गोंडवाना साम्राज्य की महानतम शासिका महारानी दुर्गावती जी की मनाई गई 500वी जयंती…

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रेवांचल टाईम्स – गोंडवाना साम्राज्य की महानतम शासिका महारानी दुर्गावती जी की 500वी जयंती के अवसर पर गोंडवाना रेजीमेंट मध्य क्षेत्र मंडला टीम कमांडर चीफ प्रमोद शाह मरावी के नेतृत्व में (बांदा जिला) यूपी कालिंजर किला में जाकर दी गई शौर्य पूर्ण सलामी।

जिले के सामाजिक साहित्यकार युवा चिंतनकार महेश भलावी जी ने बताया कि
भारत की महानतम वीरांगना रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 में हुआ था,
बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 ईसवी की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण ही उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही वह तेज, साहस, शौर्य और सुंदरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गई।
महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की इकलौती संतान थीं। गोंडवाना राज्य के राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से उनका विवाह हुआ था।
दुर्भाग्यवश विवाह के 4 वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती का पुत्र नारायण 3 वर्ष का ही था अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था।
सूबेदार बाजबहादुर ने भी रानी दुर्गावती पर बुरी नजर डाली थी लेकिन उसको मुंह की खानी पड़ी। दूसरी बार के युद्ध में दुर्गावती ने उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया और फिर वह कभी पलटकर नहीं आया।
दुर्गावती ने तीनों मुस्लिम राज्यों को बार-बार युद्ध में परास्त किया। पराजित मुस्लिम राज्य इतने भयभीत हुए कि उन्होंने गोंडवाने की ओर झांकना भी बंद कर दिया। इन तीनों राज्यों की विजय में दुर्गावती को अपार संपत्ति हाथ लगी।
दुर्गावती बड़ी वीर थी। उसे कभी पता चल जाता था कि अमुक स्थान पर शेर दिखाई दिया है, तो वह शस्त्र उठा तुरंत शेर का शिकार करने चल देती और जब तक उसे मार नहीं लेती, पानी भी नहीं पीती थीं।
दूसरी बार के युद्ध में दुर्गावती ने उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया और फिर वह कभी पलटकर नहीं आया। महारानी ने 16 वर्ष तक राज संभाला। इस दौरान उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं।
वीरांगना महारानी दुर्गावती साक्षात दुर्गा थी। इस वीरतापूर्ण चरित्र वाली रानी ने अंत समय निकट जानकर अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में मारकर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गईं।रानी दुर्गावती का पराक्रम कि उसने अकबर के जुल्म के आगे झुकने से इंकार कर स्वतंत्रता और अस्मिता के लिए युद्ध भूमि को चुना और अनेक बार शत्रुओं को पराजित करते हुए 24 जून 1564 में बलिदान दे दिया। वर्तमान में जबलपुर जिले में जबलपुर-मंडला रोड पर स्थित बरेला के पास वह स्थान जहां रानी दुर्गावती वीरगती को प्राप्त हुईं थीं, अब उसी स्थान नरई नाला के पास रानी दुर्गावती का समाधि स्थल है। रानी दुर्गावती के इस वीरतापूर्ण चरित्र के लिए इतिहास उन्हें हमेशा याद रखेगा।

इसी तारतम्य मैं गोंडवाना रेजीमेंट मंडला द्वारा महारानी दुर्गावती जी के जन्मभूमि मैं जाकर वहा की मिट्टी को नमन कर महारानी को शौर्य पूर्ण सलामी दी गई।
जिसमे रेजीमेंट कमांडर दुर्गेश्वरि उईके लता वरकड़े पुष्पा वरकड़े मनीष मसराम इंद्रेश उइके सोनू मसराम अभिषेक उइके राहुल प्रधान तारेंद्र नर्रेति प्रमोद मरावी महेश भलावी तथा अन्य सैकड़ों लोगों के द्वारा सलामी दी गई।

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