सत्य धर्म, मनिश्री समतासागरजी महाराज

11

रेवांचल टाईम्स – मंडला, जिले के पिंडरई आज पर्व का पाँचवा दिन है। दशलक्षणों में इसे सत्य धर्म कहा है। कहा गया है कि सृष्टि का संचालन परमेश्वर करता है और यह भी कहा गया कि सत्य ही परमेश्वर है तो फिर क्यों न यह माना जाय कि सत्य रूप परमेश्वर से ही सृष्टि का संचालन होता है। सत्य प्रतिष्ठित है, सत्य परमेश्वर है। ऐसे इस सत्य को आज समझना है। दरअसल सत्य तो एक प्रतीति है, अनुभूति है जो कि शब्दों के द्वारा व्यक्त नहीं की जा सकती। जो शब्दों के द्वारा व्यक्त होगी वह सत्य नहीं सत्यांश है । उसी सत्यांश के सहारे हमें शाश्वत् सत्य को उपलब्ध होना है। इसके लिये जरूरी है कि पहलें हमें उसकी प्रतीति हो और फिर प्राप्ति ।

सत्य हितमित प्रिय हो। हित का अर्थ अपना और पर का भला करने वाला हो। मित का अर्थ बोला गया परिमित हो, अनावश्यक न हो, मर्यादित हो। और प्रिय का अर्थ कठोर कर्कश मर्मभेदी न हो, श्रुति सुखद हो। मुख्य रूप से व्यक्ति ‘तीन कारणों से झूठ बोलता है। १) स्नेह, २) लोभ और ३) भय। घर परिवार या बाहरी किसी इष्ट मित्रादिक के प्रति रहने वाले स्नेह सम्बन्ध के कारण भी प्रायः झूठ बोली जाती है। लोभ के कारण भी अक्सर करके झूठ बोला जाता है। घन पैसे के लोभ में पड़कर आदमी न्याय नीति को छोड़ देता है और येन केन प्रकारेण समृद्ध होने के लिये असत्य का सहारा लेता रहता है। भय के कारण भी झूठ बोला जाता है। जीवन में ऐसे कई मौके आते हैं जब भयभीत होकर के झूठ का आलम्बन ले लिया जाता है। उस परिस्थिति में उस झूठ से वह अपनी सुरक्षा मानता है। किन्तु झूठ का जब पर्दाफाश होता है तो उसकी प्रामाणिकता खण्डित होती है, शाख गिर जाती है और घर परिवार पर अनेक आपत्तियों विपत्तियाँ आ जाती हैं। अन्याय अनीति पूर्वक किये गए झूठे व्यापार और काम-धन्धों से व्यक्ति चार दिन फल फूल सकता है किन्तु आगामी जीवन दुखद संकटमय ही रहता है। जबकि सत्य परेशान भले ही हो जाए पर अन्ततः यश उसी के हाथ लगता है। इसलिए कहा जाता है कि सत्य प्रताडित हो सकता है पर पराजित नहीं। अन्ततः संसार में यशकीर्ति सत्यवान की ही फैलती है।

instagram 1
Leave A Reply

Your email address will not be published.