लाभकारी है बांस की उपयोगिता और व्यवसायिक महत्व : कुलगुरू प्रो. राजेष वर्मा

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रेवांचल टाईम्स – रादुविवि व्यवसायिक अध्ययन एवं कौषल विकास संस्थान में विष्व बांस दिवस एवं राष्ट्रीय अभियंता दिवस के उपलक्ष्य में कार्यक्रम का आयोजन

जबलपुर 18 सितम्बर को बांस की खेती आजीविका में सुधार लाने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देने का एक अनूठा अवसर प्रदान करती है। भारी मात्रा में बांस लगाने और रोजमर्रा के कामों में इस्तेमाल से कार्बन उत्सर्जन में कमी के साथ शहरों को पहले की तरह हरा-भरा किया जा सकता है। पेयजल सहित कई पर्यावरण संबंधी समस्याओं से निपटा जा सकता है। बांस की उपयोगिता और इसके व्यवसायिक महत्व को देखते हुए इसे एक पाठ्यक्रम में प्रारंभ करने से विद्यार्थियों को खासा लाभ मिल सकता है। यह बात माननीय कुलगुरू प्रो. राजेष कुमार वर्मा ने बुधवार को रानी दुर्गावती विष्वविद्यालय के विज्ञान भवन में विष्व बांस दिवस एवं राष्ट्रीय अभियंता दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किये।

विष्वविद्यालय व्यवसायिक अध्ययन एवं कौषल विकास संस्थान में आयोजित कार्यक्रम की रूपरेख एवं स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए कौषल विकास संस्थान निदेषक प्रो. सुरेन्द्र सिंह ने कहा कि
बांस के औषधीय और अन्य उपयोगों को पहचानते हुए, विश्व बांस संगठन (डब्ल्यूबीओ) ने इस प्राकृतिक संसाधन के संरक्षण को बढावा देने और इसके सतत उपयोग पर जोर देने के लिए इस दिन की शुरुआत की। विश्व बांस संगठन (डब्ल्यूबीओ) ने 18 सितंबर 2009 को पहली बार विश्व बांस दिवस मनाने की घोषणा की थी। बांस के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि उन्हें शायद ही कभी दोबारा लगाने की आवश्यकता होती है। यह सबसे तेजी से बढ़ने वाले घास के पौधों में से एक है। बांस कई चीजों में काम आता है। जिसमें फर्नीचर बनाना, भोजन, जैव ईंधन, कपड़े और बहुत कुछ शामिल हैं। भारत में भी इसकी खेती भारी मात्री में होती है और देश से हर साल लाखों टन बांस एक्सपोर्ट भी होता है। कार्यक्रम विषिष्ट अतिथि प्रो. राजेन्द्र कुररिया ने बताया कि जल संरक्षण के लिहाज से बांस की खेती कारगर साबित हो रही है। बांस की खेती करने पर जोर दिया जा रहा है। कुछ ग्राम पंचायतों में यह खेती हो रही है। एक ओर जहां बांस की खेती जल संरक्षण के लिहाज से कारगर साबित हो रहा है, वहीं दूसरी ओर हर साल लाखों रुपये किसानों की होगी। विषिष्ट अतिथि विवि डीआईसी निदेषक प्रो. एस.एस. संधु ने कहा कि बांस की खेती जल संरक्षण एवं पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से कारगर साबित हो रही है। बांस की खेती से किसानों की आय में वृद्धि के साथ-साथ जलवायु को सुदृढ़ बनाने और पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान मिल रहा है। साथ ही बंजर जमीन को उपजाऊ करने में मदद मिल रही है। कार्यक्रम में श्री केके अग्रहरि ने विष्व अभियंता दिवस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर विस्तार से जानकारी दी। वहीं कृषि विज्ञान संस्थान रादुविवि के प्रो. एमएल केवट एवं एमएल साहू ने विषयांतर्गत उपयोगी जानकारी प्रदान की।
कार्यक्रम का संचालन डाॅ. मीनल दुबे एवं आभार प्रदर्षन डाॅ. अजय मिश्रा ने किया। इस अवसर पर ई महावीर त्रिपाठी, सुश्री प्रियंका सिंह, सम्राट, डॉ निशा, डॉ शैलेश, डॉ जावेद, डॉ श्वेता तिवारी, डॉ संस्काल पटेल, डॉ भावना यादव, डॉ दीपेंद्र सिंह,एवं विभाग्य के छात्र छात्राये उपस्थित रहे।

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