शिक्षा के मंदिर मे चलता कालेधन का कारोबार यह शिक्षा है या व्यापार !

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रेवांचल टाईम्स – देश मे आज शिक्षा व्यापार बन कर रह गई है शिक्षा का स्तर दिन व दिन गिरता नज़र आ रहा है। आजकल जहा देखो वहा शिक्षा का स्तर बहुत गिर रहा है। और लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी जैसी शिक्षा आज से 20 या 30 साल पहले सरकारी स्कूलों में मिलती थी वैसी नहीं मिल रही है। उसका सीधा अर्थ यही हे कि कही न कही सभी चीजों का निजीकरण के नुकसान अब दिखने का चालू हो गया हे।

अब सही तरह से सोचे तो डिग्री और शिक्षा एक पैसे का खेल बन गया हे। और हद तो तब हो जाती हे की जिसने पीएचडी की हो उसने किस विषय पे और किस थीसीश में पीएचडी की डिग्री ली हे वह तक पता नहीं। और उससे भी आगे जाए तो एक सीए की हुई लड़की ने सादी होने तक 7500 में जॉब की और वो जॉब न चली जाए इसके लिए माफी भी मांगी। यह सब आंखों देखी और मेरे सहपाठी के साथ घटी हुई सच्ची बाते हे और वह भी गुजरात में ।तो आए जानते हे कि इसकी नींव कहा हे और क्यों ऐसा हो रहा हे।

पहले तो यह शिक्षा का कारोबार कैसे चलता हे वह जानना पड़ेगा। ज्यादातर शहरों में अभी प्राइवेट स्कूलों के चलन बढ़ गए हे सामने सरकार ने भी सरकारी स्कूलों पे ध्यान नहीं दिया अब यह एक शिक्षण माफिया में परिवर्तित हो गया हे। जहां पैसे और बड़ी बड़ी बाते और बहुत सारे मार्क के अलावा कोई चीज नहीं होती हे।

पहले यह जानिए के 20 साल पहले बोर्ड में अव्वल नबर में 1 से 10 होते तो उसमें ज्यादा से ज्यादा 12 से 18 विद्यार्थी होते लेकिन अब वही संख्या 70 से 80 हो गई हे। यह भी इस खेल की ही एक कड़ी हे। ऐसे बहुत सारे खेल और तालमेल हे जो पैसे और बड़े बड़े नेताओं और शिक्षण माफिया लोगों और सिस्टम के साथ खेलता रहता हे।

अब जानते हे की ज्यादातर प्राइवेट स्कूलों में एक ट्रस्ट के अंतर्गत आती हे। और वही ट्रस्ट से सारा संचालन होता हे। बस जब आप फीस जमा कराते हो तब ही यह सब कारोबार आपके सामने आ जाएगा। आप घोर से देखना की वहां स्कूल फि लिखा हे , डोनेशन लिखा हे या ट्यूशन फि, ऐसे अलग अलग कितने क्लॉज आने को चालू हो गए हे। जैसे की खेल , टूर, आउट डोर वगैरा। तो यह साफ हो गया हे कि कोई नियम हे जिसको ताक ताक करके इसको पैसे ऐंठने की पूरी छूट मिली हे। और वह बस दिन प्रतिदिन इसी कार्य में लगे रहते हे।

इससे आगे जाए तो कितनी शाला ए एसी भी हे जो अपने शिक्षकों को बैंक में पगार देके वापिस रोकड़ रूप में ले लेती हे। वह एक शिक्षक की मजबूरी हे और यह शिक्षण माफियाओं का डर।! अब इन सब में जो रह जाता हे जो छूट जाता हे वह हे शिक्षण।?

इन सभी शिक्षण माफिया गैंग रोज रोज नए तौर तरीको से पैसे ऐंठने के रास्ते ढूंढते हे। और सोची समझी साजिश की तहत लोग इसके शिकार बन गए हे। इसमें जो मूल भाव का शिक्षण हे वही गायब हो गया हे। और बस मार्क्स और स्कूलों की छवि चमकाने के लिए ही शिक्षण रह जाता हे। अब सोचो जिस शिक्षण की नींव हि काले धन और उसका सेटलमेंट करने के लिए बनी हे वहा पढ़ रहे बच्चो को क्या शिक्षण मिलता होगा?! क्या यह संभव हे कि जहां शिक्षण संस्थानों खुद ही की नींव गलत हो वहा से कोई सही शिक्षा पा सके।! क्या यह भी संभव हे के अगर आगे बढ़ भी गया तो यह नींव जानने के बाद वो आदमी अपने आपको एक सुरक्षित और भ्रष्टाचार मुक्त भारत दे सके। शिक्षण संस्थान में होते शिष्टाचार से भ्रष्टाचार को अगर नहीं रोका गया तो अब नीचे लिखी लाइन ही सब बोलेंगे और कोई भी संस्थानों का कुछ भी महत्व नहीं रहेगा यह पक्का हे।

सोच समझ के ना की पढ़ाई जिसने, उसने जीवन बिगाड़ दिया।
और सोच समझके की पढ़ाई जिसने, उसने भी क्या उखाड़ लिया।।

बस यही वाक्य अभी 10% केसों में लागू होते दिख रहे हे अगर यही व्यवस्था से शिक्षण प्रणाली चली तो वह 90% हो जाएगी।
जय हिंद ।
– लेखक :- प्रतिक संघवी राजकोट

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