करवा चौथ की सही तारीख अब आई सामने.. व्रत की तैयारियों से पहले जरूर पढ़ लें ये खबर

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उत्तर भारत में विवाहित महिलाओं के लिए करवा चौथ बेहद खास त्योहार है. इस साल करवा चौथ 20 अक्टूबर रविवार को मनाया जाएगा. करवा चौथ हिंदू कैलेंडर के कार्तिक महीने में पूर्णिमा के बाद के चौथे दिन आता है. गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में अमंत कैलेंडर के अनुसार करवा चौथ अश्विन महीने में मनाया जाता है. भारत के हर हिस्से में यह त्योहार एक ही दिन मनाया जाता है.

करवा चौथ 2024

करवा चौथ को करक चतुर्थी भी कहा जाता है और इसका सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्व है. करवा या करक का अर्थ मिट्टी के बर्तन से है, जो शाम की पूजा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. महिलाएं इस बर्तन से चांद को जल अर्पित करती हैं. जिसे अर्घ कहा जाता है. बाद में इस करवे को ब्राह्मण या योग्य महिला को दान दिया जाता है.

चांद दिखने तक पानी नहीं पीतीं महिलाएं

दिन की शुरुआत सुबह जल्दी होती है. महिलाएं सरगी भोजन का सेवन करती हैं. यह सरगी सास द्वारा तैयार की जाती है और इसमें फल, मिठाइयां और नाश्ते के आइटम शामिल होते हैं. जो पूरे दिन के उपवास के लिए जरूरी ऊर्जा प्रदान करते हैं. इसके बाद महिलाएं सूर्य निकलने के साथ उपवास शुरू करती हैं और चांद दिखने तक पानी भी नहीं पीतीं.

शाम को महिलाएं पारंपरिक कपड़े पहनती हैं.. यह लाल या जीवंत रंगों का हो सकता है. वे आभूषण पहनती हैं और मेहंदी लगाती हैं. अन्य विवाहित महिलाओं के साथ पूजा के लिए एकत्र होती हैं. वे एक सर्कल में बैठकर करवा चौथ की कहानियां सुनाती हैं और लोक गीत गाती हैं.

करवा चौथ 2024 का महत्व

करवा चौथ का उपवास विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, भलाई और समृद्धि के लिए किया जाता है. यह दिन विवाह संबंध को मजबूत करने के लिए समर्पित है. क्योंकि महिलाएं सूर्योदय से लेकर चांद दिखने तक बिना भोजन और पानी के रहती हैं. यह कठिन उपवास, जिसे निर्जला व्रत कहा जाता है, पत्नियों की अपने पतियों के प्रति प्रेम और समर्पण का प्रतीक है.

संकष्ट चतुर्थी

यह दिन संकष्ट चतुर्थी के साथ भी आता है. जो भगवान गणेश को समर्पित उपवास का दिन है. इस दिन महिलाएं भगवान शिव, देवी पार्वती, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की पूजा करती हैं, ताकि अपने पतियों की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए आशीर्वाद प्राप्त कर सकें.

करवा चौथ 2024 का पारण

उपवास केवल तभी तोड़ा जाता है जब चांद दिखाई देता है. महिलाएं चांद को एक चलनी से देखती हैं और फिर उसी चलनी से अपने पति के चेहरे को देखती हैं. यह रस्म यह दर्शाती है कि उनका पति उनके लिए सब कुछ है. वे उसकी लंबी उम्र और भलाई की प्रार्थना करती हैं. चांद को जल अर्पित करने के बाद पति पत्नी को पहला घूंट पानी और एक कौर भोजन खिलाता है. जो उनके आपसी प्रेम और प्रतिबद्धता का प्रतीक है.

महत्व और अनुष्ठान

करवा चौथ विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में बहुत लोकप्रिय है. यह दक्षिण भारत में उतना प्रचलित नहीं है. लेकिन इस त्योहार के महत्व और अनुष्ठान एक समान रहते हैं. जो समर्पण, प्रेम और विवाह के बंधन की पवित्रता को दर्शाते हैं. करवा चौथ के चार दिन बाद अहोई अष्टमी मनाई जाती है. इस दिन माताएं अपने पुत्रों की भलाई और लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं. यह त्योहार भारतीय संस्कृति के पारिवारिक मूल्यों और परंपराओं को दर्शाता है.

करवा चौथ सिर्फ एक उपवास का अनुष्ठान नहीं..

करवा चौथ सिर्फ एक उपवास का अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह प्रेम, बलिदान और विवाह के पवित्र बंधन का उत्सव है. अपनी सांस्कृतिक धरोहर और महत्वपूर्ण अनुष्ठानों के साथ यह त्योहार पीढ़ियों से विवाहित महिलाओं द्वारा प्रिय बना हुआ है.

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