डीएपी खाद के हैं अन्य विकल्प, नहीं आएगी उत्पादन में कमी
मंडला 10 जून 2024
मानसून के आगाज के साथ ही खरीफ की बोनी शुरू हो जाएगी। खरीफ की तैयारी में जुटे किसान खाद और बीज की व्यवस्था में लगे हुए हैं। जिले में पर्याप्त मात्रा मे खाद एवं बीज उपलब्ध है। मानसून के पूर्व ही सभी समितियों में मांग अनुसार यूरिया, डीएपी, एसएसपी, एनपीके एवं पोटाश का भण्डारण भी किया जा रहा है। जिले में वर्तमान में यूरिया 9000 एमटी, डीएपी 1400 एमटी, एसएसपी 2000 एमटी, एनपीके 1000 एमटी एवं पोटाश 60 एमटी समितियों, विपणन गोदाम एवं निजी विक्रेता के यहाँ उपलब्ध है।
जिले में इस वर्ष खरीफ सीजन में 2 लाख 30 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में बोनी प्रस्तावित है जिसमें मुख्यतः धान, मक्का, कोदो-कुटकी, अरहर, तिलहन फसलों की बोनी प्रमुखता से की जाती है। अच्छी फसल एवं उत्पादन हेतु संतुलित पोशक तत्व अति महत्वपूर्ण है। शंकर धान और मक्का हेतु अनुशंसित नाइट्रोजन, फास्फॉरस एवं पोटाश 120-60-40 और सीधी बोनी धान हेतु 100-40-20 मात्रा प्रति हे. का उपयोग किया जाना चाहिए। डीएपी की बढ़ती मांग और अनुपलब्धता के कारण अन्य वैकल्पित उर्वरकों के उपयोग करने की किसानों को सलाह दी जाती है। देश में डीएपी खाद की लगातार कमी बनी हुई है जिससे किसानों को डीएपी खाद की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति नहीं हो पा रही है। उपसंचालक कृषि मधु अली द्वारा जानकारी दी गई कि किसान खरीफ फसलों के लिए डीएपी के स्थान पर एनपीके और एस एसपी का उपयोग कर सकते हैं। यह दोनों ही उर्वरक डीएपी के अच्छे विकल्प हैं और फसल उत्पादन में ज्यादा कारगार हैं। डीएपी के स्थान पर एसएसपी के उपयोग करने से भूमि संरचना का सुधार होता है क्योंकि इसमें सल्फर भी पाया जाता है। एसएसपी दानेदार एवं पाउडर दोनों ही रूप में उपलब्ध है। जिले में एनपीके उर्वरक 16:16:16, 20:20:0:13 और 12:32:16 उपलब्ध है और चूंकि सभी प्रकार के तत्व उपलब्ध होने से फसल अपनी आवश्यकता अनुरूप तत्वों का सम्पूर्ण उपयोग कर पाती है।
नैनो यूरिया एवं नैनो डीएपी भी हैं अच्छे विकल्प
नैनो तकनीक पर आधारित नैनो यूरिया और डीएपी भी अत्यधिक कुशल उर्वरक हैं जो सूक्षम कणों के माध्यम से फसलों को तत्व प्रदाय करते हैं। नैनो उर्वरक 500 उस की बोतल में उपलब्ध है, जिसमें नैनो यूरिया का व्यय दर 240 रु प्रति 500 उस प्रति एकड़ और नैनो डीएपी का 600 रु प्रति 500 उस प्रति एकड़ है। नैनो उर्वरक फसल की उपज की पोषण गुणवत्ता को बढ़ाता है एवं फसल उत्पादकता में वृद्धि और लागत में कमी करके किसानों की आय में वृद्धि करता है।