मानव अधिकार आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल: संज्ञान के बाद भी नतीजे क्यों नहीं?
रेवांचल टाइम्स – मंडला
मानव अधिकारों की रक्षा के लिए स्थापित संस्थाएं किस हद तक प्रभावी हैं, यह एक महत्वपूर्ण और चिंताजनक विषय बनता जा रहा है। खासकर जब मानव अधिकार आयोग द्वारा किसी घटना पर संज्ञान तो लिया जाता है, लेकिन उस संज्ञान का अंतिम परिणाम क्या होता है, यह आम जनता के लिए अंधकारमय बना हुआ है। यह प्रश्न मंडला सहित पूरे मध्य प्रदेश में गूंज रहा है कि आखिरकार मानव अधिकार आयोग की भूमिका कितनी प्रभावी है और क्या यह संस्थान अपने उद्देश्य को पूरा कर पा रहा है?
संज्ञान लेने के बाद निष्क्रियता क्यों?
मध्य प्रदेश में मानव अधिकार उल्लंघन की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। कई मामलों में मानव अधिकार आयोग द्वारा संज्ञान लेने की खबरें आती हैं, लेकिन उन मामलों का अंतिम नतीजा क्या हुआ, दोषियों पर क्या कार्यवाही हुई, और पीड़ितों को न्याय मिला या नहीं, यह स्पष्ट नहीं हो पाता। आयोग की यह निष्क्रियता और पारदर्शिता की कमी समाज में अविश्वास की स्थिति पैदा कर रही है।
मंडला में मानव अधिकार उल्लंघन की घटनाएं
मंडला जिले में हाल ही में दो प्रमुख घटनाएं सामने आईं, जिनमें मानव अधिकार आयोग ने संज्ञान लिया।
1. जनपद पंचायत मवई में जल संकट: यहां लंबे समय से पेयजल संकट बना हुआ है, जिससे ग्रामीणों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। मानव अधिकार आयोग ने इस पर संज्ञान लिया, लेकिन क्या कोई ठोस समाधान निकला? यह सवाल अब भी अनुत्तरित है।
2. मानसिक रूप से पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु: जिला मुख्यालय मंडला में एक मानसिक रूप से पीड़ित व्यक्ति ने उचित उपचार न मिलने के कारण दम तोड़ दिया। इस गंभीर मामले में आयोग ने संज्ञान तो लिया, लेकिन अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार लोगों पर क्या कार्रवाई की गई।
पुराने मामलों का भी स्पष्ट नहीं हुआ नतीजा
मंडला जिले में पहले भी कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें आयोग द्वारा संज्ञान तो लिया गया, लेकिन कार्यवाही का कोई ठोस प्रमाण जनता के सामने नहीं आया। इससे आम नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के मन में यह सवाल उठ रहा है कि आयोग की भूमिका महज कागजी कार्यवाही तक सीमित तो नहीं रह गई?
जनता की मांग: पारदर्शिता और ठोस कार्यवाही
स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों का मानना है कि मानव अधिकार आयोग और अन्य संस्थाओं को अपनी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लानी होगी। जब किसी मामले में संज्ञान लिया जाता है, तो जनता को यह जानकारी भी मिलनी चाहिए कि उस मामले में दोषियों को किस हद तक दंडित किया गया और पीड़ितों को क्या न्याय मिला।
जनता यह भी मांग कर रही है कि आयोग केवल घटनाओं पर संज्ञान लेने तक सीमित न रहे, बल्कि उन पर त्वरित और परिणामकारी कार्यवाही भी सुनिश्चित करे। यदि ऐसा नहीं होता है, तो मानव अधिकार आयोग की प्रासंगिकता पर ही सवाल उठने लगेंगे।
क्या कहता है प्रशासन?
इस मामले में प्रशासन की चुप्पी भी चिंताजनक है। जब आयोग द्वारा संज्ञान लिया जाता है, तो स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी होती है कि वह त्वरित कार्रवाई करे और जनता को इस प्रक्रिया की जानकारी दे। लेकिन अधिकतर मामलों में ऐसा नहीं हो रहा, जिससे सरकार और प्रशासन की जवाबदेही पर भी प्रश्नचिह्न लग जाता है।
मानव अधिकारों का संरक्षण केवल कागजों पर नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत में दिखना चाहिए। जब तक संज्ञान लेने के बाद स्पष्ट और प्रभावी कार्रवाई नहीं होगी, तब तक मानव अधिकार आयोग और अन्य संस्थानों की विश्वसनीयता पर संदेह बना रहेगा। जनता को न्याय देने के लिए आयोग को अपनी भूमिका को और अधिक सक्रिय और पारदर्शी बनाना होगा, ताकि भविष्य में मानव अधिकार उल्लंघन की घटनाओं में कमी लाई जा सके।
