विभिन्न मदों से स्वीकृत हजारों भवन वर्षों से अधूरे, कब होंगे पूरे?

समाजसेवियों ने कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन, जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की उदासीनता पर उठाए सवाल

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मंडला। जिले के नौ विकासखंडों में विभिन्न विभागों के हजारों भवन वर्षों से अधूरे पड़े हैं। इन अधूरे निर्माण कार्यों को लेकर समाजसेवियों में गहरी नाराजगी है। इसी के चलते दर्जनों समाजसेवियों ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपते हुए मांग की कि इन भवनों को शीघ्र पूरा किया जाए, ताकि जनहित में उनका उपयोग सुनिश्चित हो सके।

अधूरी परियोजनाओं का अंबार

प्राप्त जानकारी के अनुसार, राजस्व विभाग के उपयोग के लिए स्वीकृत घुघरी जनपद कार्यालय भवन, माधोपुर ग्राम पंचायत कार्यालय के पास स्थित भवन, और सैकड़ों आंगनवाड़ी केंद्रों के भवन अब भी अधूरे हैं। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, अकेले राजीव गांधी शिक्षा मिशन और सर्व शिक्षा अभियान के तहत स्वीकृत 1,000 से अधिक भवनों का निर्माण अधूरा है, जिनका मामला वर्षों से कलेक्टर कार्यालय में लंबित है। अन्य विभागों की परियोजनाओं को जोड़ें तो यह आंकड़ा और भी बड़ा हो सकता है।

75% निर्माण पूरा, फिर भी अधर में योजनाएं

अधिकांश अधूरे भवन लगभग 75% तक निर्मित हो चुके हैं और इन पर शासन की भारी-भरकम राशि खर्च हो चुकी है। यदि बचा हुआ 25% कार्य पूरा कर दिया जाए, तो ये भवन उपयोगी हो सकते हैं। इसके बावजूद निर्माण एजेंसियों की पहचान तक स्पष्ट नहीं है, जिससे जवाबदेही तय करने में दिक्कत हो रही है।

जनप्रतिनिधि और अधिकारी मौन, जनता परेशान

समाजसेवियों का कहना है कि यदि सांसद, विधायक और संबंधित अधिकारी चाहें तो इन अधूरे भवनों को जल्द पूरा कराया जा सकता है। शासन के पास पर्याप्त बजट होने के बावजूद लापरवाही के चलते ये निर्माण कार्य अधर में लटके हैं।

अनावश्यक निर्माण पर लाखों खर्च, उपयोगिता शून्य

जिले में कई स्टॉप डैम और पुलिया ऐसे स्थानों पर बनाए गए हैं, जहां उनका कोई उपयोग नहीं है। उदाहरण के तौर पर, मंडला ब्लॉक के ग्राम सुभरिया में पहाड़ी क्षेत्र में बगैर बसाहट के स्थान पर 10.50 लाख रुपये की लागत से स्टॉप डैम का निर्माण कर दिया गया, जो पूरी तरह अनुपयोगी है।

बड़ा सवाल – अधूरे भवनों का जिम्मेदार कौन?

विशेषज्ञों का कहना है कि जब किसी भी निर्माण कार्य के लिए बजट स्वीकृत होता है, तो फिर इतनी बड़ी संख्या में भवन अधूरे क्यों पड़े हैं? यह प्रशासन की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।

जनहित और सरकारी धन के सदुपयोग के दृष्टिकोण से यह मामला बेहद गंभीर है, जिसे लेकर प्रशासन को जल्द ठोस कदम उठाने होंगे।


 

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