खरी – अखरी… गठबंधन की सरकार चलाना मतलब दोधारी तलवार पर चलना मोदी में है क्या अटल जैसा बुध्दि – विवेक ?

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रेवांचल टाईम्स डेस्क – 18वीं लोकसभा के चुनाव परिणाम आ गये हैं । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने परम्परानुसार राष्ट्रपति को इस्तीफा भी सौंप दिया है। राष्ट्रपति ने इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया है। नई सरकार गठन के लिए रास्ता साफ हो गया है। चुनाव परिणाम बताते हैं कि किसी भी पार्टी को अपने बूते सरकार बनाने का जनादेश नहीं मिला है। भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई है उसके बाद कांग्रेस पार्टी का नम्बर आता है। पिछले दो चुनावों (2014,2019) में भारतीय जनता पार्टी को अपने बूते सरकार बनाने का जनादेश मिला था और नरेन्द्र मोदी की अगुआई में सरकार भी चलाई गई है। 20 साल पहले अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई वाली मिलीजुली सरकार के बाद पहली बार भाजपा को फिर से मिलीजुली सरकार बनाने का मौका मिलने जा रहा है।

मगर तब के नेतृत्व और परिस्थितियों से आज की परिस्थितियां और नेतृत्व में जमीन आसमान का फर्क है। जहां अटल बिहारी वाजपेयी को विपक्षी भी मान सम्मान देते थे वहीं आज नरेन्द्र मोदी को वह सम्मान नहीं मिल रहा है। जहां बाजपेई सभी को साथ लेकर लोकतांत्रिक तरीके से काम करने में विश्वास रखते थे वहीं नरेन्द्र मोदी एकला चलो और अधिनायकवादी तरीके से काम करते रहे हैं। जहां बाजपेई को राजनीतिक रूप से धुर विरोधी कही जाने वाली पार्टी कांग्रेस भी सपोर्ट करती रही है वहीं आज की स्थिति में कांग्रेस और मोदी के बीच तलवारें खिंची हुई है।

उन्हीं धुर विरोधी नीतियों वालों का साथ चाहिए जिनकी सरेआम इज्ज़त उतारी गई है

सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी मोदी भाजपा सरकार बनाने के लिए दोराहे पर खड़ी हुई है। सत्ता की हवस पूरी करने के लिए मोदी को ऐसे दो आदमियों के साथ की जरूरत है जो मोदी की नीतियों के धुर विरोधी हैं। मोदी ने भी पिछले 10 सालों में दोनों को सार्वजनिक तौर पर राजनीतिक मंचों से बेइज्ज करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। मोदी ने एकबार सार्वजनिक मंच से चंद्रबाबू नायडू के लिए कहा था कि “वे याद दिलाते हैं कि वे मुझसे बहुत सीनियर हैं, इसमें कोई विवाद नहीं है। आप सीनियर हैं इसलिए आपके सम्मान में मैंने कोई कमी नहीं छोड़ी। आप सीनियर हैं दल बदलने में। आप सीनियर हैं नये – नये दलों से गठबंधन करने में। आप सीनियर हैं अपने खुद के ससुर की पीठ में छुरा भोंकने में। आप सीनियर हैं एक चुनाव के बाद दूसरे चुनाव में हारने में। हाल ही में आंध्र प्रदेश की चुनावी सभा में भाजपा नेता अमित शाह ने कहा था कि चंद्रबाबू नायडू से बड़ा अवसरवादी नेता भारत के इतिहास में आज तक देखने को नहीं मिला। वे 1983 में कांग्रेस को छोड़कर एनटीआर के साथ आये। 1989 में एनटीआर की पीठ में छुरा भोंक कर खुद मुख्यमंत्री बन गये। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी वाले एनडीए में शामिल हो गए। जैसे ही एनडीए सत्ता से बाहर हुई ये भी एनडीए से खिसक गए। 2014 में मोदी हवा को देखते हुए फिर से एनडीए में आ गए। 2019 में मोदी की बिदाई की आशंका के चलते एकबार फिर से एनडीए छोड़ गए। अब 2024 के चुनाव में इन्होने मंसूबे पाल रखे हैं कि मोदी सरकार बनी तो ये फिर से एनडीए में आ जायेंगे तो वे समझ लें कि उनके लिए एनडीए के दरवाज़े हमेशा हमेश के लिए बंद हो चुके हैं। कमोबेश यही सब कुछ नितीश कुमार के लिए भी कभी कभार कहा जाता रहा है। चंद्रबाबू नायडू ने भी 2019 में नरेन्द्र मोदी को खूंखार आतंकवादी के साथ ही घोटालेबाज, भृष्टाचारी तक कहा था।

सोचता हूं कि वे कितने मासूम थे, क्या से क्या हो गया देखते-देखते

नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि सत्ता पाने की खातिर ऐसा भी एक दिन आयेगा कि जब उन्हें अपने धुर विरोधी विचारधारा वाले नितीश बाबू और चंद्रबाबू को मनाने के लिए उनके सामने मुजरा करना पड़ेगा। और वो दिन आ भी गया। सार्वजनिक तौर पर लानत मलानत करवाने के बाद चंद्रबाबू और नितीश बाबू दोनों ने मोदी भाजपा को अपना समर्थन देने का ऐलान कर दिया है । मगर सवाल यह है कि कब तक केर – बेर साथ निभा पायेंगे ? नितीश कुमार अभी भले ही एनडीए में हैं अगले पल वे कहां होंगे खुदा तो छोडिए वे खुद भी नहीं जानते !

किसी के सगे नहीं रहे !

इतिहास साक्षी है कि जिसने भी नरेन्द्र मोदी का साथ दिया है उसका राजनीतिक वजूद मिटा दिया गया है। जिसमें केशूभाई पटेल, हरेन पांड्या, शंकर सिंह बाघेला, संजय जोशी, प्रवीण तोगड़िया, विनय कटियार, उमा भारती, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा सहित कई नामचीन खांटी भाजपाई शामिल हैं। इसी तरह दूसरी पार्टी के जिन नामचीन नेताओं ने भाजपा को समर्थन दिया है वे सभी अजगर का निवाला बने हैं फिर चाहे वो उध्व ठाकरे हों या फिर नवीन पटनायक या फिर जगनमोहन रेड्डी। इसी कड़ी में मायावती, बादल, दुष्यंत चौटाला, जयललिता, महबूबा मुफ्ती भी शामिल हैं। किस्मत अच्छी थी तो नितीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू अजगरी निवाला बनते – बनते रह गए। इतना ही नहीं समय की बलिहारी है कि आज वे दोनों भाजपा की लगाम बन गये हैं।

नजर हटी – दुर्घटना घटी

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नितीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू ने मोदी भाजपा को समर्थन दे तो दिया है इसलिए “नजर हटी – दुर्घटना घटी” की तर्ज पर उनका निगला जाना भी तय है आज नहीं तो कल ! दोनों के पास हैं ही कितने सांसद – दर्जन, डेढ दर्जन। आज की स्थिति में दुनिया के सबसे अमीर राजनीतिक दलों में शुमार भाजपा को अपनी फितरत के मुताबिक ना उन्हें खरीदने में परहेज होगा ना उन्हें भाजपा के हाथों बिकने में ! यदि दोनों बाबुओं ने असाधारण ध्यान (EXTRA ORDINARY ATTENSION) नहीं दिया तो बलि के लिए बकरीदी बकरे का कटना भी तय है।

हाय – हाय क्या मजबूरी

देखा जाय तो भाजपा को समर्थन देने की मजबूरी ना तो चंद्रबाबू नायडू को है ना ही नितीश कुमार को । आंध्र प्रदेश में नायडू के पास इतने विधायक हैं कि वह भाजपा समर्थन के बगैर भी अपनी सरकार सरपट दौड़ा सकते हैं। इसी तरह की स्थिति नितीश कुमार के साथ भी है। बिहार में वे जब चाहें तब राजद की गोद में जाकर बैठ सकते हैं। फिलहाल तो यही दिख रहा है कि उत्तर और दक्षिण के दो मदारी मिल कर नचायेंगे बंदर या यूं कहें कि दो बाबुओं की बैसाखी का सहारा होगी मोदी सरकार की गारंटी। हारे के सहारे – श्याम हमारे।

बिना शर्त समर्थन राजनीति का सबसे बड़ा झूठ

मोदी को समर्थन दे रही पार्टियों के नेताओं द्वारा कहा जा रहा है कि वे मोदी को बिना शर्त समर्थन दे रहे हैं, हमें पद का कोई लालच नहीं है, जबकि राजनीति का ककहरा भी नहीं समझने वाला जानता है कि राजनीति में बिना स्वार्थ कोई किसी के कटे में शिवांबू भी नहीं करता। राजनीति का सबसे बड़ा झूठ है बिना शर्त समर्थन। जहां तक चंद्रबाबू नायडू और नितीश कुमार की बात है तो इनका राजनीतिक सफर ही बताता है कि ये पद के बिना जल बिन मछली जैसा तड़फते हैं। पद और अपनी स्वार्थपूर्ति की खातिर इन्होंने मोदी की तरह कपड़े बदलने की तर्ज पर अलग – अलग पार्टियों के साथ गठबंधन किये हैं।

कौन नहीं चाहता मंत्री बनना

राजनीति में तो दो – एक अदद सांसद या विधायक रखने वाला दल भी मंत्री पद चाहता है तो फिर 16 सांसद वाली टीडीपी, 12 सांसद वाली जदयू, 7 और 5 सांसदों वाले शिवसेना व लोजपा बिना मंत्री पद और वह भी मलाईदार मंत्रालय की शर्त के बिना मोदी को सरकार बनाने के लिए समर्थन दें देंगे अविश्वसनीय तथा नामुमकिन है। सोशल मीडिया पर तो बकायदा खबरें वायरल हो रही है कि चंद्रबाबू नायडू (टीडीपी-16), नितीश कुमार (जदयू-12), एकनाथ शिंदे (शिवसेना-7), चिराग पासवान (लोजपा-5) सहित 2 – 1 सांसद वाली जयंत चौधरी (रालोद-2), पवन कल्याण (जेएनपी-2), कुमारस्वामी (जेडीएस-2), प्रमोद बोरो (यूपीपीएल-1), आई एस सुब्बा (एसकेएम-1), अनुप्रिया पटेल (अपना दल-एस-1), अतुल बोरा (एजीपी-1), प्रफुल्ल पटेल (एनसीपी-1), जीतनराम मांझी (हम-1), सुदेश महतो (आजासू-1) ने भी सरकार में हिस्सेदारी चाहते हैं ।

बकायदा शर्तिया मांगों की लिस्ट सौंपे जाने की खबर

सरकार गठन के पहले ही टीडीपी ने लोकसभा अध्यक्ष के साथ ही सड़क परिवहन, ग्रामीण विकास, जल शक्ति, आवास एवं शहरी, मानव संसाधन, वित्त, कृषि व आईटी मंत्रालय के साथ ही 5-6 कैबिनेट मंत्री तथा राज्य मंत्री, जेडीयू ने रेल, वित्त, गृह मंत्रालय के साथ 3-4 कैबिनेट मंत्री व राज्य मंत्री बनाये जाने की शर्तिया मांग की है। देखना होगा कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनने की हवस पूरा करने के लिए किन – किन क्षत्रपों की मांगे मानकर कौन – कौन सा मंत्रालय देते हैं। वैसे देखा जाए तो क्षत्रपों द्वारा जो मंत्रालय मांग गये हैं तो उसके बाद मंत्रालय रूपी शरीर में किडनी ही बचती है। सरकार बचाने के लिए कोई यह भी मांग ले तो चौंकना मत। (खरी – अखरी ऐसी किसी लिस्ट की पुष्टि नहीं करता)

आपदा में अवसर हुआ साकार

एनडीए ने नरेन्द्र मोदी को गठबंधन का नेता चुन लिया है। अभी भाजपा संसदीय दल में नरेन्द्र मोदी को नेता चुना जाना बाकी है जिसकी चाबी कहीं न कहीं आरएसएस के हाथ में बताई जा रही है और वहां से मोदी के लिए शुभ संकेत नहीं मिल रहे हैं ! देखिए आगे – आगे होता है क्या। फिर भी अगर नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने भी तो दस साल बाद पहली बार मोदी सरकार – एनडीए सरकार कही जायेगी जिसकी लगाम दो अति महत्वाकांक्षी अवसरवादियों के हाथ में होगी।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार

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