सरकार की योजना हो रही फेल अपने को गांव छोड़कर दूसरों जिलों पर जा रहें मजदूरी करने

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क्या यही है विकास जो न काम न काज,
घर द्वार छोड़ कर कमाने को निकले मजदूर

रेवांचल टाईम्स – आखिरकार ये कैसा विकास है, जहाँ पर न पेट भर भोजन मिल रहा है और न रोजगार मजदूरों को पेट की खातिर दो जिलों के तहसील से मजदूर घर द्वार छोड़कर पलायन करने को मजबूर है गांव में रोजगार देने के सरकारी दावों कि पोल सिहोरा स्टेशन पर लगी भीड़ खोल रही है यह मजदूरों का कुंभ सा नजर आ रहा है यह भीड़ एक, दो नहीं बल्कि तीन जिलों कि तहसील से आए हजारों मजदूरों की है श्रमिकों की तादाद को देखकर फिर भी जबलपुर रेलवे प्रशासन स्पेशल ट्रेन नहीं चला पा रहें है हजारों की संख्या में श्रमिक कटनी जिले तहसील ढीमरखेड़ा, उमरियापान, सिलौडी़, निगई, पाली, उमरिया जिला जबलपुर जिले से पहुंचे हैं इन मजदूरों के साथ उनका पूरा परिवार भी है जिनमें छोटे बड़े बच्चे और घर के बड़े बुजुर्ग है कई मजदूरों के बच्चे स्कूलों में पढ़ते भी हैं लेकिन शिक्षक से ज्यादा रोजी रोटी की मजदूरी पढ़ाई में आड़े आ रही है

सिहोरा में इसलिए मेला गाँव गाँव से निकल रहे मजदूर

कटनी जिले की तहसील जबलपुर जिले की तहसील उमरिया जिले की तहसीलें हजारों की संख्या में रोजगार के लिए अपने गांव से शहर जा रहे हैं इन मजदूरों का सेंटर प्वाइंट सिहोरा स्टेशन है यहां से ही बीना रेलखंड के लिए ट्रेन पकड़नी होती है सड़क मार्ग से और सुरक्षित है

गांव में ₹150 से200 की मजदूरी और बाहर शहर ₹350 से 400 की मजदूरी मिलती है

कटनी जिले के ढीमरखेड़ा निवासी आनंद कोल ने बताया कि गांव में सरकारी योजना में रोजगार नहीं मिलता है यदि गांव के आसपास काम पर भी जाएं तो 150 से 200 रुपए मिलता है लेकिन कटाई के काम में 350 से400 रुपए प्रतिदिन मिल जाता है पूरे महीने काम मिलता है कुछ पैसा बचत में भी जमा रहेता है बच्चों, बुजुर्गो को भी काम मिल जाता है इस में आमदनी ठीक हों जाती है

दो जून की रोटी मुश्किल

कटनी जिले के उमरियापान निवासी मीना बाई बतातीं है कि गांव में रोजगार नहीं मिल रहा है ऐसे में परिवार का भरण पोषण मुश्किल से हो पाता है काम कि तलाश में दूसरे शहर जा रहें हैं जबलपुर जिले के कुम्ही निवासी संतोष काछी ने कहा कि बच्चे किसके भरोसे घर में रहेंगे इसलिए इनको भी लेकर जाते हैं उमरिया जिले के चंदिया कि श्रमिक आरती बाई ने कहा कि भैया भूखे पेट पढ़ाई-लिखाई नहीं होती पढ़ लिखकर भी इन्हें नौकरी तो मिलनी नहीं है मजदूरी से ही गुज़रा करना है

कटाई के लिए प्रवास

हजारों की संख्या में यह मजदूर विदिशा सागर खुरई बिना और गंजबासौदा क्षेत्रों में सोयाबीन धान और उड़द की कटाई करने के लिए पहुंचते हैं दो माह तक यहां पर फसलों की कटाई करके राशि जुटाते हैं दो 2 महीने के बाद धान की कटाई कर अपने गांव वापस आ जाते हैं

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