अनंत चतुर्दशी व्रत कथा….
रेवांचल टाईम्स – अनंत चतुर्दशी सबसे पहले श्रीकृष्ण ने इस व्रत की विधि युधिष्ठिर को बताई थी, जिसके बाद पांडवों ने सपरिवार इस व्रत को किया और समस्त समस्याओं से मुक्ति पाकर जीवनभर राजपाट का सुख भोगा. इसलिए अनंत चतुर्दशी व्रत को परंपरा और आस्था का प्रतीक माना जाता है.
जब द्रौपदी ने दुर्योधन को कहा अंधों की संतान अंधी
एक बार युधिधिष्ठर ने राजसूय यज्ञ किया और यज्ञ मंडल का निर्माण बहुत अद्भुत और मनोरम था, यज्ञ मंडल ऐसा बनाया गया था कि, जल भी भूमि और भूमि भी जल की तरह प्रतीत हो रही थी. कोई भी उस मंडल को देखकर धोखा खा सकता था.
कहीं से दुर्योधन जब टहलते हुए आते तो वह भी भूलवश यज्ञ-मंडल में गिर गए. इस पर द्रौपदी ने उन्हें ‘अंधों की संतान अंधी’ कहकर उपहास किया. लेकिन यह बात दुर्योधन के मन में बैठ गई और उसने इसका बदला लेने की ठान ली. बदला लेने के लिए ही उसने चाल चली और पांडवों को जुए में हराकर पराजित किया.
जुए में पराजित होने के बाद पांडवों को 12 वर्षों तक वनवास का कष्ट भोगना पड़ा. एक बार वन में श्रीकृष्ण आए. युधिष्ठिर ने कृष्ण ने इस कष्ट से मुक्ति का उपाय पूछा. तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को परिवार सहित अनंत चतुर्दशी का व्रत करने को कहा. साथ ही श्रीकृष्ण ने उन्हें इस व्रत के संबंध में एक कथा भी सुनाई जो इस प्रकार है-
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा
प्राचीन काल में सुशीला नाम की एक कन्या था, जिसका विवाह कौण्डिन्य ऋषि के साथ हुआ. एक बार कौण्डिल्य ऋषि की नजर पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनंत सूत्र पर पड़ी. हाथ में बधे सूत्र को देख पहले तो वह आश्चर्चकित हुआ और पत्नी से ये तुमने मुझसे अपने वश में करने के लिए अपने हाथ में यह सूत्र बांधा है?
पत्नी ने उत्तर दिया नहीं, यह तो भगवन अनंत का पवित्र सूत्र है. लेकिन कौण्डिन्य ऋषि को पत्नी के बात पर विश्वास नहीं हुआ और उसने अनंत सूत्र को वशी डोर समझ तोड़कर अग्नि में डालकर नष्ट दिया.
इसका परिणाम यह हुआ कि कौण्डिन्य ऋषि की सारी धन और संपत्ति भी नष्ट हो और वे बुरी स्थिति में अपना जीवन बिताने लगे. पत्नी ने उन्हें इस दरिद्रता का कारण बताते हुए कहा कि, आपने भगवान का अनंत सूत्र नष्ट किया था, यह उसी का परिणाम है.
तब कौण्डिन्य ऋषि ने प्रायश्चित करने की ठानी और वन में चले गए. वे हर किसी से अनंत देव का पता पूछते. एक दिन भटकते-भटकते वे थक कर भूमि पर गिर पड़े. कभी उसे अनंत देव के दर्शन हुए.
भगवान ने कौण्डिन्य ऋषि से कहा, तुमने जो अनंतसूत्र का अपमान किया, यह सब उसी का फल है. अगर तुम इसका प्रायश्चित करना चाहते हो तो तुम्हें चौदह वर्षों तक निरंतर अनंत व्रत करना होगा. इसके बाद तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति फिर से प्राप्त हो जाएगी. कौण्डिन्य ऋषि ने ऐसा ही किया और उसे अपनी खोई संपत्ति फिर से प्राप्त हुई,
इसलिए कहा जाता है कि, मनुष्य अपने पूर्ववत् दुष्कर्मों का फल ही दुर्गति के रूप में भोगता है. लेकिन अनंत व्रत के प्रभाव से सारे पाप नष्ट होते हैं और जीवन में सुख-शांति प्राप्त होती है।
पं मुकेश जोशी 9425947692