सरकारी मंशा पर सवाल…. चुटका के ग्रामीणों ने ठुकराई बस सेवा, सरकार की साजिश बेनकाब बिना सहमति के थोपी जा रही योजनाएँ, पांचवीं अनुसूची और पेसा कानून की खुली अवहेलना!

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रेवांचल टाइम्स, मंडला।

मध्यप्रदेश के मंडला जिले के नारायणगंज विकासखंड में सरकार द्वारा बिना ग्रामीणों की सहमति के चलाई गई निःशुल्क बस सेवा को चुटका के जागरूक ग्रामीणों ने ठुकरा दिया। यह बस सेवा चुटका परियोजना के तहत चुटका से गोंझी पुनर्वास स्थल तक चलाई जानी थी, लेकिन गांव वालों को इसकी जानकारी तक नहीं दी गई। जब सोमवार सुबह यह बस चुटका पहुंची, तो ग्रामीणों—खासतौर पर महिलाओं—ने एकजुट होकर इसका विरोध किया और बस को तत्काल लौटा दिया।

ग्रामसभा को दरकिनार कर बनाई गई योजना, ग्रामीणों को बरगलाने की कोशिश?

सरकार की इस तथाकथित सुविधा को ग्रामीणों ने एक नई साजिश करार दिया। चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति के दादु लाल कुंगापे ने साफ कहा कि प्रशासन ने गांव वालों से कोई चर्चा नहीं की, बल्कि उनकी सहमति के बिना यह सेवा थोपी जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले शुक्रवार को जब कलेक्टर मंडला चुटका पहुंचे थे, तब ग्राम सभा ने 26 बिंदुओं का प्रस्ताव उनके सामने रखा था और साफ कर दिया था कि जब तक इन बिंदुओं पर कार्यवाही नहीं होगी, गांव खाली नहीं किया जाएगा।

बरगी त्रासदी दोहराने की साजिश?

महिला मोर्चा संघर्ष समिति की अध्यक्ष मीरा बाई मरावी ने सरकार की इस चालाकी को उजागर करते हुए कहा कि परियोजना अधिकारी गांव खाली करवाने के लिए बहलाने-फुसलाने की नीति अपना रहे हैं, जो कभी सफल नहीं होगी। उन्होंने सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा कि चुटका के ग्रामीण पहले ही बरगी बांध विस्थापन की त्रासदी झेल चुके हैं। वहाँ किए गए वादे आज तक पूरे नहीं हुए, फिर इस बार सरकार पर कैसे भरोसा किया जाए?

ग्रामसभा और पंचायत का पंचनामा—सरकार की नीति का पर्दाफाश

बस को वापस भेजने के बाद ग्रामीणों ने एक पंचनामा तैयार किया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि ग्राम सभा और पाठा पंचायत ने कभी भी इस बस सेवा के लिए कोई प्रस्ताव नहीं दिया था। इसका मतलब साफ है कि सरकार और प्रशासन ने यह योजना चुपचाप लागू करने की कोशिश की।

पांचवीं अनुसूची और पेसा कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं!

चुटका परियोजना क्षेत्र पांचवीं अनुसूची और पेसा कानून के अंतर्गत आता है, जिसके तहत आदिवासी ग्राम सभाओं की अनुमति के बिना कोई भी सरकारी योजना उन पर थोपी नहीं जा सकती। लेकिन सरकार ने एक बार फिर नियमों को ताक पर रखते हुए मनमानी करने की कोशिश की, जिसे ग्रामीणों ने असफल कर दिया।

क्या सरकार सिर्फ दिखावा कर रही है?

अब सवाल यह उठता है कि अगर यह योजना ग्रामीणों की भलाई के लिए थी, तो इसकी जानकारी उन्हें पहले क्यों नहीं दी गई? क्यों यह योजना रातोंरात थोप दी गई? प्रशासन की यह चालाकी दर्शाती है कि सरकार की असल मंशा विकास नहीं, बल्कि विस्थापन को जबरन लागू करना है।

ग्रामीणों का दो टूक जवाब—पहले 26 बिंदुओं पर हो कार्यवाही, फिर होगी कोई चर्चा

ग्रामीणों ने साफ कह दिया है कि जब तक उनके 26 बिंदुओं वाले प्रस्ताव पर पूरी तरह से अमल नहीं होगा, तब तक वे अपने गांव को खाली नहीं करेंगे। सरकार को अब यह समझ लेना चाहिए कि चुटका के लोग अब बहकावे में नहीं आने वाले!

अब देखना यह है कि सरकार इस मुद्दे पर ग्रामीणों की बात सुनेगी या फिर आदिवासियों की अनदेखी कर उन्हें एक और विस्थापन की ओर धकेलने का प्रयास करेगी?

 

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