जलवायु परिवर्तन एवं मानव स्वास्थ्य पर मल्टी डिपार्टमेंट/टास्क फोर्स की कार्यशाला का हुआ आयोजन
दैनिक रेवांचल टाइम्स – डिंडोरी आज शुक्रवार को राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन एवं मानव स्वास्थ्य कार्यक्रम के विषय पर अंतर्विभागीय / टास्क फोर्स की कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें विभिन्न विभागीय अधिकारी व कर्मचारियों ने भाग लिया। सी.एम.एच.ओ. डॉ. रमेश सिंह मरावी तथा जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. मनोज उरैती ने कार्यशाला में जलवायु परिवर्तन के मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के साथ-साथ जीव जन्तुओं पर होने वाले प्रभावों पर चर्चा की।
कार्यशाला में जलवायु का अर्थ बताते हुए जलवायु में हो रहे परिवर्तन एवं जलवायु परिवर्तन से बचाव के विकल्पों पर विस्तृत चर्चा की गई। जिसके तहत औसत मौसम अर्थात जलवायु के विभिन्न मानक जैसे हवा, तापमान, आर्द्रता, वर्षा, बादल आदि पर जानकारी दी गई। बताया गया कि समुद्र जलवायु का एक प्रमुख भाग है जो कि पृथ्वी के 71 प्रतिशत भाग में फैले हुए हैं। समुद्र द्वारा पृथ्वी की सतह की अपेक्षा दुगुनी दर से सूरज की किरणों का अवशोषण किया जाता है समुद्री तरंगों के माध्यम से संपूर्ण पृथ्वी में काफी बडी मात्रा में उष्मा का प्रसार होता है।
जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी पर पड़ रहे प्रभाव के अध्ययन करने के लिए विश्व मौसम विज्ञान संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने 1988 में जलवायु परिवर्तन पर अंर्तसरकारी पैनल का गठन किया। पैनल ने अपनी रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के बारे किये गये अध्ययन के आधार पर बताया कि 120 वर्षों में पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि हुई है। तापमान बढ़ने के बहुत से कारण है उनमें से एक प्राकृतिक कारण एल नीनो प्रभाव पर चर्चा की गई।
एल नीनो के प्रभाव से भारत के मानसून पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिससे भारत में वर्षा पद्धति में बदलाव देखे जाते हैं। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव मानव जीवन पर प्रत्यक्ष दिखाई देता है। अप्रत्यक्ष रूप से जल, वायु, भोजन की गुणवत्ता एवं मात्रा, परिस्थिति, कृषि एवं अर्थव्यवस्था में होने वाले परिवर्तन का मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों पर कार्यशाला में चर्चा की गई।
इसी प्रकार तापमान, वर्षण, वायुमंडलीय कार्बन डाई ऑक्साईड की मात्रा, समुद्र स्तरों में वृद्धि, ग्लेशियरों का पिघलना इत्यादि जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रभावों के विषय में बताया गया, जिससे कृषि उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा की गई। अति तीव्र मौसम घटनाएँ भी कृषि उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उदाहरण के लिए जहाँ सूखा एवं बाढ अधिक तीव्र अथवा बार-बार आती है, वहाँ पर होने वाले कृषि नुकसानों की चर्चा की गई। कार्यशाला में बताया गया कि ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन की मात्रा को कम करना होगा, क्यांकि इसी उत्सर्जन के द्वारा मिथेन, नाईट्रस ऑक्साईड एवं कार्बन डाई ऑक्साईड की मात्रा में वृद्धि होती है। कृषि क्षेत्र में में भी ऐसी गतिविधियों को बढ़ाना होगा, जिससे ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन को कम किया जा सके। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिये डिण्डौरी जिले में अधिक से अधिक वृक्षारोपण कर पर्यावरण की सुरक्षा करना, प्लास्टिक की थैले का उपयोग न करना इसके स्थान पर कपड़े / जूट के थैले का उपयोग करना तथा नदियों में कूड़े करकट, प्लास्टिक आदि न फेंकने एवं वातावरण को स्वच्छ सुरक्षित करने के लिए संकल्प लिया गया।
उक्त कार्यशाला में सीएमएचओ डॉ. रमेश मरावी, जिला छय रोग विशेषज्ञ डॉ. मनोज उरैती, महिला बाल विकास अधिकारी श्याम सिंगौर, जिला महामारी विशेषज्ञ डॉ. अभिषेक मिश्रा, आयुष चिकित्सक डॉ. समीक्षा सिंह सहित अन्य अधिकारी कर्मचारी उपस्थित रहे।
