मनुष्य की चेतना का केन्द्र हैं श्री गणेश -पं. शिवम दुबे
रेवांचल टाईम्स – मण्डला। गणेश जी को केवल बाहरी रूप में न देखें, बल्कि उन्हें अपनी चेतना का केंद्र समझें। गणेश जी को अपने भीतर स्थापित करना चाहिए। गणेश जी की पूजा केवल सजग चेतना द्वारा की जा सकती है। गणेश जी की पूजन और आवाहन परब्रह्म के रूप में किया जाता है। परब्रह्म अर्थात वह एकमात्र ईश्वर, जो सभी वर्णनों और संकल्पनाओं से परे हैं। जिन-जिन योगियों ने ध्यान और चक्रों का अनुसंधान किया है, उन सबके अनुभव में आया है कि गणपति हमारे मूलाधार में वास कर रहे हैं। यह कपोल कल्पित नहीं है, वेदों में भी इसका उल्लेख है। आदि शंकराचार्य ने गणेश जी के स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा है, ‘अजं निर्विकल्पं निराकार रूपम, जिसका कभी जन्म नहीं हुआ, जहां कोई विकल्प या कोई विचार नहीं है और जिसका कोई आकार भी नहीं है; जो आनंद भी है और आनंद के बिना भी है और जो एक ही है, ऐसे गणपति परब्रह्म का रूप हैं; आपको मैं नमस्कार करता हूं। योगशास्त्र के अनुसार, गणेश जी रीढ़ की हड्डी के मूल में स्थित मूलाधार चक्र के स्वामी हैं जब हमारा मूलाधार चक्र सक्रिय होता है, तब हमें साहस का अनुभव होता है और उसके निष्क्रिय होने पर आलस्य और इच्छाओं की कमी का अनुभव होता है। मूलाधार चक्र में चेतना को गणेश जी के रूप में समझा गया है। गणेश जी का बाहरी स्वरूप, जो हमें दिखाई देता है, उसमें गहरा रहस्य छिपा हुआ है। गणेश जी बुद्धि और ज्ञान के देवता हैं। जब व्यक्ति भीतर से जाग्रत होता है, तभी वास्तविक बुद्धि का उदय होता है। गणेश अथर्वशीर्ष में हर जगह गणेश जी की उपस्थिति की प्रार्थना की जाती है। वे पंचतत्वों धरती, वायु, अग्नि, जल, आकाश में समाहित हैं और हर दिशा में व्याप्त हैं। इस प्रकार गणेश जी की पूजा और ध्यान से हमें अपने भीतर छिपी चेतना और गुणों को जाग्रत करने का अवसर मिलता है। गणेश जी की उपासना से हम उनके रहस्यों को समझ सकते हैं और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं। गणेश जी की उत्पत्ति की कहानी में उनकी प्रतीकात्मकता छिपी हुई है। इस कथा में शिवजी ने देवी पार्वती के शरीर के मैल से गणेश जी का निर्माण किया और फिर उनके सिर को हाथी के सिर से बदल दिया इस घटना का आशय यह है कि शिव जी ने छोटे मन और अशुद्धियों को हटा दिया। गणेश जी का हाथी का सिर अशुद्धियों को हटाने का प्रतीक है। पौराणिक कथाएं एक दृष्टि में अविश्वसनीय लग सकती हैं, लेकिन वे वास्तव में गहरे रहस्यों को उजागर करती हैं। ऐसी कहानियां जीवन के गहरे सत्य को समझाने में सहायता करती हैं। गणेश जी का स्वरूप केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी रहस्यमयी है। यदि आप गणेश जी के रूप और गुण पर ध्यान देंगे, तो इनके स्वरूप के भीतर छिपे गहरे वैज्ञानिक तथ्य उजागर होंगे। जब हम किसी के बारे में सोचते हैं तो उसके गुण अपने आप हमारे भीतर जाग्रत होने लगते हैं। हाथी निडर होता है और सीधा चलता है। वह मार्ग में आने वाले सभी अवरोधों को उखाड़ फेंकता है। जब हम हाथी के बारे में सोचते हैं तो हमारे ऐसे गुण सक्रिय हो जाते हैं, जो हमें निर्भीक बनाते हैं। अत:गणेश जी की पूजा से हमें हाथी जैसी स्थिरता और शक्ति का अनुभव होता है और हमारे भीतर उत्साह व ऊर्जा का संचार होता है। गणेश जी का वाहन चूहा एक गहन रहस्य को दर्शाता है, जो प्रतीकात्मक है। चूहा एक छोटे बीज मंत्र की तरह है, जो अज्ञान के आवरण को काटता है।