शिक्षा के दर्शन में विश्व शांति

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रेवांचल टाईम्स – मंडला, मानव के विकास क्रम में शिक्षा एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आमतौर पर अक्षर ज्ञान को ही शिक्षा कहा जाता है। लोगों को पढना- लिखना, हिसाब- करना सिखाने को शिक्षा देना माना जाता है। कहा गया है कि “विधा विनयेन शोभते” अर्थात विधा विनय से शोभित होती है। शांति शिक्षा एक दृष्टिकोण है जिसका मुख्य उद्देश्य शांतिपूर्ण अस्तित्व के लिए समाज को शिक्षित करना है।शिक्षा जो समाज में जन जागृति के साथ समाज को निरंतर गतिमान रखती है। शिक्षा का समाजिक सरोकारों, नैतिक मूल्यों और वैज्ञानिक चेतना लाना एक स्वभाविक लक्ष्य है। जो आज अच्छे अंक लेकर उंची कमाई वाली नौकरी पाना इसका एकमात्र लक्ष्य और सफलता की कसौटी बन गया है। पिछले कुछ समय से शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाजारीकरण की जो आंधी चली है, उसने इन विकृतियों को और बढाया है। आजादी के आंदोलन में शिक्षा को आमूलचूल बदलने की बात होती थी। महात्मा गॉंधी ने “नई तालिम” के कई प्रयोग किए थे। रविन्द्रनाथ ठाकुर ने शांति निकेतन की स्थापना की थी। परन्तु आजाद भारत में शिक्षा व्यवस्था को बदलने का काम नहीं हो पाया। एक पहल राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एन. सी.आर.टी) ने शांति शिक्षा की महत्ता को समक्षते हुए इसे स्कूली पाठयक्रमों में शामिल किया।जिसमें समानता, समाजिक न्याय, मानव अधिकार, सहिष्णुता, सांस्कृतिक विविधता और पर्यावरण को शामिल किया है।शिक्षा जीविकोपार्जन और संतोष जनक जीवन जीने का सबसे अच्छा तरीका है। हालांकि इसका एक और मकसद भी है जो जीविकोपार्जन से परे है।हमारा मानना है कि पारंपरिक ज्ञान, कौशल और श्रम आधारित जिंदगी जीने वाले पढ़े लिखे समाज से कमतर नहीं हैं। शांति शिक्षा के परिणाम व्यापक एवं सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित वाले होते हैं।शांति के माध्यम से “बसुधैव कुटुम्बकम” की भावना का विकास होता है और सम्पुर्ण धरती पर निवास करने वाले मानवों को परिवार समझता है।शांति शिक्षा के विचारक महात्मा गॉंधी, मदर टेरेसा और मार्टिन लूथर किंग जुनियर थे। जिन्होंने संपूर्ण विश्व को शांति शिक्षा के रूप में आगे बढने हेतु प्रेरित किया।
दूसरी ओर तकनीकी विकास से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या कृत्रिम बुद्धि को सामान्य भाषा में मशीनों का दिमाग भी कह सकते हैं। इसके तहत मशीनों में इंसानी अनुभव और कार्य करने की कुशलता को कैद किया गया है, उनका इस्तेमाल करके मशीन कुछ हद तक खुद फैसले लेने की क्षमता हासिल कर लेती है। इसे मशीन लर्निंग प्रोडक्शन (एमएलपी) कहते हैं। एमएलपी का इस्तेमाल मनोरंजन, अर्थ साइंस, इंजीनियरिंग जैसे बहुत से क्षेत्रों में तेजी से शुरू हो चुका है। बेशक इन तकनीकों ने इंसान के कामों को आसान बना दिया है।लेकिन संकट वही है कि ये तकनीक गिने- चुने पूंजीपतियों की मुट्ठी में कैद है और वे इसका इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाने के लिए कर रहे हैं। फिर चाहे इससे किसी की जिंदगी तबाह हो जाए, भयानक बेरोजगारी फैले, असमानता बढे और चाहे झूठी खबरों का प्रचलन बढे। एक बेहतर दुनिया के लिए ज्ञान- विज्ञान को पूंजीपतियों की मुट्ठी से आज़ाद कराना होगा ताकि विज्ञान हमारे लिए वरदान बनें न कि अभिशाप।अतः वृहद समाज को विकास और बाजार की चकाचौंध के दौर में शांति शिक्षा के महत्व के बारे में जागृत करना होगा।
राज कुमार सिन्हा
बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ

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