नक्सली मुठभेड़: असली या नकली? सच सामने आना चाहिए!

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रेवांचल टाइम्स – मंडला
मंडला जिले के खटिया थाना क्षेत्र में हुई नक्सली मुठभेड़ को लेकर सवाल उठने लगे हैं। पुलिस ने दावा किया कि यह एक सफल ऑपरेशन था, लेकिन गांवों में चर्चा कुछ और ही हो रही है। मुठभेड़ में मारा गया व्यक्ति नक्सली था या नहीं, यह सवाल अब तक अनसुलझा है। राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों और स्थानीय जनता में इस घटना को लेकर आक्रोश है।
पुलिस का दावा और जनता के सवाल
मध्य प्रदेश का मंडला जिला नक्सल प्रभावित इलाकों में गिना जाता है। यहां नक्सलियों की गतिविधियां समय-समय पर सामने आती रही हैं। पुलिस प्रशासन का कहना है कि वह लगातार नक्सली मूवमेंट पर नजर बनाए हुए है। इसी के तहत हाल ही में एक मुठभेड़ हुई, जिसमें एक व्यक्ति को मार गिराया गया। पुलिस का दावा है कि मारा गया व्यक्ति नक्सली था।
लेकिन इस मुठभेड़ पर सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि मृतक के परिजन और स्थानीय लोग इसे फर्जी एनकाउंटर बता रहे हैं। उनका कहना है कि मारा गया व्यक्ति निर्दोष था और पुलिस ने उसे जानबूझकर निशाना बनाया। यदि पुलिस की कार्रवाई सही थी, तो इसका स्पष्ट प्रमाण सामने क्यों नहीं रखा जा रहा? यह सवाल सिर्फ परिजन ही नहीं, बल्कि स्थानीय लोग भी उठा रहे हैं।
राजनीतिक दलों और संगठनों का विरोध
इस पूरे मामले ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। विभिन्न राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन इस मुठभेड़ की निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे हैं। मामला विधानसभा तक पहुंच चुका है, जहां इस पर तीखी बहस हुई। कई जनप्रतिनिधियों का कहना है कि अगर मुठभेड़ असली थी, तो पुलिस को सबूतों के साथ सामने आना चाहिए।
वहीं, कुछ लोग यह भी सवाल उठा रहे हैं कि अगर मारा गया व्यक्ति नक्सली था, तो उसके खिलाफ पहले से कोई पुलिस रिकॉर्ड क्यों नहीं था? क्या पुलिस ने इस व्यक्ति की पृष्ठभूमि की जांच की थी, या सिर्फ संदेह के आधार पर कार्रवाई कर दी?
जनता का भरोसा क्यों डगमगा रहा है?
देश में फर्जी मुठभेड़ों का लंबा इतिहास रहा है। कई बार निर्दोष लोगों को नक्सली या आतंकवादी बताकर मार दिया गया, और बाद में जांच में सच्चाई कुछ और ही निकली। यही वजह है कि जब भी कोई ऐसा मामला सामने आता है, तो जनता संदेह करने लगती है।
यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि अगर यह मुठभेड़ असली थी, तो क्या सरकार और पुलिस प्रशासन इसे लेकर पूरी तरह से पारदर्शिता बरत रहे हैं? या फिर यह भी एक और ऐसा मामला बनने जा रहा है, जिसमें सच हमेशा के लिए दफन हो जाएगा?
जांच जरूरी, निष्पक्षता पहली शर्त
अब जब मामला तूल पकड़ चुका है, तो निष्पक्ष जांच बेहद जरूरी हो गई है। सरकार को इस घटना की उच्चस्तरीय जांच करानी चाहिए ताकि सच सामने आ सके। यदि यह मुठभेड़ सही थी, तो पुलिस को बेगुनाही साबित करनी होगी। और अगर यह फर्जी साबित होती है, तो दोषियों को सजा मिलनी चाहिए।
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की मौत का नहीं है, बल्कि यह कानून व्यवस्था और प्रशासन की विश्वसनीयता का भी सवाल है। जनता को हक है कि वह जाने कि क्या सच में एक नक्सली मारा गया, या फिर एक निर्दोष नागरिक को फंसाया गया? सवाल सिर्फ एक मौत का नहीं, बल्कि सिस्टम की जवाबदेही का भी है।
संपादक मुकेश श्रीवास
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