नदी, नालों ,झिरिया का पानी पी रहे लबेदा के ग्रामीण

आधा दर्जन परिवार के लोग वर्षो से इन्ही जल श्रोतो पर है आश्रित

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दैनिक रेवांचल टाइम्स बजाग- जल ही जीवन है यह नारा तो प्रायः आपने दीवारों पर जरूर लिखा देखा होगा ।परंतु दूषित पानी पीना सेहत के लिए हानिकारक है इस तरह की बाते शायद ही कहीं लिखी हो ।क्षेत्र के ग्रामीण एवं वन अंचलों में रहने वाली अधिकांशत : आदिवासी समुदाय की आबादी कुएं झिरिया, व नदी नालों का पानी पीने को विवश है सरकार के घर घर शुद्ध पेयजल पहुंचाने के तमाम प्रयासों के बीच भी आदिवासी समुदाय का एक तबका आज भी दूषित पानी पीने मजबूर है वनग्रामों में शुद्ध पेयजल की कम उपलब्धता होने के कारण लोगो को दूषित पानी पीना पड़ रहा है।और लोग कई तरह की बीमारियों का शिकार भी हो रहे है अभी हाल ही में बरसात के मौसम में दूषित पानी के सेवन से ग्रामीण अंचलों में डायरिया जैसी बीमारियों के प्रकोप फैलने की जानकारी आई थी।फिर भी ऐसे स्थानों को चिन्हित नही किया गया जहा लोग आज भी दूषित पानी के जलश्रोतो पर निर्भर है विख. बजाग की ग्राम पंचायत बछर गांव के अंतर्गत वनग्राम लबेदा के ग्रामीण काफी दिनों से झिरिया नदी नालों का पानी पी रहे है झिंझरी से कुछ दूर आगे की ओर जल्द बौना जाने वाले मार्ग पर सड़क किनारे स्थित ग्राम लबेदा में आठ दस परिवार के लोग रहते है यही सड़क किनारे एक बरसाती झिरिया है जिसमे सिर्फ बरसात में पानी आता है यहां के लोग बारिश में यही का पानी पीते है। तथा नहाने बर्तन धोने इत्यादि के लिए भी यही का पानी का उपयोग करते है झिरिया में पानी जंगली पहाड़ों से आता है बरसात के बाद जब यह जलस्रोत सूख जाएगा तब यहां के ग्रामीण नदी नालों ( जिसे नाशी भी कहते है ) वहा का पानी साल भर पीते है इस जगह पर कोई भी हैंडपंप नही है।वनबिभाग के द्वारा विगत वर्ष एक कुएं का निर्माण कराया गया।वहा काफी मात्रा में काई सिल्ट जमी हुई है जिसके कारण लोग यहां का पानी नहीं पीते। गांव के लोग आज भी दूषित पानी पीने मजबूर है बताया गया की सड़क किनारे झिरिया होने के कारण मवेशी भी यहां का पानी पी लेते है। यहां रहने वाले लोग इसी स्रोत को शुद्ध पेयजल मानकर इसका पानी पी रहे है। ग्रामीणों का कहना है कि बरसात में स्वास्थ्य विभाग की तरफ से इन पेयजल श्रोतों पर पानी की शुद्धता के लिए ब्लीचिंग पाउडर ,या क्लोरीनेशन भी नही किया गया।

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