अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष: नारी शक्ति का गौरवशाली युग
रेवांचल टाइम्स|महिलाओं के बिना इस संसार की कल्पना भी अधूरी है। नारी सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि संस्कृति, सभ्यता और शक्ति की प्रतीक है। इसी को दर्शाते हुए जयशंकर प्रसाद ने लिखा था— “नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में, पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।”
आज का दौर नारी सशक्तिकरण का है, जहां महिलाएं चूल्हे-चौके की परिधि से बाहर निकलकर हर क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर रही हैं। वे केवल परिवार की आधारशिला ही नहीं, बल्कि राष्ट्र की प्रगति की ध्वजवाहक भी हैं। लेकिन क्या समाज ने उन्हें पूर्ण सम्मान दिया है? यह एक विचारणीय प्रश्न है।
नारी: शक्ति, सहनशीलता और संघर्ष की मिसाल
नारी सृजन की जननी है, वह घर की रीढ़ और समाज की आधारशिला है। परिवार, समाज और देश के विकास में उसकी भूमिका अतुलनीय है। घर से लेकर कार्यस्थल तक, विज्ञान से लेकर राजनीति तक, सेना से लेकर खेल तक—हर क्षेत्र में उसने अपनी योग्यता और क्षमता को प्रमाणित किया है। प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति बनीं, इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं, कल्पना चावला अंतरिक्ष में पहुंचीं, और किरण बेदी ने पुलिस सेवा में अपनी दृढ़ता दिखाई। फिर भी, महिलाओं को आज भी अपने हक और सम्मान के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
महिला हिंसा: एक वैश्विक संकट
महिला सशक्तिकरण की दिशा में तमाम प्रयासों के बावजूद, हिंसा और शोषण की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा, कार्यस्थल पर शोषण, बाल विवाह और शिक्षा में असमानता जैसी समस्याएं महिलाओं की राह में अवरोध बनी हुई हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा को ‘मूक महामारी’ कहा गया है, जिससे कोई भी देश अछूता नहीं है।
सशक्त नारी ही सशक्त राष्ट्र की नींव
महिला सशक्तिकरण केवल नारों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसे जमीनी हकीकत बनाना आवश्यक है। सरकार ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, ‘उज्ज्वला योजना’, ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ जैसी कई पहल की हैं, लेकिन इन योजनाओं का वास्तविक लाभ तभी मिलेगा जब महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया जाएगा। शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता ही नारी को मजबूती प्रदान कर सकती हैं।
राजनीति में महिला भागीदारी: अब भी लंबा सफर बाकी
संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की संख्या अभी भी संतोषजनक नहीं है। पंचायती राज में आरक्षण के बावजूद, निर्णय पुरुषों के हाथों में सीमित रहता है। इसलिए यह आवश्यक है कि राजनीति में महिलाओं को केवल प्रतीकात्मक चेहरा न बनाकर, उन्हें नेतृत्व की वास्तविक शक्ति दी जाए।
