पुलिस अधीक्षक समाजसेवी व पत्रकारों ने संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के मोक्ष गमन पर दी विनयाजंलि
रेवांचल टाईम्स – मण्डला, मंगलवार को जिला पत्रकार संगठन ईकाई मण्डला के तत्वाधान में विश्ववंदनीय संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज के देवलोक गमन के पश्चात उनका विनयांजलि कार्यक्रम रपटा घाट स्थित रेवांचल पार्क में किया गया। जैन जगत के सर्वोच्च पद पर असीन इस युग के भगवान संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के मोक्ष गमन पर विनयाजंलि सभा में पुलिस अधीक्षक रजत सकलेचा ने आचार्य श्री के तैल्यचित्र पर माल्यार्पण करते हुए दीप प्रज्वालित किया। इस अवसर पर श्री सकलेचा ने कहा कि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज पूरे भारत के संभवत ऐसे अकेले आचार्य रहे जिनका पूरा परिवार संन्यास ले चुका है। आचार्य जी संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में पारंगत थे। उन्होंने जैन धर्म एवं दर्शन का गहन अध्ययन किया। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत में कई ग्रंथ लिखे हैं। 100 से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य पर किया है। उनके कार्यों में निरंजना शतक भावना शतक, परीषह जाया शतक सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। इस कार्यक्रम में अपने हृदय सुमन अर्पित करते हुए डॉ अर्चना अनिल जैन ने कहा कि दुनिया गुरुदेव के एक नजर के पड़ जाने से स्वयं को सौभाग्यशाली मानती है और जिस किसी को उनका भरपूर आशीर्वाद मिलना उसका तो जीवन ही सफल हो जाता है। अंतज्र्ञानी अंतर्यामी, तपोमूर्ति, युग निर्माणी, गौ उद्धारक, कन्याओं के संस्कार हेतु प्रतिभा स्थलियों के संस्थापक, युवाओं को धर्म मार्ग से जोडऩे वाले, सैकडो मंदिरों के निर्माण के प्रेरणा पुंज, आयुर्वेद को स्थापित करने हेतु पूर्णायु आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के संस्थापक, हथकरघा के माध्यम से विशुद्ध वस्त्रों का विश्व स्तरीय निर्माण की प्रेरणा देने वाले ताकि हर मेहनतकश गरीब के हाथो को काम मिले। इंडिया को भारत बनाने की प्रेरणा देने वाले कर्म योगी, तपोनिष्ठ, जिनकी गुणों की व्याख्या करने में कोई समर्थ नहीं है। वहीं परिषद के जिला अध्यक्ष नीरज अग्रवाल ने कहा कि विश्व कल्याण की बात गुरूवर कहा करते थे। 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर में अपने गुरु आचार्य श्रीज्ञानसागर जी महाराज से दीक्षा ली थी। दीक्षा के बाद उन्होंने कठोर तपस्या की। मुनि जी दिन भर में सिर्फ एक बार एक अंजुली पानी पीते थे। वे खाने में सीमित मात्रा में सादी दाल और रोटी लेते थे। उन्होंने आजीवन नमक, चीनी, फल, हरी सब्जियाँ, दूध, दही, सूखे मेव, अंग्रेजी दवाई तेल, चटाई का त्याग किया। इसके अलावा उन्होंने थूकने का भी त्याग रखा। उन्होंने आजीवन सांसारिक एवं भौतिक पदार्थों का त्याग कर दिया। वे हर मौसम में बिना चादर, गद्दे, तकिए के शख्त तख्त पर सिर्फ एक करवट में शयन करते थे। मुनि जी ने पैदल ही पूरे देश में भ्रमण किया। उनकी तपस्या को देखते हुए श्रीज्ञानसागर जी महाराज ने 22 नवम्बर 1972 को उन्हें आचार्य पद सौंपा था। विनयांजलि सभा समापन के दौरान उपस्थितजनों के द्वारा दो मिनिट का मौंनधारण करते हुए गुरूवर को नमन किया गया। इस अवसर जैन समाज के पदाधिकारी महिला व पुरूष विशेष रूप से उपस्थित थे। सभा में जिला अध्यक्ष नीरज अग्रवाल, संभागीय उपाध्यक्ष हनुमान तिवारी, जिला अध्यक्ष समाज कल्याण प्रकोष्ठ कैलाश डेहरिया, राजा शुक्ला, दीपक कछवाहा, डॉ. मोहित साहू, आकाश रघुवंशी, अनमोल अग्रवाल, ओमकार यादव, दीपक रजक, रोहित बघेल, जाकिर हुसैन, अशोक खरबंदा, सुनील मिश्रा, इन्द्रेश बब्बल खरया, आशा खरबंदा, उमा यादव, शीतल वैष्णव, सीता परतेती, मीना जैन, हेमलता जैन, जया जैन, नीतू जैन, विमला जैन, तनुजा जैन, एकता जैन, स्वाती जैन, राकेश सिंघई, सुभाष जैन, सतेन्द्र जैन, पुनीत जैन, पारस जैन, अतिशय जैन, राजेश जैन, जय कुमार जैन, मोना जैन, प्राची जैन, आस्था जैन, महेन्द्र जैन, नागेन्द्र जैन, सुनील जैन, रायसेठ राजेश जैन, पापुलर जैन, निधि जैन, दिशा जैन, मणी जैन, अनिल जैन, राजेश जैन, राकेश सिंघई, अंकित जैन, सुभाष जैन, बासल, अविनाश जैन, मणि जैन, हेमलता जैन, एकता बासल, नीना जैन, मोना जैन, निधि जैन, प्राची सहित अन्य लोगों ने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए गुरूवर को नमन किया।