सकरहा नदी के जीर्णोद्धार से हजारों की आबादी से पानी की किल्लत खत्म होना संभव
दैनिक रेवांचल टाइम्स – मंडला।खम्हरिया के दलदली पहाड़ से निकलकर लगभग दस किलोमीटर दक्षिण की ओर चलकर नर्मदा नदी में मिलने वाली सकरहा नामक नदी के जीर्णोद्धार कर देने से पीने और अन्य उपयोगी पानी के लिए हमेशा से तरसते आ रही लगभग तीन हजार की आबादी वाले तीन आदिवासी बाहुल्य गांवों की हजारों एकड़ खेती की भूमि के लिए पर्याप्त पानी का इंतजाम सुनिश्चित किया जा सकता है।खम्हरिया से समाजसेवी पी.डी.खैरवार ने बताया है,कि मोहगांव विकासखंड के अंतर्गत आदिवासी और बैगा बाहुल्य गांव खम्हरिया जो नर्मदा क्षेत्र दलदली पहाड़ के किनारे बसा हुआ है।इसी दलदली पहाड़ से सकरहा नाम की नदी निकली हुई है।जिसका बहाव खम्हरिया से उमरिया, सिंगारपुर और डोंगरगांव होते हुए लगभग दस किलोमीटर बहकर नर्मदा नदी में मिल गई है।इस नदी के दोनों ओर आदिवासी गोंड़ एवं राष्ट्रीय मानव जाति कहीं जाने वाली बैगा जनजाति का भी रहवास होता है।मुख्यतया इस वर्ग का जीवन स्तर जंगल पहाड़ से प्राप्त वनोपज,खेती और खेती हर मजदूरी पर निर्भर करता है।जिनको पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराना सरकार की मनसा भी है।
बता दे कि इस नदी से बारिश खत्म होते ही पानी का बहाव गायब हो जाता है।जबकि बारिश के बाद ही लोगों को पानी की ज्यादा जरूरत पड़ती है।तब इन गांवों के लोग,मवेशी और खेती की भूमि यह सब पानी-पानी के लाले पड़ जाते हैं। इस क्षेत्र में मवेशियों को पीने का पानी,लोगों को नहाने और अन्य जरूरत पूरी करने,खेतों में रवि और जायद की फसल पैदा करने आदि के लिए पानी बेहद जरूरी है।वैसे तो वर्षों से चली आ रही जनमांग के बाद खम्हरिया की इसी नदी की एक धार के उद्गम स्थान पर ही छोटा सा बांध हाल ही में बनाकर तैयार किया गया है। जिसमें इस वर्ष पहली बार ही पानी भरा गया है।जिससे सकरहा नदी में पानी का धीमा बहाव होना गर्मियों के दिनों में भी शुरू हो गया है।जिससे मवेशियों और नदी के किनारे बसाहटों के रहवासियों को नहाने व अन्य निस्तार के लिए पानी बहुत कुछ मिल रहा है।जिससे यह कयाश लगाया जा रहा है,कि इस नदी के उद्गम स्थान से जहां तक यह नदी का बहाव है,यानी नर्मदा नदी तक नदी क्षेत्र की सीमांकन करके नदी की चौड़ाई को आरक्षित करके इसके भीतर हुए पत्थर,मिट्टी से पुराव को हटाकर इसके दोनों ओर मजबूत मेंढ़ बना दिये जायें।साथ ही मेंढ़ के ऊपर पहुंच मार्ग बनाकर किनारे -किनारे तरह-तरह के पौधे लगा दिये जाएं तो निश्चित ही इस नदी के किनारे बसे बसाहट को निस्तार का पानी ही नहीं पीने और सिंचाई के लिए अब तक चली आ रही समस्या से निजात पाया जा सकता है।
बताना आवश्यक होगा कि मध्यप्रदेश शासन पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग मंत्रालय वल्लभ भवन भोपाल के आदेश क्रमांक 1160/MGNREGS-MP/NR-3/2024 के तहत् नमामि गंगे अभियान के क्रियान्वयन हेतु विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून से 15 जून तक इस आदेश के अनुसार ग्राम पंचायतों के अंदर नदी,कुंएं, बावड़ियों,तालाब,बांध जैसे जलस्रोतों के आसपास किये गये अतिक्रमणों को हटाकर उनको जनोपयोगी बनाने की मुहिम भी चलाया जाना है।इसी मुहिम में इस नदी का भी कायाकल्प किये जाने की अपील आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र की ओर से की गई है।