खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) बहुत देर से दर पर आंखें लगी थी, हुजूर आते – आते बहुत देर कर दी

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रेवांचल टाईम्स डेस्क – कहीं मोदी की उपेक्षात्मक क्रिया की प्रतिक्रिया तो नहीं है भागवत का बयान !राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का एक बयान सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है जिसमें वे कुछ इस तरह की भावनाओं को व्यक्त कर रहे हैं कि “चुनाव लड़ने में भी एक मर्यादा होती है। उस मर्यादा का पालन नहीं हुआ। देश के सामने चुनौतियां हैं। इसलिए विपक्ष के विचारों पर भी विचार होना चाहिए। अन्यथा ऐसे में देश कैसे चलेगा ! मणिपुर पिछले एक साल से शांति की राह देख रहा है उस पर प्राथमिकता से विचार करना चाहिए”। आरएसएस प्रमुख भागवत का बयान नरेन्द्र मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद आया है।

सूत्रों से खबर यह मिल रही थी कि संघ इस बार नरेन्द्र मोदी को पीएम की कुर्सी पर बैठे हुए नहीं देखना चाहता था उसकी पहली पसंद नितिन गडकरी थी। शायद यही सब कुछ भांपते हुए नरेन्द्र मोदी ने भाजपा के नव निर्वाचित सांसदों (संसदीय दल) की बैठक में नेता का चुनाव कराने के बजाय नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस की साझा बैठक बुलाकर अपने नाम पर नेता चुने जाने की मोहर लगवा ली। सरकार बनने के बाद भी भाजपा संसदीय का नेता कौन है इसकी घोषणा नहीं की गई है।

संघ के इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब उसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर भाजपा का कोई व्यक्ति स्वयंभू सुप्रीमो बन गया है। यह तय है कि स्वाभिमानी संघ के सीने में यह अपमान का घाव नासूर बन कर टीस मारता रहेगा। चुनाव प्रचार में जिस तरह से संघ पर उंगली उठाई जाती रही है उसने भी संघ के चेहरे को दागदार किया है। वैसे भी मोहन भागवत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ऐसे इकलौते सरसंघचालक हैं जिनका कहा देश को दिशा देने के बजाय भाजपा की तरफदारी करता नजर आया है। भागवत के बयानों की सर्वाधिक आलोचना की गई है। कहा तो यहां तक जाता है कि भागवत ने संघ को भाजपा की बी टीम बनाकर रख दिया है।

संघ से भाजपा की राजनीतिक शुध्दीकरण के लिए भेजे गये प्रचारक (संगठन मंत्री) और तथाकथित स्वयंसेवक खुद राजनीतिक दल दल में इतना डूब गये कि उनने अपने चेहरे को स्याह तो किया ही संघ के चरित्र पर भी कालिख पोत कर रख दी। आये दिन संघ से भाजपा को निर्यातित लोगों के सैक्स स्कैंडल वाले आडियो वीडियो वायरल होते रहते हैं। निचले स्तर पर संघ से जुड़े लोगों द्वारा अधिकारियों पर दबाव बनाकर कई तरह के अनैतिक कार्यों में लिप्त होने खबरें तो आम है।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि मणिपुर तो पिछले एक साल से सुलग रहा है। मणिपुर में हुई नस्लीय हिंसा और महिलाओं के साथ हुई यौन हिंसा को लेकर तमाम विपक्षी कहे जाने वाले राजनेताओं के साथ राष्ट्रवादी सोशल मीडिया, राष्ट्रभक्त बुध्दिजीवियों ने अनेकों बार आलोचनात्मक टिप्पणियां की हैं तब आरएसएस प्रमुख क्यों मौन धारण किये रहे। जब खेल जगत में दुनिया भर में भारत का नाम रोशन करने वाली महिला पहलवान अपनी अस्मिता के साथ किये गये खिलवाड़ की जांच कराये जाने की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर में धरने पर बैठी थी और मोदी सरकार ने उनकी मांग इसलिए नहीं मानी थी कि आरोपी मोदी का कृपापात्र भाजपा के जातीय समीकरण को साधने वाला कद्दावर नेता था। इतना ही नहीं उन महिला पहलवानों को दिल्ली की सड़कों पर घसीट कर मारा-पीटा गया था तब भी संघ प्रमुख मौन रहे। देशभर में ना जाने ऐसी कितनी घटनाएं हैं जिनमें महिलाओं का यौन उत्पीड़न हुआ मगर संघ प्रमुख के मुंह से निंदा का “न” भी सुनाई नहीं दिया। 2014, 2019 और अब 2024 में देश के अलग अलग अंचलों में विधानसभा चुनाव रहे हों या लोकसभा चुनाव सब में चुनाव प्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी द्वारा निम्न से लेकर निम्नतर घटिया शब्दों का इस्तेमाल किया जाता रहा है तब तो भागवत ने नसीहत नहीं दी।

फिर आज अचानक क्योंकर मणिपुर याद आ गया ? चुनाव प्रचार के दौरान की गई अमर्यादित भाषा का जिक्र जबान पर आ गया। जब मोदी सरकार द्वारा सैकड़ा भर सांसदों को संसद से निलंबित कर दिया गया था तब मोहन भागवत ने एक भी नैतिकतावादी बयान नहीं दिया था। ऐसी सैकड़ों वारदातें हैं जिन पर आरएसएस प्रमुख को बोलना चाहिए था मगर उन्होंने चुप्पी साधे रखी । हो न हो कहीं यह नरेन्द्र मोदी द्वारा 2015 से की जा रही मोहन भागवत की उपेक्षा जिसका चरम उत्कर्ष 4 जून 2024 से 09 जून 2024 तक दिखाई दिया की क्रिया की प्रतिक्रिया ही है जिसके जरिए वे अपने खोये हुए सम्मान को दबाव डालकर पाने की असफल कोशिश करते दिख रहे हैं ।

अच्छा तो यह होता कि सबसे पहले मोहन भागवत मोदी सरकार से मिली जेड प्लस सुरक्षा को वापस करते। संघ से भाजपा में भेजे गए प्रचारकों, स्वयंसेवकों को वापस बुलाते, भाजपा से संघ के जाहिर – नाजाहिर सभी रिश्तों को खत्म करने का ऐलान करते फिर मणिपुर और मर्यादा पर बयान देते। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, स्वदेशी जागरण मंच आदि जो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार नाक में दम दिए रहा करते थे 2014 से अभी तक मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ इनमें से किसी की भी आवाज सुनाई नहीं दी है, वे ना जाने किस कब्रिस्तान में दफन हैं।

स्वतंत्र पत्रकार

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