मंडला के बिझौली गांव का अद्भुत मंदिर

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रेवांचल टाईम्स – मंडला, राचीन कल्चुरी कालीन विंध्यवासिनी माता मंदिर, जहां होती है मुरादें पूरी मण्डला ज़िले के आदिवासी बाहुल्य सबसे पिछड़ी निवास तहसील अपने आंचल में कई अनुपम, प्राचीन इतिहास छुपाए हुए है। आवश्यकता है इस क्षेत्र के शोधकार्य की, यह भी सही है कि समूचे निवास क्षेत्र एवं आसपास के गांव में कल्चुरी कालीन अवशेष बिखरे पड़े हैं, जिसे समय समय पर लोगों ने खेत-बगीचे, चबूतरों और अपने मकानों की नींव के पत्थर बना लिए, इस तरह कल्चुरी कालीन नगरी बिझौली के अवशेष धीरे-धीरे लुप्त होते गए। पुराने लोग बताते हैं कि ‘बिंझनगर’ यानी बिझौली के आसपास खजाने पाए जाने की आशंका लोगों के जनमानस में रहती है। बिझौली का विंध्यवासिनी दुर्गा मंदिर कल्चुरी कालीन अवशेषों के गवाह के रूप में दिनों दिन लोकप्रिय हो रहा है।जिले की तहसील निवास मुख्यालय से लगभग 5 कि.मी. दूर बिझौली गांव मे स्थित एक ऐसा विचित्र कल्चुरी कालीन मंदिर है, जहां नवरात्रि के पावन पर्व पर देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। इस अवसर पर भक्तजन विभिन्न स्वरूपों में मां की आराधना करते हैं। मंदिर अपने अद्भुत स्थापत्य और प्राचीनता के लिए जाना जाता है। मंदिर परिसर में स्थापित सूर्य देव की प्रतिमा को यहां देवी के रूप में पूजा जाता है, जो इस स्थान की एक अनोखी विशेषता है। इस प्राचीन मंदिर का जीणोद्धार 4 अप्रैल 2011 किया गया।
मंदिर के आसपास के लोग हर साल नवरात्रि में विशेष अनुष्ठान करते हैं। यहां की विशेषता यह है कि भक्तजन सूर्य देवता की उपासना करते हुए मां दुर्गा की आराधना भी करते हैं। नवरात्रि के समय विशेष रूप से हवन और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है, जिसमें गांव के लोगो के अलावा दूर-दूर से आए श्रद्धालु शामिल होते हैं। दुर्गा मंदिर नगरार नदी के तट पर प्राकृतिक सौन्दर्य के बीच हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यहाँ चैत्र और शारदेय नवरात्र में बहुत भीड़ रहती है। यहाँ की मान्यता है की निःसंतान दम्पति द्वारा संतान सुख की प्राप्ति की प्रार्थना करने पर संतान सुख की प्राप्ति होती है और मन्नत पूरी होने पर जवारे/ कलश स्थापित किये जाते है।
बिझौली गांव की सांस्कृतिक विरासत यहां की धार्मिक आस्था में झलकती है।यहां पर सूर्य देवता की पूजा एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे वे अपनी दैनिक जीवन के साथ जोड़ते हैं। गांव के लोग मानते हैं कि सूर्य देवता उन्हें शक्ति और ऊर्जा प्रदान करते हैं। नवरात्रि के दौरान, इस मंदिर में विशेष रौनक होती है, और लोग अपने दुख-दर्द भूलकर देवी की आराधना में लीन हो जाते हैं।
मंदिर परिसर में उत्सव का माहौल होता है। यहां भव्य झांकी सजाई जाती है, और भक्तजन मां के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। विशेष पूजा-अर्चना के साथ-साथ यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं, जिसमें स्थानीय कलाकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं।
चैत्र और शारदीय नवरात्र के दौरान यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। दूर-दूर से लोग इस अद्भुत स्थल की ओर आकर्षित होते हैं। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसे एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी देखा जाता है। यहाँ पर मन्नत मांगने वालों श्रद्धालुओं की बहुत भीड़ लगती है, जिसमे अधिकतर श्रद्धालु कीर्तन करते हुए माता के मंदिर तक पहुँचते है। मंदिर में लोग अपनी मन्नत पूरी होने के बाद यथा शक्ति प्रसाद अर्पित करते है. बदलते वक्त के साथ इस प्रतिमा की मान्यता भी बढ़ती चली गई. अब इसकी चर्चा पूरे मध्य प्रदेश में की जाती है. देशभर से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

बिझौली का यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक समृद्धि का भी प्रतीक है। नवरात्रि के अवसर पर यहां की पूजा-अर्चना, सूर्य देवता की उपासना और देवी मां के प्रति श्रद्धा, सब कुछ मिलकर एक अद्भुत अनुभव प्रस्तुत करता है। इस प्रकार, मंडला के इस अनोखे मंदिर की यात्रा हर भक्त के लिए एक अद्वितीय अनुभव होती है, जो उन्हें आस्था, संस्कृति और परंपरा से जोड़े रखती है।मंडला के अतिरिक्त जबलपुर, डिंडोरी, उमरिया, बालाघाट आदि जिले से भी श्रद्धालु यहाँ मन्नत लेकर पहुचते है। नर्मदा परिक्रमा पथ पर होने से यहाँ परिक्रमावासियों का जमावड़ा लगा रहता है। यहां की मंदिर समिति परिक्रमा वासियों के रुकने खाना प्रसाद का ख्याल रखती है। क्षेत्र के सोये हुए जनप्रतिनिधियों ने कल्चुरी कालीन अवशेषों को बचाने के लिए कभी कोई प्रयास नहीं किए।

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