लाखों करोड़ो खर्च फिर भी खानपान औऱ दूषित पानी से बच्चे पड़ रहे बीमार उपचार के लिए लाया गया सरकारी अस्पताल

"बीईओ सर मेरी बिटिया भी रहती पढ़ती है भेड़ बकरियों तरह परोस जा रहा खाना"

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मेरे अँगने में तुम्हारा क्या काम है प्राचार्य से करो शिकायत

रेवांचल टाईम्स – मंडला, आदिवासी बाहुल्य जिले में आजकल कानून व्यवस्था चौपट सी हो कर रह गई है और इस जिले में एक कहावत सच होती दिखाई पड़ रही है कि अंधे पिसे औऱ कुत्ते खाएं आज मंडला जिले में निवासरत बैगा आदिवासी के बच्चों को अच्छी शिक्षा और भविष्य सवारने के लिए केन्द्र सरकार हो या फिर राज्य सरकार तरह तरह की योजनाएं चला रही है जिसके लिए हर वर्ष करोड़ो अरबों रुपये पानी की तरह बहा रही है, पर जिम्मदारों की अनदेखी के चलते इस जिले में आजादी के बाद थोड़ा बहुत ही सुधार हो पाया है, विकास का ढिंढोरा पीटने वाले कभी जमी में उतर भी देखे की आज नगर से लेकर ग्रामीण अंचलों में कितना विकास हुआ है और जो सरकार से सरकारी धन मिला है क्या वह सही हाथों में पहुँचा है कि केवल कागजों में देख कर अपनी पीठ थपथपाई जा रही है।

जिले में संचालित स्कूलों के बद से बत्तर हालात…

सरकार की लाडली बहनो की बिटियों का कन्या परिसर में जुल्म ए सितम का बोलबाला है ! कन्या परिसर में भय खौफ का माहौल है जो अपना दर्द परिवार को बताती है ! सरकार शिक्षा के क्षेत्र में पानी की तरह पैसा बहा रही है वही रुपयों के भूंखे जिम्मेदार प्राचार्य और हॉस्टल अधीक्षक सरकार द्वारा बच्चो पर खर्च होने वाले पैसो में लूट सको तो लूट की नीति खेला चल रहा है !

शिक्षा के नाम पर चल रहा है बड़ा खेल…

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार मंडला जिले के विकास खण्ड वीजादांडी में एक ऐसा मामला सामने आया है जहाँ पर शासकीय कन्या शिक्षा परिसर बीजाडांडी का है, जहाँ पर एक फ़िल्मी गाना बीईओ साहब पर सटीक बैठता है कि मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है यह गाना बीईओ अवधेश दुबे की कार्यप्रणाली के हिसाब से ही शायद पहले ही गाया जा चुका हैं, इस संबद्ध में संजय बरकड़े पूर्व जनपद सदस्य ने बताया बीईओ सर मौखिक शिकायत में बताया कन्या परिसर मेरी भी बिटिया पढ़ती है भेड़ बकरियों की तरह खाना दिया जाता है, दाल में दाल नज़र नही आती है और सब्जी बहुत ही स्वादहीन होती है जो बिलकुल भी खाने योग्य नहीं है जो खाना दिया जा रहा है वह जानवर भी न खाए फिर भी बच्चों को दिया जा रहा है क्योंकि इन्हें पता है कि कौन और किसको पता चलेगा और समय समय मे सबको सब का हिस्सा पहुँच रहा हैं वही बच्चों को पीने के पानी की व्यवस्था भी सुचारू रुप से नहीं है कन्या पारिसर में बढ़ने वाले बच्चे दूषित पानी पीने को मजबूर है और जो पानी पी रहे जिस कारण से बीमार पड़ रहे, साहब मेरी बच्ची को परिसर में छोडो तो बीमार पड़ जाती है बीईओ ने बोला प्राचार्य से शिकायत नहीं किये उन्ही के अधीनस्थ है मुझे एक लिखित शिकायत दीजिए में अपने स्तर से कार्यवाही करवाता हूँ।
वही सूत्र बताते है बीईओ का हॉस्टलों से महीना बंदी बंधी है जो बच्चो को छाछ खुद मलाई मार रहा है इसी तारतम्य प्राचार्य गुप्ता जी को कन्या परिसर होने वाली अनिमितताएं के सबंध में पूरी जानकारी दी गई उनका कहना था की मुझे प्रमाण दो में कार्यवाही करूंगा इसी बीच एक 11वीं की छात्र से पूछा गया वह बोली दाल बहुत पतली बनती है तुरंत बाद आयुक्त और अधीक्षक के पत्र टाइप हुआ भेजे की नहीं वह प्राचार्य ही बता सकते है सूत्र बताते है की शिकायत के दुसरे दिन सुबह 8 बजे 15 बच्चो को सरकारी अस्पताल उपचार के लेके गए थे बताया गया कन्या परिसर के बच्चो को मीनू आधार पर खाना नहीं दिया जाता है दाल सब्जी ऐसी बनाई जाती है छन्नी से छान कर पता करना पड़ेगा दाल या सब्जी क्या बनी है खाना बनाने दो दो तीन तीन दिन का उपयोग किया जाता है रोज दाल चांवल ही देते है कभी कभी रात के भोजन में सब्जी रोटी दे देते है बच्चे नहाने के नदी जाते है।

मंडला जिले में सरकारी योजनाएं शून्य कागज़ों पूर्ण

आज प्रदेश सरकार हो या केन्द्र सरकार आदिवासी बालक बालिकाओं के लिए हजारों योजनाओ और लाखों रुपये खर्च कर रही है पर जिले में बैठे निक्कमे अधिकारी कर्मचारी इन गरीब आदिवासी बच्चों का मुंह का निवाला औऱ उनको मिलने वाली योजनाओं में डाका डाल कर अपना पेट भर रहे है क्योंकि आज इन गरीब आदिवासी बच्चों से ज्यादा आवश्कता जिले में बैठे बड़ी बड़ी कुर्सियों में बैठे अधिकारी कर्मचारी की आवश्कता है और जिस जिले में सन्तोष शुक्ला जैसे सहायक आयुक्त हो उस जिले का का तो बल्ले बल्ले में कमी नही हो सकती है आज झाबुआ से लेकर मंडला ओर मंडला से लेकर डिंडोरी औऱ डिंडौरी से लेकर मंडला के स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों से उनके दिल का हाल जान सकते है की आज वह कैसे अपनी नोकरी कर पा रहे और अब रही बात स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र छात्राओं के तो वो बेचारे क्या कर सकते है उन्हें अपना जीवन संवारना है ओर उन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान नही है इन अबोध बालक बालिकाओं को तो बस शिक्षा प्राप्त कर अपना भविष्य संवारना है पर इन्हें क्या पता कि इन्हें जो योजनाएं मिल रही है उस में भी बड़े बड़े डकैत बैठे है और उनका मुँह का निवाला छीनने में कोई कसर नही छोड़ रहे।

मध्यान्ह भोजन और छात्रावास में मिल छात्र छात्राओं को मिल रहा है घटिया भोजन

वही मंडला औऱ डिंडौरी जिला पुर्णतः आदिवासी बाहुल्य जिला घोषित है और इन जिलों में सरपंच से लेकर विधायक सांसद तक सभी आदिवासी समाज से है इसके बावजूद आज आदिवासियों के बच्चों को लोगो का ही लगातार शोषण होता जा रहा है इन जिलों में जनप्रतिनिधि औऱ जिला प्रशासन में बैठे जिम्मेदार सब के सब दिन दुगनी रात चुगनी तरक्की करने में लगे हुए है किसी को इन गरीब आदिवासियों की चिंता नही है, आज बड़े बड़े नेता मंत्री मंच से विकास के ढिंढोरा पीट रहे है पर इसकी जमी हक़ीक़त में कोई नही जाना चाहता हैं क्योंकि इन्हें मंच में बड़ी बड़ी बातें करने की आदत हो चुकी है। जमी हकीकत से कोई लेना देना नही है, आज मंडला हो या फिर डिंडौरी जिला हो किसी भी स्कूल के छात्रावास में जाकर देख सकते है कि बच्चों को किस स्तर की शिक्षा बच्चों और भोजन मिल पा रहा है, आज भी अधिकांश स्कूलों में शिक्षक नही अतिथि शिक्षक के बल में स्कूल संचालित हो रहे है अतिशेष शिक्षकों से खुल कर अबैध वसूली चल रही है और सरकार ने अटैच मेंट संलग्नीकरण बन्द है पर सहायक आयुक्त सभी नियम कानून अपने लागू कर के दनादन डिंडौरी से मंडला अटैच कर रहे है और मवई के शिक्षक जिला मुख्यालय मे लाये जा रहे है बस दक्षिणा दे और मनपसंद स्थान पर पदस्थ हो जाये क्योंकि सहायक आयुक्त सन्तोष शुक्ला के आगे सब नत्मस्तक नज़र आते चाहे वह जिला प्रशासन हो या फिर विधायक सांसद सबके सब बौने साबित हो रहे है। इसके पीछे की वजय बड़ी ही चौकाने वाली हैं।

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