कभी थी शान की सवारी, अब सड़कों से गायब हो रही बैलगाड़ी, सामान और इंसान दोनों को ढोती थी यह गाड़ी….मल्हारे
बैलगाड़ी और डोली में सजकर आती थी दुल्हनियां, विलुप्त हो गया वह युग – मल्हारे
दैनिक रेवांचल टाइम्स – हरदा। छिदगांव तमोली एक जमाने में यातायात का मुख्य साधन बैल गाड़ी हुआ करती थी अब देखने को कम मिल रही है। अनिल मल्हारे ने बताया की एक जमाने मे खेती के हल बैल, गेहूं से भरी हुई पांजरी खेत से खलिहान तक बैलगाड़ी से ढोने के काम में आने वाली बैलगाड़ी अब देखने को नहीं मिल रही है आधुनिक युग मे लगभग बिलुप्त होने की कगार पर है। आधुनिक युग में ट्रैक्टर,थ्रेसर, और कृषि उपकरण के आ जाने से बैलों को लोगो ने पालना बन्द कर दिया है। किसान अपने खेतों में समय बचत करने के लिए मशीनों का सहारे काम कर समय की बचत करते है। फसल काटने से लेकर बोने तक मशीनों का प्रचलन बढ़ गया है अनिल मल्हारे ने अपने अनुभव साझा कर बताया की मेरे पिताजी दादा बैलो की एक से बढ़कर एक जोड़ पालते थे जिससे खेती किसानी करते थे कई बार बैलगाड़ी पर बैठ कर खेत मे से गेहूं की फसल की पांजरी भर कर लाये थे जिसमे पिताजी के साथ सबसे आगे गाड़ी पर बैठा कर आए अगर सामने बजन नहीं हो तो पांजरी से भरी गाडी पीछे से उराल हो जाती थी इसलिए आगे बैठना होता था बैलो का अलग अलग नाम भी रखते थे जब आज बैलगाड़ी देखी तो खुद को रोक नहीं पाया गाड़ी पर बैठने से कुछ दूर तक बैल गाड़ी गैरी भी कुछ देर के लिए बैलगाड़ी सेल्फी पॉइंट बन गईं लोगो के लिए
मशीनरी युग में नहीं रहा महत्व
किसान अपने हल भखर कोलपा बुआई का साधन दुल्ली पीराणा, पीरानी बेचकर मशीन युग में प्रवेश कर गए है। ग्रामीण आंचल में बैलगाड़ी की सवारी शान की सवारी कही जाती थी। टहाके से दूल्हे की बारात बैलगाड़ी से लगाते थे बैलो के गले मे बंधी गंठी की मधुर ध्वनि सुनाई देती थी एंव खराब सड़कों पर भी बैलगाड़ी लोगों को अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचा देती थी। मायके से ससुराल जाना हो या किसी समारोह मे जाना हो तो बैल गाड़ी एक यातायात का बढ़िया साधन था। आने वाले समय के बच्चो के बीच बैल गाड़ी की कहानी बताने वाला भी कोई नहीं होगा। पहले हमारे पूर्वज हमेशा ही प्रकृति के साथ तालमेल बैठाकर विकास की राह पर आगे बढ़े। जब आज की तरह चकाचक सड़कें, आधुनिक विकास का माहौल नहीं थाए तब मनुष्य ने बैलगाड़ी के सहारे ही दुनिया नाप ली थी। परिवहन के साधन के रूप में बैलगाड़ी से ही मनुष्य ने एक कोने से दूसरे कोने तक की यात्राएं कीं। राजमहलों, किलो और भवनों को बनाने के लिए निर्माण सामग्री बैलगाड़ी से ही लाए गए थे। लेकिन आज हमारी विरासत के यह अनमोल धरोहर अब विलुप्त होने की कगार पर हैं। पहले बैलगाड़ी बनाने वाले कारीगरों का इंजीनियर के बराबर सम्मान थाए अब या तो वह वृद्ध हो गए अथवा काम नहीं होने से दूसरे काम करके जीविका चला रहे है। यह गाड़ी बैलों से खींची जाने के कारण ही इसका नाम बैलगाड़ी पड़ा। डा. विक्रम साराभाई ने इसरो की स्थापना की थी। आपको जानकर हैरत होगी की हमारे वैज्ञानिक आसमान करने के सफर पर साइकिल और बैलगाड़ी के जरिए निकले थे। वैज्ञानिकों ने पहले रॉकेट को साइकिल पर लादकर प्रक्षेपण स्थल पर ले गए थे। इस मिशन का दूसरा रॉकेट काफी बड़ा और भारी होने के कारण बैलगाड़ी के सहारे प्रक्षेपण स्थल पर ले जाया गया था।