जय-भारती,जय-भारती,जय-भारती,जय-भारती।
“जय-भारती!”
…………………….
जय-भारती,जय-भारती,जय-भारती,जय-भारती।
कोटि-कोटि कंठों की ध्वनि ,सदा ये पुकारती।
माटी में चंदन की ख़ुशबू ,हरीतिमा ये धारती।
जय-भारती,जय-भारती,जय-भारती,जय-भारती।
हिमगिरि है इसका रक्षक ,जो खडा़ विश्वास से।
दे रहा नव-प्रेरणा ,एक नूतन-आस से।
दक्षिण में सागर की लहरें,जिसके चरण पखारती।
जय-भारती,जय-भारती,जय-भारती,जय-भारती।
गौतम और गांधी की धरती,गर्व इस पर कर रहे।
मिल रही नवचेतना ,आनंद उर में भर रहे।
स्वयं देवगण भी अवतार लेकर,उतारें इसकी आरती।
जय-भारती,जय-भारती,जय-भारती,जय-भारती।
विविध-रंगी,सुमनों का उपवन,कहलाता यह देश है।
भारत-धरा का देखिए,कैसा मृदुल परिवेश है।
ज्यों खिल रही हो,वाटिका में,सुरभित मालती।
जय-भारती,जय-भारती,जय-भारती,जय-भारती।
गंगा-यमुना-कावेरी ने,जिसको सिंचित है किया।
ऐसी धरा को देखकर ,मन सदा हर्षित हुआ।
“यमुनेश्वरी”की लेखनी,सदा ये पुकारती।
जय-भारती,जय-भारती,जय-भारती,जय-भारती।
:वल्लभ यमुनेश्वरी•नैनपुर•