अस्पतालों के निजीकरण का निर्णय वापस – जन संघर्ष की जीत

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रेवांचल टाईम्स – स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की बेहतरी के लिए कार्य करने वाले अमुल्य निधि, एस. आर. आजाद, राज कुमार सिन्हा, धीरेन्द्र आर्य और सुधा तिवारी ने बयान जारी करते हुए कहा है कि प्रदेश के उपमुख्यमंत्री व लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री राजेन्द्र शुक्ला और प्रमुख सचिव संदीप यादव का बयान समाचार पत्रों में आया है कि सरकार ने जिला अस्पतालों को निजी हाथों में देने का निर्णय वापस लिया है। बयान के अनुसार अब सरकार पीपीपी मोड पर केवल मेडिकल कालेज खोलेगी। सरकार का जिला अस्पतालों को विभाग द्वारा संचालित किये जाने के निर्णय का जन स्वास्थ्य अभियान और निजीकरण के विरोध में शामिल सभी जन संगठन व डाक्टर एसोसिएशन ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। उनसे पुनः मांग किया है कि जनता के स्वास्थ्य की रक्षा करना और उनको बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना राज्य की नैतिक एवं संवैधानिक जिम्मेदारी है, जिसे पूरा किया जाना चाहिए।
ज्ञात हो कि मध्यप्रदेश सरकार प्रदेश के 12 जिला अस्पतालों कटनी, मुरैना, पन्ना, भिंड, अशोकनगर, गुना ,धार, सीधी, बेतुल, खरगोन, टिकमगढ़ और बालाघाट को मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए निजी हितधारकों को देने का प्रयास पिछले चार महीनो से कर रही थी। इसके लिए सरकार ने कई अखबारों में निविदा भी जारी की थी। सरकार के इस निर्णय का प्रदेश की जनता और जन स्वस्थ्य अभियान के साथ ही प्रदेश के विभिन्न जन संगठनो व डाक्टर एशोसिएशन ने मिलकर प्रदेश और जिला स्तर पर विरोध जताया था और सरकार से इस निर्णय को बदलने की मांग के साथ साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों को मजबूत करने की मांग की थी। राज्य सरकार चिकित्सा शिक्षा में पीपीपी मोड को बढ़ावा दे रही है, जबकि सरकार के स्वयं के मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए सक्षम है, फिर निजी भागीदारी को बढ़ावा देना उचित नहीं है। निजी मेडिकल कॉलेज से महंगी चिकित्सा शिक्षा मिलेगी जो सभी के लिए संभव नहीं होगी और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भी। इसलिए जन स्वास्थ्य अभियान और सभी जन संगठनो का मानना है कि चिकित्सा शिक्षा के लिए मेडिकल कॉलेज भी सरकार द्वारा ही चरणबद्ध तरीके से प्राथमिकता के आधार पर जिलों में खोला जाना चाहिए। जिससे सस्ती चिकित्सा शिक्षा उपलब्ध हो सकेगी।प्रदेश सरकार द्वारा पूर्व में इस संबंध में कई जिलों मे घोषणा भी कर चुकी है।
जन स्वास्थ्य अभियान और विभिन्न जन संगठनों ने कहा है कि सरकार जिला अस्पतालों के सवाल पर अपना निर्णय बदलकर सराहनीय कार्य किया है। परंतु 348 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों, 161 सिविल अस्पताल को निजी हितधारकों को देने के प्रयास और संजीवनी क्लीनिक की सेवाओं को आउटसोर्स करने की खबर पर सरकार ने स्थिति स्पष्ट नहीं की है। हमारी सरकार से मांग है कि इन स्वास्थ्य संस्थानों के बारे में स्थिति स्पष्ट करे और यह सुनिश्चित करे कि इन्हे भी वर्तमान कि तरह ही सरकार द्वारा संचालित किया जाए। क्योंकि आउटसोर्स से बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल पाएगी इसका कोई उदाहरण हमारे बीच नहीं है।
हम सभी कि समूहिक मांग है कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र अर्थात स्वास्थ्य सेवाओं और चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में निजी भागीदारी को पूरी तरह से बंद कर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं और संस्थानों को जनता के हित में मजबूत किया जाए ।
इस संघर्ष में शामिल प्रमुख संगठनो में जन स्वास्थ्य अभियान, जिला अस्पताल बचावा जिउ बचावा संघर्ष मोर्चा, म. प्र. मेडिकल टीचर्स असोशिएशन, गवर्नमेंटऑटोनामस चिकित्सक महासंघ, मेडिकल ऑफिसर्स एसोशिएशन, ई. एस. आई. मेडिकल ऑफिसर्स संघ, मेडिकल ऑफिसर्स मेडिकल एजुकेशन संघ, जूनियर डाक्टर्स एसोशिएशन, मध्य प्रदेश नर्सिंग ऑफिसर्स एसोशिएशन, कांट्रेक्टच्युयल डाक्टर्स एसोशिएशन, आशा/आशा सहयोगिनी श्रमिक संघ, राष्ट्रीय स्वास्थ्य अधिकार अभियान, जन स्वास्थ्य अभियान, आदिवासी मुक्ति संगठन, जिंदगी बचाओ अभियान, यूनाइटेड ऑर्गनाइज़ेशन फॉर एक्शन अगेन्स्ट प्राइवेटाईजेशन ऑफ हैल्थ सर्विसेस आदि संगठनो ने मिलकर जिला अस्पतालों के निजीकरण के खिलाफ एकजुट होकर विरोध किया था।

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