त्याग धर्म व्रतीनगरी पिंडरई (मंडला ) मनिश्री समतासागरजी महाराज
रेवांचल टाईम्स – मंडला, जिले के पिंडरई में आज पर्व का आँठवा दिन है। दशलक्षणों मे इसे त्याग धर्म कहा है। त्याग हमारी आत्मा को स्वस्थ और सुन्दरतम बनाता है। त्याग का संस्कार हमें प्रकृति से ही मिला है। वृक्षों में पत्ते आते हैं और झर जाते हैं, फल लगते हैं और गिर जाते हैं। गाय अपना दूध स्वयं छोड़ देती है. गाय यदि अपना दूध न छोड़े तो अस्वस्थता महसूस करती है। मनुष्य अपना मल विसर्जन कर स्वस्थता ताजगी का अनुभव करता है। श्वास लेने के साथ-साथ श्वास का छोड़ना भी कितना जरूरी है यह हम सभी जानते हैं। यह सारे उदाहरण हमें यह प्रेरणा देते हैं कि त्याग एक ऐसा धर्म है जिसके बिना हमारा जीवन भारी कष्टमय हो जाता है। राग स्निग्ध है, चिकना है. इसी की वजह से हम वस्तुओं का संग्रह करते रहते हैं। त्याग हमें परिग्रह से मुक्ति दिलाता है। सन्तों ने कहा है कि हमें बाहरी वस्तुओं के त्याग के साथ-साथ भीतरी कषायों को भी कुश करना चाहिये। ममत्व को घटाकर परिणामों में निर्मलता का आना ही त्याग का प्रयोजन है। अन्तरंग में जहर रहते हुए मात्र बाहर से छोड़ी गई सर्प की केचुली त्याग का सच्चा स्वरूप नहीं है। हाँ ! यह बात समझना भी अत्यंत जरूरी है कि चावल की अन्तरंग ललामी का हटाना धान्य का ऊमरी छिलका हटाये बगैर संभव नहीं है।’