खरी – अखरी भाजपा के खिलाफ नहीं मोदी की अधिनायकवादी प्रवृति के खिलाफ है जनादेश

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रेवांचल टाईम्स डेस्क – 2024 के जनादेश को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों, वरिष्ठ पत्रकारों सहित भाजपा एवं अन्य पार्टी नेताओं के साथ विचार विमर्श करने के बाद जो सारगर्भित निचोड़ सामने आया है उसके मुताबिक 2024 का यह जनादेश भाजपा के खिलाफ नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सियासी कारकूनी चौकड़ी के खिलाफ आया है। यह जनादेश सामुदायिक नफरत के जहर बोने वालों के खिलाफ आया है। यह जनादेश अर्थ व्यवस्था को कृत्रिम फुगावा देकर उसकी असली चूलें पूरी तरह हिला देने वालों के खिलाफ आया है। यह जनादेश एकाधिकारवादी और अहंकारी प्रवृति के बेरहम नाच के खिलाफ आया है। यह जनादेश लफ्फाजी, जुमलेबाजी, सर्वज्ञाता भाव, अति आत्ममुग्धता के खिलाफ आया है।

बेहतर होगा नरेन्द्र खुद को पीएम की दौड़ अलग कर लें वरना पालकी ढोने वाले कहार भी नहीं मिलेंगे

सभी का कहना है कि पीएम नरेन्द्र मोदी ने अपनी हेकड़ अदाओं के चलते भाजपा को 303 से 240 पर लाकर पटक दिया तथा मत प्रतिशत में छदाम भर बढोत्तरी नहीं कर सके। जिससे नरेन्द्र ने प्रधानमंत्री बनने का नैतिक व तकनीकी हक खो दिया है। इसके बावजूद भी अगर नरेन्द्र मोदी 2014 की तरह 2024 में भी प्रधानमंत्री बनने के लिए अड़ते हैं तो उन्हें अपनी पालकी उठाने वाले कहार भी मिलने वाले नहीं हैं। इसलिए नरेन्द्र मोदी के लिए बेहतर होगा कि वे सार्वजनिक इजहार करते हुए प्रधानमंत्री की दौड़ से खुद को अलग कर लें।

मार्गदर्शक मंडल में भेजे जायें इससे पहले निकल लें संकरी गली से

इससे पहले कि भाजपा के भीतर कुनमुनाहट शुरू हो और संघ अपनी दक्ष: मुद्रा में आये नरेन्द्र भाई कोई संकरी गली तलाश कर निकल लें। वैसे भी वे पिछले दशक भर यही कहते रहे हैं कि मैं तो जब मन करेगा झोला उठाकर फ़करीना अंदाज में निकल लूंगा। वर्तमान में चंद घनघोर लाभार्थियों, अनुचरनुमा हमजोलियों को छोड़कर सभी बेहद सलीके से नरेन्द्र भाई को मार्गदर्शक मंडल में भेजने के लिए आतुर बैठे हैं। इसके बावजूद भी अगर नरेन्द्र मोदी अपने जिद्दीपन को तिलांजलि नहीं देते हैं तो वे देशवासियों के मन से भी तिरस्कृत होगें और भाजपा की अल्पायु योग के कारक भी बनेंगे।

चर्चा के दौरान यह बात भी निकल कर आई कि नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक के राजनीतिक सफर पर एक आम व्यक्ति जो राजनीति के ककहरा का “क” भी नहीं समझता वह भी इतना तो बता सकता है की आत्ममुग्धता में विलीन यह व्यक्ति प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए अपनी अंतिम सांस तक संघर्ष करेगा और यही इसकी और पार्टी की दुर्गति का कारण भी बनेगी।

यह कहावत है सच होती दिख रही है – –
सबसे अच्छा तैराक डूब कर मरता है।
सबसे अच्छा सपेरा सांप के काटने से मरता है।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार

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