वनांचल के गलियारों में जंगल बचाने का जुनून नारों से जागरूकता, हौसले से संरक्षण: अरविंद बाबा का प्रेरणादायक सफर
ग्राउंड रिपोर्ट: आनंद साहू
दैनिक रेवांचल टाइम्स, बजाग
बजाग के घने जंगलों में एक सफेद पोशाक पहने, हाथ में पेंट-वार्निश का डिब्बा और ब्रश लिए अरविंद बाबा वर्षों से एक मिशन पर हैं। वह अकेले ही वनों को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। जंगल, पेड़-पौधों, और वन्यजीवों के प्रति उनका प्रेम और समर्पण उन्हें “जंगल का पहरेदार” बनाता है।
सूरज उगने से पहले जंगल की रखवाली
अरविंद बाबा, जो बजाग विकासखंड के छोटे से वनग्राम शीतलपानी के निवासी हैं, हर सुबह सूरज उगने से पहले जंगलों की खाक छानना शुरू कर देते हैं। उनके दिन का अधिकतर हिस्सा यह सुनिश्चित करने में बीतता है कि कोई हरे-भरे पेड़ों को काटने या वन्यजीवों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश न करे। बाबा खुद जंगल में गश्त करते हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों को समझाते हैं।
जंगल बचाने का संदेश: नारों के जरिये जागरूकता
बाबा का अनोखा तरीका उन्हें बाकी लोगों से अलग बनाता है। वह नदी, नालों, चट्टानों और जंगल के हर कोने में “जंगल बचाओ” के नारे लिखकर लोगों को जागरूक करते हैं। इन नारों के माध्यम से वह वनों की रक्षा और वृक्षारोपण का संदेश प्रसारित करते हैं। बाबा का कहना है, “पेड़ केवल जंगल की नहीं, पूरी दुनिया की जान हैं। इन्हें बचाना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।”
वन्यजीव संरक्षण का जुनून
अरविंद बाबा न केवल पेड़ों की रक्षा करते हैं, बल्कि वन्यजीवों के संरक्षण में भी उनका योगदान अविस्मरणीय है। जंगल में हिरणों और अन्य वन्यजीवों को देखना उनकी रोजमर्रा की दिनचर्या का हिस्सा है। वह वन्यजीवों के पदचिन्हों से उनकी गतिविधियों का पता लगाते हैं और जरूरत पड़ने पर वन विभाग को जानकारी देते हैं। बाबा अक्सर इन दृश्यों को अपने कैमरे में कैद करते हैं और सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को वन्यजीवों की सुरक्षा का संदेश देते हैं।
जनजागरूकता अभियान: 1992 से सतत प्रयास
1992 में शुरू किया गया उनका “जंगल बचाओ जनजागरूकता अभियान” आज भी जारी है। बाबा ने गांव-गांव घूमकर लोगों को वनों के महत्व को समझाया। हालांकि, इस कार्य में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। बाबा ने बताया, “वन विभाग द्वारा जंगलों की कटाई के समय मापदंडों की अनदेखी के खिलाफ आवाज उठाने पर मुझे प्रताड़ना झेलनी पड़ी। कई बार अनशन और आंदोलन का सहारा लेना पड़ा। लेकिन मैंने हार नहीं मानी।”
सहयोग के बिना निस्वार्थ सेवा
बाबा यह पूरा कार्य अपने खर्चे पर कर रहे हैं। अब तक उन्हें किसी भी राजनीतिक या सरकारी सहयोग की सहायता नहीं मिली है। इसके बावजूद, वह अपनी निष्ठा और समर्पण के बल पर जंगलों की रक्षा में लगे हुए हैं।
धैर्य और साहस की मिसाल
अरविंद बाबा का मानना है कि जंगल और पर्यावरण को बचाना एक युद्ध है जिसे वह अपनी आखिरी सांस तक लड़ते रहेंगे। वह कहते हैं, “चाहे मुझे अपनी जान भी देनी पड़े, मैं जंगलों को बचाने के अपने मिशन से पीछे नहीं हटूंगा। यहां के जंगल केवल भारत की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की धरोहर हैं।”
ग्रामीणों का समर्थन
बाबा के इस प्रयास में स्थानीय ग्रामीणों का भी सहयोग मिलता है। ग्रामीण उनकी पहल की सराहना करते हैं और कई बार उनके साथ वनों की रक्षा में योगदान देते हैं।
एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व
अरविंद बाबा का जीवन पर्यावरण संरक्षण का एक प्रेरणादायक उदाहरण है। उनकी निस्वार्थ सेवा और अदम्य साहस न केवल वनों को बचाने में सहायक है, बल्कि समाज के लिए एक संदेश भी है कि प्रकृति से प्यार करना और उसकी रक्षा करना हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।
“जंगल बचाओ” केवल एक नारा नहीं, बल्कि बाबा के जीवन का उद्देश्य है।
