एक ही व्यक्ति दो पदों पर कैसे काबिज? कभी अध्यक्ष बन जाती हैं तो कभी सचिव, स्कूल की प्राचार्य के पास ही छात्रावास वार्डन का प्रभार
रेवांचल टाईम्स – मण्डला जिले की शिक्षा व्यवस्था पर एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं, जहां एक ही व्यक्ति दो पदों पर वर्षों से काबिज है और शिक्षा व छात्रावास संचालन में गंभीर अनियमितताएँ की जा रही हैं। कस्तूरबा गांधी बालिका (रमसा) छात्रावास घुघरी की अधीक्षिका और कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय की प्रभारी प्राचार्य श्रीमती दुलारी सैयाम के बारे में यह आरोप लगाए जा रहे हैं कि वे एक ही समय में दो प्रमुख पदों पर कार्य कर रही हैं, जबकि शिक्षा विभाग के नियमों के मुताबिक ऐसा नहीं हो सकता।
सामान्यत: विद्यालय और छात्रावास के संचालन में स्पष्ट विभाजन होता है, जहां विद्यालय का प्राचार्य अध्यक्ष होता है और छात्रावास का वार्डन सचिव होता है। लेकिन श्रीमती दुलारी सैयाम दोनों ही भूमिकाओं में वर्षों से कार्यरत हैं, जिससे न केवल शिक्षा व्यवस्था में गड़बड़ी हो रही है, बल्कि छात्रावास के संचालन में भी पारदर्शिता की कमी नजर आ रही है। सूत्रों के अनुसार, उन्होंने अपनी जूनियर को छात्रावास संचालन समिति का अध्यक्ष बना लिया है, ताकि उनका सचिव पद बना रहे और वे दोनों पदों पर काबिज रहें।
इसके साथ ही, विद्यालय और छात्रावास संचालन में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के गंभीर आरोप भी लग रहे हैं। बताया जा रहा है कि श्रीमती सैयाम और उनके सहयोगी कुछ विभागीय अधिकारियों के साथ मिलकर छात्रावास में आने वाली धनराशि का ग़लत तरीके से बंटवारा कर रहे हैं। खासतौर पर भोजन सामग्री के मद में अनियमितताएँ हो रही हैं। बालिकाओं को मीनू के आधार पर न तो सही समय पर नाश्ता मिलता है और न ही भोजन, और जो दिया जाता है, वह भी बहुत कम होता है। इसके अलावा, शासकीय अवकाश के दिनों में बालिकाओं की उपस्थिति को दर्ज करके भोजन मद का आहरण किया जाता है, जो पूरी तरह से नियमों का उल्लंघन है।
यहां तक कि जिन पालकों की बेटियाँ इस छात्रावास में रह रही हैं, उनका आरोप है कि अगर वे प्रत्यक्ष रूप से कोई शिकायत करते हैं तो उनके बच्चों को परेशान किया जा सकता है और उनके भविष्य के साथ कोई भी हस्तक्षेप हो सकता है। इसलिए, वे अपने बच्चों के भले के लिए चुप रहते हैं, लेकिन इस स्थिति में सुधार की कोई संभावना नहीं दिख रही है।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, श्रीमती सैयाम का कार्यकाल 7 से 8 वर्षों से अधिक हो चुका है, जबकि शासन के नियमों के अनुसार, किसी भी छात्रावास में वार्डन का कार्यकाल 3 वर्ष से अधिक नहीं होना चाहिए। फिर भी, जिला शिक्षा अधिकारी की मेहरबानी से वह अपने पद पर बनी हुई हैं, और यह मामला एडीपीसी के संज्ञान में होने के बावजूद इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
यहां सवाल यह उठता है कि जब विभागीय अधिकारी जानते-समझते हुए भी इस मामले पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं, तो सुधार की उम्मीद कहां से होगी? क्या शिक्षा व्यवस्था में सुधार की कोई संभावना है, या यह गोरखधंधा ऐसे ही चलता रहेगा?
जिले के कुछ जिम्मेदार अधिकारी और पालक इस पूरे मामले से अवगत हैं, लेकिन कोई भी सामने आकर आवाज़ नहीं उठा सकता क्योंकि इससे उनके बच्चों को नुकसान हो सकता है। यही कारण है कि इतने वर्षों से इस गोरखधंधे का संचालन हो रहा है और शिक्षा व्यवस्था में इस तरह की गंभीर अनियमितताएँ होती जा रही हैं।
इसलिए, यह आवश्यक हो गया है कि इस मामले की जांच की जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए ताकि जिले की शिक्षा व्यवस्था में सुधार हो और बच्चों को बेहतर शिक्षा और उचित आवासीय सुविधा मिल सके। अगर इस मामले पर ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह शिक्षा व्यवस्था के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी बन सकती है।