रासायनिक युग में जैविक उत्पाद ही मानव को तनाव सहित अनेक बीमारियों से बचा सकता है

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रेवांचल टाइम्स – खेती किसानी में फसलों के उपज बढ़ाने सहित सभी के सेहत के लिए वर्मी कम्पोस्ट रामबाण है-बिहारी लाल साहू जैविक कृषि विशेषज्ञ

दैनिक रेवांचल टाईम्स डिण्डोरी:- रासायनिक युग मानव जीवन और मिट्टी के स्वास्थ के लिए लगातार हानिकारक होता जा रहा है,भारतीय आबादी की जरूरत को देखते हुए विगत 30-40 वर्षों में रासायनिक खेती का प्रयोग बहुत तेजी से बढ़ा है। रासायनिक खेती में फसल सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रकार के जहरीले कीटनाशी रसायनों का अधिकाधिक प्रयोग होने लगा है। इन रसायनों के प्रयोग से अन्य किटों के साथ-साथ मिट्टी के मित्र जीव भी नष्ट हो जाते हैं। गुणवत्ता में गिरावट आ जाती है। रासायनिक खादों से प्रारंभ में उत्पादकता तो बढ़ती है, लेकिन बाद में धीरे-धीरे जमीन की जैविक उर्वरकता कमजोर होकर प्रायः समाप्त हो जाती है।

केंचुएं का परिचय –
केंचुएं हमारी मिट्टी में पाए जाने वाले प्रकृतिक जीव है जो बरसात के मौसम में अक्सर मिट्टी के बाहर दिखाई देते हैं । ये कचरे को बारीक पीसकर अकेले या मिट्टी के साथ खाते हैं और पचाने के बाद काले रंग की बारीक दानेदार खाद बाहर निकलते हैं । जिसे हम वर्मीकंपोस्ट कहते हैं । केंचुएं अपना भोजन जमीन के ऊपरी परत तथा निचली परत के कार्बनिक पदार्थो द्वारा प्राप्त करते हैं । जबकि ये अपनी कास्ट छोड़ने जमीन की ऊपर जाते हैं।
केंचुएं की कुल 2000 – 2500 तक की जातियां पाई जाती है। केंचुएं उभयलिंगी होते हैं अर्थात् इनके शरीर पर नर व मादा दोनों प्रजनन अंग होते हैं, परंतु एक केंचुएं द्वारा प्रजनन संभव नहीं है। प्रजनन हेतु दो परिपक्क केचुओं का मिलना आवश्यक है। इस मिलने की क्रिया के दौरान दो केंचुएं एक – दूसरे के सिर विपरीत दिशा रखते हुए पीछे की तरफ मिलते हैं और एक केंचुएं दूसरे के नर छिद्र के स्पर्मथिका में छोड़ते हैं।एक कोकून में 1-20 फर्टीलाईज्ड ओवन हो जा सकता है परंतु उसमें कुछ ही जिंदा रहते हैं तथा 60 – 70 दिनों में वयस्क होकर अंडे देने की अवस्था में आ जाते हैं।

केंचुओं के प्रकार-
मिट्टी में रहने के स्थान के अनुसार केंचुएं तीन प्रकार के होते हैं
1.एपीजेईक: भूमि की उपरी सतह पर रहने वाले एपीजेईक कहलाते हैं।ये कार्बनिक पदार्थो को 90 प्रतिशत तथा मृदा को कम से कम 10 प्रतिशत खाते हैं।तथा वजन में आधा से एक ग्राम होते हैं।
2. एनिसिक: ये मिट्टी में नीचे से उपर तथा उपर से नीचे लम्बवत चलन करते हैं। इनमें लेम्पीटो मारुती स्थानीय प्रजाति पाई जाती हैं।
3. एण्डोजेईक: गहरी सुरंग बनाने वाले लम्बे केंचुएं एण्डोजेईक कहलाते हैं।इनकी लम्बाई 8-10 इंच एवं वजन 5 ग्राम होता है।ये मृदा को 90 प्रतिशत तथा कार्बनिक पदार्थों को 10 प्रतिशत खाते हैं वर्षा ऋतु में दिखाई देते हैं।

वर्मीकंपोस्ट के लाभ:-
* मृदा में भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में सुधार करना।
* मृदा में सभी पौषक तत्वों की संतुलित मात्रा में आपूर्ति करना।
* सूक्ष्म जीवों की सक्रियता और कार्बन नत्रजन अनुपात को बढ़ाता है।
* वर्मीकंपोस्ट कार्बनिक पदार्थ का स्रोत होने से मृदा संरचना, वायु संचार तथा जल धारण क्षमता में सुधार लाता है व मृदा में हुमस की मात्रा बढ़ाता है।
* केचुए जमीन की प्राकृतिक रूप से जुताई करते हैं साधारणतः एक दिन में 15 – 20 छिद्र बनता है। जिससे मिट्टी में भुरभुरापन आता है।
* वर्मीकंपोस्ट से प्रति सिंचाई जल की मात्रा एवं सिंचाईयों की संख्या में कमी होती है।
* पौधों में कीड़ों व रोगों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।
* इसके प्रयोग से फल एवं खाद्यान्नों में होने वाले रसायनों के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है तथा रसायनों पर निर्भरता में कमी आती है।
* वर्मीकंपोस्ट के प्रयोग से दीमक का प्रकोप कम किया जा सकता है।
* इसके प्रयोग से खेतों में खरपतवार कम उगते हैं।
* इसमें सूक्ष्म पोषक तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।
* वर्मी कंपोस्ट के प्रयोग से जैविक खेती को बढ़ावा मिलता है । जिससे पर्यावरण शुद्ध होता है तथा मनुष्यों के स्वास्थ्य पर रसायनों का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता।
* इसके प्रयोग से फल – सब्जियों का अच्छा आकार विकसित होता है तथा उसमें स्वाद बढ़ जाता है।
* केंचुए गंदगी फैलाने वाले हानिकारक जीवाणुओं को खाकर उन्हें लाभदायक हुमस में परिवर्तित कर देते हैं।
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सावधानियां:-
वर्मी कंपोस्ट बनाते समय निम्न सावधानियां रखनी चाहिए।
1. कंपोस्ट के सतह एवं गद्दे पर मचान बनाकर छाया रखें व ज्यादा वर्षा व बहते पानी से गड्डे को बचाएं।
2. गड्ढे में साबुन, दवाइयां, कांच प्लास्टिक या किसी प्रकार का रसायनयुक्त पानी नहीं जाने दें।
3. पर्याप्त नमी बनाए रखें।
4. केंचुए की इसके दुश्मनों से सुरक्षा रखें।

वर्मीकंपोस्ट का उपयोग:-
1. फसलों के लिए 3-5 टन प्रति हेक्टेयर वर्मीकंपोस्ट, गोबर की खाद, वानस्पतिक अवशेष की बराबर मात्रा मिलाकर खेत में संध्या के समय एकसार बिखेर देवें एवं प्रातः उसे जुताई कर खेत में मिलो देवें । मिलाते समय भूमि में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
2. सब्जी वाली फसल हेतु इसको 7 – 8 टन प्रति हेक्टेयर खेत में डालकर रोपा/बीज बुवाई करें।
3. एक गमले में 200 – 300 ग्राम वर्मीकंपोस्ट डालें।
4. जहां पर गंदगी हो उसे दूर करने के लिए केंचुए छोड़ें।
लेखक
नर्मादांचल गौ सेवा समिति ढोंढ़ा के अध्यक्ष, जैविक कृषि विशेषज्ञ एवं भारतीय किसान संघ डिंडौरी के जिलाध्यक्ष बिहारी लाल साहू

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