पेयजल संकट में फंसे ग्रामीण: छह माह से लटकी शिकायत…. पंचायत पर झूठी जानकारी का आरोप
मंडला।
देश में ‘हर घर जल’ का सपना पूरा करने के लिए करोड़ों की योजनाएँ चलाई जा रही हैं, लेकिन जमीनी हकीकत अब भी कई जगह शर्मनाक है। मंडला जिले की जनपद पंचायत मंडला के अंतर्गत ग्राम पंचायत बिनैका से सामने आया मामला न केवल सरकारी दावों की पोल खोलता है, बल्कि यह भी उजागर करता है कि कैसे सिस्टम की लापरवाही और जिम्मेदारों की अनदेखी आम नागरिकों को पानी जैसी बुनियादी जरूरत के लिए तरसने पर मजबूर कर रही है।
ग्राम बिनैका निवासी नवीन मिश्रा विगत कई वर्षों से अपने घर में नल-जल योजना के तहत पेयजल कनेक्शन की मांग कर रहे हैं। पंचायत से लेकर जनपद, पीएचई विभाग और कलेक्टर कार्यालय तक उन्होंने दरवाजे खटखटाए, किंतु कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई।
आखिरकार थक-हारकर 10 दिसंबर 2024 को नवीन ने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन में अपनी शिकायत दर्ज कराई — उम्मीद थी कि शायद अब कहीं से न्याय मिलेगा। लेकिन छह महीने बीत जाने के बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई है।
पंचायत पर झूठी जानकारी का आरोप
शिकायतकर्ता नवीन मिश्रा का आरोप है कि ग्राम पंचायत बिनैका न केवल शिकायत को हल्के में ले रही है, बल्कि सीएम हेल्पलाइन पर गुमराह करने वाली, असत्य सूचनाएँ देकर मामले को रफा-दफा करने का प्रयास कर रही है।
09 अप्रैल 2025 को पंचायत द्वारा हेल्पलाइन में दर्ज अपडेट में दावा किया गया कि नवीन मिश्रा के घर पहले से तीन कनेक्शन हैं और उन्हें पर्याप्त जल आपूर्ति हो रही है। जबकि अन्य जवाब में कहा गया कि इनमें से दो कनेक्शन उनके सगे संबंधियों के नाम पर हैं।
स्पष्ट है कि पंचायत द्वारा तथ्य छुपाकर और विरोधाभासी रिपोर्ट देकर शिकायत को बंद कराने की कोशिश की जा रही है। सवाल यह उठता है कि जब जिम्मेदार अधिकारी ही झूठी जानकारी देकर अपने कर्तव्य से बचना चाहें, तो फिर आम नागरिक अपनी समस्या किसके सामने रखे?
गर्मी में विकराल होता जल संकट, मानसिक तनाव में पीड़ित
नवीन मिश्रा ने बताया कि भीषण गर्मी में उन्हें जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। पीने का पानी तक नसीब नहीं हो रहा है, जबकि पंचायत द्वारा झूठे आंकड़े प्रस्तुत कर उन्हें जबरन दबाव में शिकायत वापस लेने के लिए बाध्य किया जा रहा है। यह स्थिति न केवल प्रशासनिक असंवेदनशीलता को दिखाती है, बल्कि ग्रामीण जनता के अधिकारों के खुलेआम हनन का भी प्रमाण है।
निष्पक्ष जांच की माँग
नवीन मिश्रा ने जिला प्रशासन से मांग की है कि पूरे मामले की निष्पक्ष और निष्कलंक जांच कराई जाए, ताकि असली जिम्मेदारों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सके। साथ ही उन्होंने शीघ्र पेयजल कनेक्शन प्रदान करने की मांग की है, ताकि उन्हें इस असहनीय जल संकट से मुक्ति मिल सके।
प्रशासनिक उदासीनता का आइना
यह मामला न केवल एक व्यक्ति के जल संकट का है, बल्कि यह संपूर्ण प्रशासनिक मशीनरी के उस चरमराते ढांचे को भी दर्शाता है, जहां जनकल्याणकारी योजनाएँ केवल कागजों में सफल दिखाई देती हैं और जमीनी स्तर पर आमजन तक उनका लाभ नहीं पहुँचता।
यदि शिकायतें दर्ज होने के बावजूद अधिकारी जवाबदेही से बचते हैं, तो ‘जनहित’ और ‘लोकसेवा’ जैसे शब्द महज खोखले नारे बनकर रह जाते हैं।
अब प्रश्न सीधा और स्पष्ट है:
क्या मंडला जिला प्रशासन इस गंभीर शिकायत को गंभीरता से लेगा?
क्या जल संकट से जूझ रहे नवीन मिश्रा जैसे नागरिकों को उनका हक मिलेगा या फिर वे सिस्टम की उदासी का शिकार होकर चुप रहने को मजबूर होंगे?
यह समय है जब शासन-प्रशासन को यह सिद्ध करना होगा कि जनता की समस्याओं के प्रति उसकी संवेदनशीलता केवल भाषणों तक सीमित नहीं है, बल्कि जमीनी हकीकत में भी झलकती है।
