आकिंचन्य धर्म व्रतीनगरी पिंडरई मनिश्री समतासागरजी महाराज जी 

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रेवांचल टाईम्स – मंडला, आज पर्व का नववाँ दिन है। दशलक्षणों में इसे आकिंचन्य धर्म कहा है। आज का धर्म खाली होने का धर्म है। रिक्त और हल्का होने का धर्म है। यह यात्रा जो हमें निज स्वरूप तक, मुक्तिधाम तक ले जाती है उसमें हल्का और खाली होना बहुत जरूरी है। तराजू के जिस पलड़े पर ज्यादा वजन रहता है उसकी गति अधोगति रहती है किन्तु हल्का / कम वजनी पलड़ा स्वभाव से ही ऊध्वगति करता है। तुम्बी पानी में तैरने की क्षमता रखती है और उसका सहारा लेनें वाले को भी पार करा देती है, किन्तु उसमें कुछ लेप लगा दिया जाय, उसे भारी बना दिया जाय तो तैरने का स्वभाव रखने वाली वह तुम्बी भी पानी में डूब जाती है। इन उदाहरणों से सिद्ध होता है कि भार/वजन वाली वस्तु नीचे की ओर जाती है। जबकि हल्की / निर्धार दशा ऊर्ध्वगमन करती है। हिमालय जैसी पवित्र सिद्धालय की ऊँचाईयाँ पाने के लिए हमें बाहर का भार तो कम करना ही पड़ेगा, भीतर का भार भी कम करना पड़ेगा। संसार में रहने वालों की स्थितियों का जब विचार करते हैं तो तरह-तरह की चिंतन-चर्या दृष्टिगोचर होती है। मुख्य रूप से चार तरह की जीवन शैली में ही लोग जीवन जिया करते हैं –

 

१. कुछ लोक अकेले में रहते हैं, अकेले में जीते हैं। २. कुछ लोग अकेले में रहते हैं, पर भीड़ में जीते हैं। ३.कुछ लोग भीड़ में रहते हैं पर अकेले में जीते हैं । ४. कुछ लोग भीड़ में रहते हैं और भीड़ में ही जीते हैं। अकेले में रहना और अकेले में जीना सर्वश्रेष्ठ है। साधंक की उत्कृष्ट साधना है। और यदि इतना नहीं तो भीड़

 

• में रहकर अकेले में जीना भी एक साधना है। पर भीड़ में रहकर भीड़ में जीना तो क्या जीना? और फिर अकेले में रहकर भीड़ में जीना तो और ही बेकार है। शांति, साधना का आनन्द तो एकाकी जीवन में ही संभव है। क्योंकि इस बात को भली भाँति सभी जानते हैं कि जहाँ भीड़ है, वहाँ आवाज है और जहाँ आवाज है वहाँ आकुलता है, अशांति है। इसलिये इस धर्म को पाने के लिए एकाकी / एकत्व की साधना में उतरना होगा। परिचय, परिणय और परिणाम ये तीन शब्द हैं। परिचय क्या है? परिणय क्या है? और परिणाम क्या है? ‘मैं तू’ यह परिचय है। ‘मैं तू’ और ‘तू मैं’ परिणय है और ‘तू तू. मैं मैं’ यह परिणाम है। किसका परिणाम? परिचय और परिणय का। जहाँ एक से दो हुए तो वहाँ “तू तू, मैं मैं’ के अलावा परिणाम और

निकलेगा भी क्या? साथ रहकर भी हमें तूतू, मैं मैं से बचना है तो इस मिलन को तुम संयोग समझो साथ नहीं। मिलन और मिल जाने में बहुत अन्तर है। तुम सबसे हिलो मिलो तो लेकिन धुलो मिलो नहीं।

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