दर्द तरंगें एवं पर्यावरण

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भारत की भूमि ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो अहिंसा, दया, करुणामयी रही है। जहाँ पर भगवान ऋषभदेव, राम, हनुमान, महावीर जैसे महान पुरुषों ने जन्म लिया है। ये महापुरुष स्वयं अहिंसा की उपासना, आराधना करने वाले थे। जिन्होंने इस अहिंसा के माध्यम से भगवतपद को प्राप्त किया है। अहिंसा विश्व के सभी प्राणियों के लिए माता के समान है। भारतीय संस्कृति की प्रतिष्ठा अहिंसा के माध्यम से बनी है। यह देश ऋषियों का देश माना जाता है। जहाँ पर सर्वत्र अहिंसा की उपासना करने वाले देखें जाते हैं। लेकिन आज भारतीय संस्कृति की प्रतिष्ठा धूमिल होती दिखाई दे रही है। जैसे-जैसे हमारा देश आधुनिक परिवेश में ढलता जा रहा है। वैसे-वैसे इसकी आध्यात्मिक परम्परा पर कुठाराघात किया जा रहा है।
भारत अहिंसा की जन्म स्थली है। अहिंसा की जन्म स्थली पर क्रूरता का साम्राज्य फैलता जा रहा है। जिस धरती पर प्रातः काल हम प्रभु के नाम से दिन की शुरूआत करते है उस देश की धरती पर मूकप्राणी अपनी श्वास की आहें भरते हुए अपने जीवन को अकाल में ही नष्ट करते हैं। बेकसूर-बे-जुबान प्राणियों का दम घुट रहा है। उनकी दर्दनाक मौत असमय में मनुष्यों के द्वारा की जा रही है। आज देश मूक प्राणियों को ऐसे काटा जा रहा है। जैसे- गाजर, मूली काटी जा रही हो। हमारे देश में प्रतिदिन सूरज की प्रथम किरण निकलते ही हजारों-लाखों प्राणियों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। फैले हुए इस खून खराबे से देश का सर्वनाश हो रहा है।
पर्यावरण जीवन निर्वाह के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। हम और पर्यावरण परस्पर आपसी गतिविधियों से प्रभावित होते हैं। पर्यावरण का निर्माण मानव और उसको घेरे हुए भौतिक एवं अभौतिक तत्वों के संयोजन से होता है। पर्यावरण में मानव, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, कीट-पतंगे, वायरस, जीवाणु, मिट्टी, हया, पानी खनिज आदि सभी जैव और अजैव तत्व सम्मिलित हैं।
पर्यावरण में सभी तत्वों का एक निश्चित अनुपात है जिससे पर्यावरण सुचारू रूप से कार्य करता है, यह निश्चित अनुपात ही पर्यावरण संतुलन है।
पर्यावरण प्रति प्रदत्त एक विशेष क्षमता है कि विभिन्न तत्वों के अनुपात में जो थोड़ी बहुत कमी-बढ़ोतरी होती है उसे वह स्वयं संतुलित कर लेता है जिससे पर्यावरण संतुलन बना रहता है परंतु जब यह अनुपात एक सीमा से अधिक बिगड़ जाता है तो विकार उत्पन्न होता है। यहीं से पर्यावरण असतुलन उत्पन्न होता है।
पर्यावरण में ऐसे तत्वों का बढ़ना जिनसे जैव-अजैव घटकों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है और उनका संतुलन दुष्प्रभावित होता है ‘पर्यावरण प्रदूषण” कहलाता है।
जब कोई पदार्थ या वस्तु द्रवित होकर जल, हवा, वनस्पति आदि में या व्यक्ति के वचन, विचार व क्रियाएं हमारे जीवन निर्वाह में प्रतिरोध उत्पन्न करने लगे या वाधक बनने लगे तब वो प्रदूषण का रूप ले लेता है।
आज आजाद भारत में अच्छे आधुनिक 36 हजार के करीब कत्लखाने है। प्रतिदिन लाखों की संख्या में पशुधन का संहार हो रहा है। एक किताब में प्रकाशित सिद्धांत कहता है कि वध किये जाने वाले जानवरों से उत्पन्न होने वाली दर्द तरंगों से भूकंप के समान विनाशकारी परिणाम हो सकते है। ऋषि सदियों से कहते आ रहे है कि-
“सार्वभौमिक मन सभी का सबसे शक्तिशाली साधन है।”
भूकप क्यों और कब आते हैं? ये कोई नहीं जानता था अब तक भूकंप की भविष्यवाणी करना लगभग असंभव था क्योंकि मनुष्य अभी भी नहीं जानते है कि उनके कारण क्या है? लेखकों का दावा है कि जानवरों, पक्षियों और मछलियों की गैर-रोक हत्या के कारण दर्द और भय का केंद्रित निर्माण होता है जो भूकम्प पैदा करता है।
जब एक जानवर या एक जीवित प्राणी को मारा जाता है, तो इसकी गतिशीलता की पूरी ऊर्जा धीरे-धीरे 5 प्रकार की तरंगों के रूप में बदल जाती है-
1.प्राथमिक तरंगे
2.माध्यमिक तरंगे
3.सतह तरंगें
4.वायुमंडलीय तरंगें
5.अंतरिक्ष में लहरें

एक ही तरह की दर्द तरंगें पृथ्वी की पपड़ी के साथ उत्पन्न होती है और पारित हो जाती है। आंइस्टीन दर्द तरंगों या Nociception तरंगों को महसूस किया जा सकता है या प्रयोगात्मक रूप से कुछ सामान्य प्राकृतिक घटनाओं पर विचार आसानी से देखा जा सकता है जिसे हम अपने आस-पास रोज देखते हैं।
हमने गैर-रैखिक समय पर निर्भर ई-दर्द की मुख्य विशेषताओं की जांच की है, जिसे एल-सिस्टम के तारों के माध्यम से संप्रेषित किया जाता है और जो न्यूरोमस्कुलर सिस्टम में अराजक कंपन पैदा करता है।
यह आधुनिक युग की विकरालतम समस्याओं में एक है। दुनिया भर के वैज्ञानिक, बुद्धिजीवी इस समस्या पर मानव समुदाय का ध्यान आकृष्ट कर रहे हैं। पर्यावरणीय समस्याओं ने मानव अस्तित्व को संकट में डाल दिया है इसलिए यह समस्या हमारे गहन विचार और अन्वेषण का विषय है।
अहिंसा मय संस्कृति हमारी धरोहर है उसकी रक्षा करना देश के प्रत्येक मानव का कर्त्तव्य है।

~ ब्र. साक्षी जैन
व्रती नगरी पिंडरई

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