पार्श्वनाथ की साधना के सामने कर्मठ कमठ भी हार गया मुनि श्री समता सागर जी महाराज
पिंडरई (मंडला )व्रती नगरी
रेवांचल टाईम्स – मंडला, जिले के पिंडरई में धरती अपने में समायी हई जडों में समान रूप से रस देती है, जड़ों का रस समान रूप से डालियों में जाता है किन्तु देखते क्या हैं कि एक जगह डाल में काँटे लग रहे हैं और एक जगह फूल आ रहे हैं। धरती ने रस देने में भेदभाव नहीं किया, पर लेने वाले की पात्रता तो होनी चाहिए और इसी पात्रता के अभाव में आया हुआ रस भी काँटा बन जाता है। फूल और कॉंटे के इस सन्दर्भ में समझने के लिए महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि कॉंटे पहले आते हैं। फूल बाद में और इसमें विशेष बात यह है कि फूल पहले चले जाते हैं और काँटे बाद तक यहाँ टिके रहते हैं। आज का यह सन्दर्भ तेईसवें तीर्थका भगवान पार्श्वनाथ के मोक्ष जाने से जुड़ा हुआ है। जैनग्रन्थों के अनुसार अतीत का इतिहास बतलाता है कि एक माँ के कमठ और मरुभूति दो पुत्र थे। जिसमें कमठ का जीवन काँटा बना और मरुभूति का जीवन फूल जैसा सुवासित
हुआ। मुनिश्री ने जैन परम्परा के अनुसार पार्श्वनाथ के अतीत के भवों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भव-भवान्तर में कमठ ने मरुभूति को कष्ट दिए, किन्तु उसके द्वारा दिया गया कष्ट मरुभूति के जीवन में निखार लाता गया। आग में तप करके जैसे सोना और ज्यादा चमकने लगता है, ऐसे ही पार्श्वनाथ का जीवन क्रमशः दैदीप्यमान होता गया। आज उन्हीं तीर्थंकर भगवान के निर्वाण दिवस को यहाँ पर मनाया जा रहा है। श्रावक जन श्रद्धा भावना से उनके प्रति लाडू चढ़ाकर जो पूजा कर रहे हैं, उसका उद्देश्य सिर्फ इतना ही है कि विषम से विषम परिस्थितियों में भी जीवन को समता-साधना में रहना चाहिए। मुनिश्री ने फूल और रोटी के प्रतीकों को रखते हुए कहा कि यदि तुम्हारे पास दो पैसे हों तो एक पैसे से तुम खरीदो रोटी और दूसरे से खरीदो फूल। रोटी तुम्हारे लिए जीवन देगी और फूल देगा जीने का तरीका। जीवन जीने की कला तो हमारे लिए फूल से ही मिलती है,उक्त उदगार मुनि श्री समता सागर जी ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहें।