खौफ के साए में नौनिहाल! परसेल में जर्जर स्कूल भवन में पढ़ने को मजबूर बच्चे

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*शाला प्रबंधन समिति ने भवन गिराने का प्रस्ताव किया पारित

दैनिक रेवांचल टाइम्स बजाग – ग्रामीण इलाकों में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति किसी से छुपी नहीं है. समय-समय पर ऐसी तस्वीरें भी सामने आती हैं, जिसे देखकर लगता है कि ऐसी हालत में नौनिहाल बच्चे आखिर गुणवत्तापरक शिक्षा कैसे हासिल कर पाएंगे. कुछ ऐसा ही कुछ हाल है करंजिया विकासखंड के परसेल में स्थित एक नवीन माध्यमिक विद्यालय का.जो की जर्जर अवस्था में संचालित हो रहा है
एक ओर जहां स्कूली शिक्षा और सुविधा को लेकर बड़ी-बड़ी बातें और घोषणाएं की जाती हैं.और शिक्षा के स्तर को सुधारने के तमाम बड़े किए जाते हैं । वही इसके विपरीत एक नवीन माध्यमिक विद्यालय परसेल में है जहां आज भी बच्चे जर्जर छत के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं. स्थिति ऐसी विकट है कि भवन की छत टूटकर नीचे फर्श पर गिर रही है. इसके बावजूद छोटे-छोटे बच्चे इसी छत के नीचे बैठकर शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हैं.
ये मामला जनपद पंचायत करंजिया के अंतर्गत परसेल के नवीन माध्यमिक विद्यालय का है. इस विद्यालय का भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका है. इस विद्यालय की बात करें तो कक्षा 6 से 8 तक के बच्चे पढ़ाई करते हैं, जिनकी संख्या करीब 54 है. जर्जर भवन के कारण शिक्षक संग बच्चों को हमेशा डर बना रहता है कि कब उनके ऊपर छत का टुकड़ा आकर गिर जाएगा. विद्यालय भवन की इसी दशा को देखते हुए
इंजीनियर गिरवर सिंह डहरिया के अवलोकन और निरीक्षण के निर्देशानुसार शनिवार को शाला प्रबंधन समिति ने नवीन माध्यमिक साला भवन गिराने का निर्णय लेते हुए प्रस्ताव पारित किया है एवम नवीन भवन की स्वीकृत कराने का भी प्रस्ताव पारित किया गया है शिक्षक के द्वारा बताया गया है वर्तमान में इसी जर्जर भवन में दर्जनों बच्चे अध्यनरत है बच्चो को पढ़ाने के लिए शासन प्रशासन से भवन निर्माण की मांग की गई है अभिभावकों ने जल्द से जल्द जर्जर भवन को गिरा कर नए नए भवन की निर्माण की मांग की है
जिससे बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने में किसी प्रकार की दिक्कतों का सामना ना करना पड़े.
ऐसे पढ़ेंगे तो कैसे बढ़ेंगे नौनिहाल, जहां जर्जर भवन में होता है संचालन ,डर का साया हमेशा बना रहता है
हाल-ए-स्कूलः डर के साये में भविष्य गढ़ते नौनिहाल!
परिस्थितियां चाहे जो भी हो, इरादों काफी मजबूत हैं. तपती धूप हो या बारिश, मन में एक ही लगन है कि स्कूल चलें हम. लेकिन क्या प्रशासन इन बच्चों को बुनियादी सुविधाएं देने की इच्छाशक्ति रखता है, जितनी इच्छाशक्ति इन बच्चों में पढ़ाई को लेकर है।

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