शिक्षा विभाग में अव्यवस्था का बढ़ता अंधड़: अधिकारियों पर अतिरिक्त प्रभार का बोझ, व्यवस्था संकट में
मंडला/बीजाडांडी।
मंडला जिले की शिक्षा व्यवस्था एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां सवाल उठ रहे हैं कि क्या वास्तव में यहां शिक्षा सुधार की कोई उम्मीद बाकी है या फिर बढ़ते प्रशासनिक बोझ तले यह पूरी तरह चरमरा जाएगी।
आदिवासी बहुल इस जिले में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर पहले से ही गंभीर चिंताएं थीं, अब स्थिति और भी भयावह होती जा रही है। कारण है — अधिकारियों पर लगातार थोपे जा रहे अतिरिक्त प्रभार।
बीजाडांडी विकासखंड में तैनात विकासखंड शिक्षा अधिकारी (बीईओ) पर मूल जिम्मेदारियों के अलावा तीन अन्य प्रमुख शैक्षणिक संस्थाओं — उत्कृष्ट हायर सेकंडरी स्कूल बीजाडांडी, कन्या हायर सेकंडरी स्कूल बीजाडांडी और संकुल केन्द्र हायर सेकंडरी स्कूल जमठार — का अतिरिक्त प्रभार सौंप दिया गया है।
परिणामस्वरूप, बीईओ का समय बंट गया है। न तो वे समय पर कार्यालय पहुंच पा रहे हैं, न विद्यालयों का प्रभावी निरीक्षण कर पा रहे हैं, और न ही शिक्षकों-अभिभावकों की समस्याओं को समय रहते सुन पा रहे हैं। शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से दिशाहीन होती नजर आ रही है।
“ऊपर तक पहुंच” का खेल?
स्थानीय सूत्रों की मानें तो बीईओ की ‘ऊपर तक पकड़’ के चलते उन्हें लगातार मलाईदार जिम्मेदारियाँ दी जा रही हैं।
विभागीय कर्मचारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बीईओ नियमित रूप से जबलपुर से अप-डाउन करते हैं और अक्सर कार्यालय में अनुपस्थित रहते हैं। इतना ही नहीं, आरोप यह भी है कि बिना ‘लाभ’ के वे किसी कार्य को प्राथमिकता नहीं देते।
यदि बीईओ के कार्यकाल की निष्पक्ष और विस्तृत जांच की जाए तो लापरवाही, भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की कई परतें खुलने की पूरी संभावना है।
अब यह भी चर्चा है कि बीईओ माड़ल स्कूल का भी अतिरिक्त प्रभार हथियाने के प्रयास में हैं, जो यदि सफल होता है तो शिक्षा व्यवस्था के लिए एक और बड़ा झटका होगा।
पीड़ित शिक्षा व्यवस्था और उपेक्षित जनहित
स्थिति यह हो गई है कि जब अभिभावक या शिक्षक किसी समस्या को लेकर स्कूल या कार्यालय पहुंचते हैं, तो उन्हें अधिकारी के इंतजार में घंटों बर्बाद करना पड़ता है। इससे न केवल समय का अपव्यय होता है, बल्कि ग्रामीण जनता को मानसिक व शारीरिक कष्ट भी झेलना पड़ता है।
छात्रों की पढ़ाई बाधित हो रही है, शिक्षकों की समस्याएँ अनसुनी रह रही हैं और कार्यालयीन कार्य भी विलंबित हो रहे हैं।
जानिए क्या कहते हैं जिम्मेदार
डी के सिंगौर, प्रदेश अध्यक्ष, ट्राइबल वेलफेयर टीचर्स एसोसिएशन मध्यप्रदेश ने बताया —
“एक से अधिक प्रभारों के चलते शिक्षकों के स्वत्वों का समय पर भुगतान नहीं हो पा रहा है। बहुत से शिक्षकों के क्रमोन्नति आदेश और डीए एरियर का भुगतान लंबित है।”
कमलेश तेकाम, उपाध्यक्ष एवं अध्यक्ष शिक्षा समिति, जिला पंचायत मंडला ने कहा —
“जनजाति कार्य विभाग को पत्र जारी कर स्कूलों के अतिरिक्त प्रभार हेतु अन्य प्राचार्यों को प्रभार देने हेतु निर्देशित किया जाएगा।”
चैन सिंह वरकड़े, विधायक, विधानसभा निवास, ने भी चिंता जताते हुए कहा —
“सरकार को चाहिए कि शिक्षकों के प्रमोशन शीघ्र कर रिक्त पदों को भरा जाए, ताकि अतिरिक्त प्रभार की समस्या से मुक्ति मिल सके और शिक्षा व्यवस्था पटरी पर लौट सके।”
कब जागेगा प्रशासन?
शिक्षा किसी भी समाज की रीढ़ होती है, लेकिन मंडला जिले में यह रीढ़ दरकती नजर आ रही है। जब जिम्मेदार अधिकारी ही मूल दायित्वों से विमुख हो जाएं और पूरी व्यवस्था चंद रसूखदारों के हाथों की कठपुतली बन जाए, तो आम छात्र-छात्राओं का भविष्य अंधकारमय हो जाता है।
प्रश्न उठता है — क्या मंडला जिला प्रशासन इस खतरे को समय रहते पहचान पाएगा?
क्या शिक्षा विभाग की इस अनदेखी पर लगाम लगेगी या फिर हालात और बिगड़ते जाएंगे?
अब समय आ गया है कि प्रशासनिक उदासीनता को तोड़ते हुए शिक्षण संस्थानों की गरिमा को पुनर्स्थापित किया जाए। यदि अब भी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाली पीढ़ियाँ इस लापरवाही की कीमत चुकाने को मजबूर होंगी।
