आलेख शीर्षक – रेवती और बलराम की अनकही कहानी…
रेवांचल टाईम्स – प्रेम इस सांसार का अनवरत चलने वाला मार्ग है जिसपर चलकर सृष्टि की गाड़ी आगे बढ़ रही है। पति पत्नी , प्रेमी प्रेमिका की आने को कहानी हमारी जिंदगी का हिस्सा है जिसे सुनकर जहां हमें प्रेरणा मिलती है वहीं सृष्टि की जटिल नियमों का भी पता चलता है इस सृष्टि में प्रेम और विवाह एक ऐसा बंधन है जिसके आधार पर यह सृष्टि अनवरत चलती आ रही है पति-पत्नी के अनेकों ऐसे जोड़े हैं जो इस समाज में मिसाल और प्रेरणादायक रहे हैं और कुछ ऐसे हैं जो हमें अचंभित भी करते हैं आइए अचंभित करने वाली एक प्रेम कहानी या कह सकते हैं पति-पत्नी के एक जोड़े के बारे में जानते हैं जो कृष्ण के बड़े भाई बलराम और उनकी पत्नी देवी रेवती की है।
बलराम का विवाह देवी रेवती से हुआ था। कहा जाता है कि , देवी रेवती कई युगों तक अविवाहित थी। सतयुग में जन्म लेने वाली रेवती का विवाह द्वापर युग में बलराम से हुआ।
इसका कारण यह था कि सतयुग में रेवती के लिए को कोई योग्य वर नहीं मिल पा रहा था
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रेवती का जन्म दिव्य अग्नि से हुआ था,जिस कारण रेवती दिव्य सुंदरी थीं, साथ ही शील गुणों से भी ये परिपूर्ण थीं। जब रेवती बड़ी हुई तो उसने निश्चय किया कि, दुनिया में सबसे ज्यादा बलशाली पुरुष से विवाह करेगी। इसके बाद से राजा रेवत ने सबसे शक्तिशाली व्यक्ति की तलाश शुरू की। लेकिन धरती पर उन्हें कोई ऐसा व्यक्ति मिला ही नहीं।
इस बात से राजा रेवतक काफी परेशान थे,
राजा रेवत, महान राजा शर्याति के वंशज थे और वह कुशस्थली का राज-काज संभालते थे। यह पूरा घटनाक्रम सतयुग का है। जब राजा रेवत अपनी पुत्री रेवती के विवाह को लेकर चिंतित थे, कोई सुयोग्यवर नहीं मिल पाने की वजह से राजा रेवतक चिंतित रहते थे एक दिन उन्हें या ख्याल आया कि क्यों ना सृष्टि के सृष्टि कर्ता भगवान ब्रह्मा जी से मिल जाए यही सोचकर अपनी पुत्री रेवती के साथ योग बल के द्वारा वह ब्रह्मलोक जा पहुंचे।
उस ब्रह्मलोक में वेदों का गान चल रहा था,इसलिए वह वहां रुक गए। समय बीतता गया। वेदों का पाठ जब खत्म हुआ तो ब्रह्माजी उनके सामने उपस्थित हुए। तब राजा रेवत ने अपनी व्यथा ब्रह्मा जी से कह सुनाई तब ब्रह्मा जी आश्चर्य चकित हुए और कहा
कहा, ‘हे राजन् आप जब से ब्रह्मलोक में हैं तब से तो कई युग बीत चुके हैं। आपके सगे-संबंधियों का भी अंत हो चुका है। इस समय पृथ्वी पर द्वापरयुग चल रहा है। सतयुग त्रेता युग की समाप्ति के पश्चात द्वापर युग में
स्वयं साक्षात् विष्णु भगवान ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया है। और उनके भाई बलराम भी हैं। जो शेषनाग के अवतार हैं। राजन् आपको बलराम से सुयोग्य वर रेवती के लिए पृथ्वी पर मिलना मुश्किल हैं। अतः रेवती का विवाह बलराम से कीजिए।’
राजा रेवतक ब्रह्माजी की आज्ञा का पालन करते हुए बलराम जी से मिले और बलराम के सामने अपने पुत्री रेवती का विवाह प्रस्ताव रखा
लेकिन रेवतक और उनकी पुत्री रेवती के शरीर का आकार सतयुग के मानव की तरह इक्कीस हाथ का था। ऐसे में बलराम ने अपने हल को रेवती के सिर पर रख दिया। रेवती के शरीर का आकार द्वापरयुग के उस समय मौजूद मनुष्य की तरह यानी 7 हाथ का हो गया, और दोनों का विवाह हो गया , और राजा रेवतक पुत्री विवाह से मुक्त होकर अध्यात्म के मार्ग पर आगे बढ़ गए।
बलराम और रेवती ने प्रेम पूर्वक दैनिक दिनचर्या का पालन करते हुए। काफी समय तक पृथ्वी पर मौजूद रहे थे, किन्तु रेवती कभी मां नहीं बन पाई क्योंकि रेवती बहुत सुंदर थीं, इसलिए सभी देवता उनसे वर्ण करना चाहते थे, यानी विवाह करना चाहते थे. देवताओं में इंद्र भी रेवती से विवाह करना चाहते थे लेकिन रेवती ने इंद्र से विवाह करने से इनकार कर दिया था जिससे क्रोधित होकर इंद्र ने रेवती को श्राप दिया कि वह कभी मन नहीं बन पाएगी जिस कारण रेवती कभी मन नहीं बन पाई।
लेखिका – सुनीता कुमारी
बिहार
