आज अपरा एकादशी के दिन पूजा के समय जरूर करें ये व्रत कथा, सभी पापों से मिलेगी मुक्ति

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हिंदू शास्त्रों के अनुसार हर माह के दोनों पक्षों की एकादशी तिथि का विशेष महत्व बताया जाता है. साल में कुछ 24 एकादशी व्रत रखे जाते हैं और हर एकादशी का अपना अलग महत्व है. शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि एकादशी व्रत रखने से जातक को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस बार अपरा एकादशी 2 जून 2024 रविवार के दिन पड़ रही है.

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु के साथ भगवान सूर्य देव की उपासना की जाए, तो शुभ फलों की प्राप्ति होती है. वहीं, ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और पूजा-पाठ के साथ अगर अपरा एकादशी की व्रत कथा को सुना या पढ़ा जाए, तो भी व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है.

अपरा एकादशी व्रत कथा  

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अपरा एकादशी व्रत का शास्त्रों में विशेष महत्व बताया गया है. पौराणइक कथा के अनुसार एक बार श्री कृष्ण से पांडवों के सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर ने ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी के महत्व के बारे में जाना था. तब उन्होंने बताया था कि अपरा एकादशी के दिन व्रत रखने वाले साधक को ब्रह्म हत्या, प्रेत योनि आदि से मुक्ति मिल जाती है.

युधिष्ठिर को अपरा एकादशी के महत्व के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा था कि एक समय एक राज्य में महीध्वज नामक राजा राज्य करता था.  व्रजध्वज नामक उसका एक छोटा भाई था, वो बहुत ही अधर्मी और पापी व्यक्ति था. अन्याय के मार्ग पर चलता था और अपने भाई महीध्वज से द्वेष करता था.

एक बार व्रतध्वज ने अपने भाई के खिलाफ षड्यंत्र रतते हुए उसकी हत्या कर दी और उसके शव को जंगल में जाकर पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया. महीध्वज की अकाल मृत्यु हुई थी, इसलिए उन्हें प्रेत योनि में जाना पड़ा और प्रेत आत्मा बनकर पीपल के पेड़ पर ही रहने लगा. पीपल के पेड़ पर महीध्वज प्रेत के रूप में खूब उत्पात मचाने लगे. एक दिन पीपल के पेड़ के पास से एक धौम्य ऋषि गुजर रह थे और उन्होंने उन्हें देखते ही पहचना लिया कि ये तो वही राजा है, जिसकी अकाल मृत्यु हुई थी. तब ऋषि ने राजा को पेड़ से नीचे उतारा और परलोक विद्या के बारे में बताया.

ऋषि धौम्य ने प्रेत राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए खुद एकादशी का व्रत रखा. और भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की, इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उनसे वरदान मांगने को कहा, तो ऋषि ने विष्णु जी ये वर मांगा कि उस प्रेतात्मा राजा को प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाए. ऋषि के कहने पर भगवान विष्णु ने राजा को प्रेत योनि से मुक्ति कर दिया. इसके बाद राजा ने दिव्य शरीर धारण किया और धौम्य ऋषि को प्रणाम किया.

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