के लिए पुनः किसान, शासन का एकजुट होकर ठोस प्रयास किया जाना जरूरी है। लक्ष्य सिर्फ एक ही हो कि, हर दिन की हमारी थाली में मिलेट हमारा मोटा अनाज श्रीअन्न उपलब्ध रहे मतलब हर वर्ग का व्यक्ति मिलेट का दैनिक उपयोग कर सके।

रंजीत कछवाहा
(सी. ई. ओ.)
कान्हा कृषि वनोपज प्रोड्यूसर कम्पनी लिमिटेड
बिछिया मंडला

instagram 1
Leave A Reply

Your email address will not be published.