सलवाह चौकी में कानून व्यवस्था ठप : असामाजिक तत्व बेखौफ, जिम्मेदार मौन क्यों?

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मंडला जिले के घुघरी थाना अंतर्गत सलवाह पुलिस चौकी से चिंताजनक तस्वीरें सामने आ रही हैं। क्षेत्र में कानून व्यवस्था की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है, और दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि जिम्मेदार अधिकारी अपनी चुप्पी से इस अराजकता को मौन स्वीकृति देते प्रतीत हो रहे हैं।

ग्रामीणों के अनुसार, सलवाह और आसपास के इलाकों में असामाजिक तत्वों का आतंक दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। कभी घरों के सामने शराबखोरी, तो कभी नशे में विवाद और गाली-गलौज — अब यह रोजमर्रा का हिस्सा बन चुका है। चोरी की वारदातें भी अब आम हो गई हैं। इसके बावजूद पुलिस चौकी सलवाह द्वारा ना तो ठोस कार्रवाई की जा रही है, और ना ही ग्रामीणों की शिकायतों को गंभीरता से लिया जा रहा है।

एक ताजा मामला सलवाह निवासी रामप्रकाश परस्ते के परिवार के साथ घटित हुआ। प्राप्त जानकारी के अनुसार, बीते दिनों रामप्रकाश के घर व दुकान के सामने बने शेड के नीचे कुछ असामाजिक युवक रात के समय शराब का सेवन कर रहे थे। शोरशराबे से परेशान होकर जब रामप्रकाश की पत्नी ने दरवाजा खोलकर युवकों को समझाइश दी और वहां से चले जाने को कहा, तो उन्होंने उसे नजरअंदाज कर दिया।

स्थिति बिगड़ती देख रामप्रकाश स्वयं बाहर निकले और युवकों को डांटकर हटने के लिए कहा। जैसे ही रामप्रकाश ने पुलिस को फोन करने के लिए मोबाइल निकाला, आरोपित युवकों ने उनका फोन छीन लिया और उन पर हमला कर दिया। गाली-गलौज करते हुए मारपीट शुरू कर दी गई। शोरगुल सुनकर पड़ोसी और परिजन बीच-बचाव के लिए आए, तब जाकर आरोपी युवक मौके से भाग खड़े हुए।

पीड़ित परिवार ने तत्काल सलवाह पुलिस चौकी में लिखित शिकायत दर्ज कराई। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि पंद्रह दिन बीत जाने के बावजूद न तो कोई गिरफ्तारी हुई, न कोई ठोस कार्रवाई। उल्टा, पीड़ित परिवार आज भी दहशत के साए में जी रहा है।

प्रश्न बड़ा है:
जब शिकायत के बावजूद पुलिस निष्क्रिय बनी हुई है, तो आखिर ग्रामीण खुद को किसके भरोसे सुरक्षित समझें? क्या पुलिस की भूमिका महज औपचारिकता निभाने तक सिमट गई है?
क्या असामाजिक तत्वों को खुली छूट देना ही आज स्थानीय प्रशासन की नीति बन गई है?

इस संबंध में रामप्रकाश परस्ते ने मंडला पुलिस अधीक्षक को शिकायत भेजकर आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की माँग की है। ग्रामीणों ने भी चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र उचित कदम नहीं उठाए गए, तो वे सामूहिक आंदोलन का रास्ता अपनाने को मजबूर होंगे।

यह मामला केवल एक परिवार का नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण व्यवस्था पर सवाल है।
यदि पुलिस ही अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी निभाने में असफल है, तो फिर कानून का डर किसे रहेगा? सलवाह पुलिस चौकी की इस चुप्पी ने साफ कर दिया है कि या तो वह असहाय हो चुकी है या फिर अनदेखी करने की आदत डाल चुकी है। दोनों ही स्थितियाँ एक सभ्य समाज के लिए खतरनाक हैं।

आज सलवाह में जो हो रहा है, वह कल किसी और गांव में भी हो सकता है। इसलिए अब आवश्यक है कि पुलिस विभाग अपनी जवाबदेही निभाए, दोषियों को सख्त से सख्त सजा दिलाई जाए और ग्रामीणों के बीच सुरक्षा का विश्वास फिर से स्थापित किया जाए।

कानून का डर अगर खत्म हो जाए, तो जंगलराज दूर नहीं होता।
सलवाह में आज जो भय पसरा है, वह एक बड़ी चेतावनी है — अनसुनी की गई तो नतीजे भयावह होंगे।

 

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