शहीद हीरन बैगा के घर पहुंचे पूर्व विधायक दरबू सिंह उइके, सरकार से मांगा न्याय
कान्हा नेशनल पार्क के जंगलों में गूंज रही हैं गोलियों की आवाजें, बैगा जनजाति की जिंदगी पर मंडरा रहा संकट....
रेवांचल टाईम्स – मंडला कान्हा नेशनल पार्क, जो कभी शांति और प्रकृति की गोद में बसा एक स्वर्ग था, अब गोलियों की गूंज से कांप रहा है। 9 मार्च को चिमटा कैंप और खजरई के बीच पुलिस और नक्सलियों के बीच हुई भीषण मुठभेड़ में विशेष संरक्षित जनजाति के युवक हीरन बैगा की मौत हो गई।
हीरन बैगा, जो जंगल से तेंदू पत्ता, चार, चूरूनू पत्ता इकट्ठा कर अपनी जीविका चलाता था, उसे हिंसा की इस आग ने निगल लिया। इस त्रासदी के बाद भी सरकार की चुप्पी और प्रशासनिक उदासीनता ने पीड़ित परिवार को और गहरे अंधकार में धकेल दिया है।
दरबू सिंह उइके ने सरकार की नीतियों पर उठाए सवाल
14 मार्च को पूर्व विधायक और गोंडवाना मुक्ति सेना के नेता दरबू सिंह उइके पीड़ित परिवार से मिलने उनके घर पहुंचे। उन्होंने हीरन बैगा की मौत को प्रशासनिक लापरवाही और असंवेदनशील नीतियों का नतीजा बताते हुए सरकार को घेरा।
उन्होंने कहा,
“हीरन बैगा की शहादत पर सरकार ने अब तक कोई जिम्मेदारी नहीं ली है। न कोई मंत्री आया, न सांसद ने सुध ली। केवल एक मजिस्ट्रेट जांच की औपचारिकता निभाई जा रही है। सरकार नक्सल उन्मूलन के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च करती है, लेकिन जंगलों में रहने वाले मासूम बैगा आदिवासियों की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है।”
हीरन बैगा के परिवार को न्याय दिलाने की मांग
दरबू सिंह उइके ने सरकार से मांग की कि—
1. हीरन बैगा को शहीद का दर्जा दिया जाए।
2. उनके परिवार को 5 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की जाए।
3. परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए।
4. कान्हा नेशनल पार्क को पूरी तरह से नक्सल मुक्त किया जाए, ताकि पर्यटक बिना भय यहां आ सकें।
“जंगल में बंदूकों की नहीं, विकास की जरूरत है”
दरबू सिंह उइके ने कहा कि नक्सली और पुलिस के बीच चल रहे इस संघर्ष में सबसे ज्यादा नुकसान जंगल में रहने वाले निर्दोष आदिवासियों का हो रहा है। उन्होंने सरकार को चेताया कि यदि शीघ्र ही आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो गोंडवाना मुक्ति सेना आंदोलन के लिए मजबूर होगी।
कान्हा में क्यों बढ़ रही है हिंसा?
वही जानकारी के अनुसार कान्हा नेशनल पार्क में नक्सलियों की मौजूदगी और लगातार हो रही मुठभेड़ों से स्थानीय लोगों में भय का माहौल है। जंगल में आजीविका के लिए जाने वाले बैगा समुदाय के लोगों को अब हर दिन बंदूक की नली का सामना करना पड़ रहा है।
यह सवाल उठता है कि जब सरकार नक्सलवाद उन्मूलन के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, तो आखिर कान्हा का इलाका नक्सली गतिविधियों का अड्डा क्यों बन गया?
अब आगे क्या?
दरबू सिंह उइके ने साफ कर दिया है कि यदि सरकार जल्द हीरन बैगा के परिवार को न्याय नहीं देती, तो गोंडवाना मुक्ति सेना बड़े आंदोलन की तैयारी करेगी।
हीरन बैगा की मौत ने जंगल में रहने वाले हजारों आदिवासियों के अस्तित्व पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। अब देखना होगा कि सरकार जागती है या फिर इस जंगल की शांति को हमेशा के लिए गोलियों की गूंज में खो जाने देती है।
